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दोपहर होते ही उदास होने लगते हैं लोग, हफ्ते में इस दिन सबसे ज्यादा नेक और मददगार रहते हैं, क्या है समय का ब्रेन से नाता

ढलती दोपहर में अक्सर बहुत से लोग उदास हो जाते हैं. इसका कारण उन्हें नहीं पता होता, लेकिन दोपहर से शाम का समय बहुतों को परेशान करता है. वे चीखते-चिल्लाते हैं, एक-दूसरे को ट्रोल करते हैं और ऑफिस में भी झगड़े कर लेते हैं. ऐसा क्यों है, साइंस ने इसका जवाब जानने की कोशिश की. इसमें ये भी निकलकर आया कि हफ्ते का एक खास दिन लगभग सभी को खुशमिजाज बना देता है.

दोपहर में लोग ज्यादा परेशान या आक्रामक हो जाते हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay) दोपहर में लोग ज्यादा परेशान या आक्रामक हो जाते हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 29 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 6:05 PM IST

हर इंसान चौबीस घंटों में अलग-अलग समय पर एनर्जी से भरपूर होता है. किसी को सुबह-सुबह काम करना अच्छा लगता है, तो कोई देर रात तेजी से काम करता है. लेकिन दोपहर एक ऐसा समय है, जिसमें ज्यादातर लोग खुद को थका या उदास महसूस करते हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो दिन के किसी एक समय में एनर्जी का गिरना कई संकेत देता है. ये बाईपोलर डिसऑर्डर भी हो सकता है, या फिर शरीर में ग्लूकोज की कमी भी. 

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मेलबॉर्न की स्विनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (SUT) ने एनर्जी लेवल घटने और ब्रेन के बीच सीधा संबंध खोज निकाला. इस शोध की नतीजा- टाइम ऑफ डे डिफरेंसेंस इन न्यूरल रिवार्ड फंक्शनिंग नाम से जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में छपा. सितंबर 2017 में छपे शोध के मुताबिक ब्रेन का न्यूरल पाथवे हमेशा तारीफों की तलाश में रहता है. जैसे ही कोई हमारे किसी काम की तारीफ करता है, न्यूरल पाथवे सक्रिय हो जाता है और ब्रेन को बूस्ट देता है. इससे सेरोटोनिन हॉर्मोन बनता है, जिसे हैप्पी हॉर्मोन भी कहते हैं. ये कई तरह के इलेक्ट्रिकल और केमिकल सिग्नल देता है, जो दिमाग को लंबे समय तक के लिए एक्टिव रखता है. 

वैज्ञानिक इसे रिवॉर्ड सर्किट कहते हैं. अक्सर दोपहर के दौरान ये सर्किट कमजोर पड़ने लगता है. सुबह से काम कर रहे लोग थकने लगते हैं, और दोपहर में एकदम से खाने के बाद सुस्ताने के मूड में आ जाते हैं. कई बार लोग लेट आफ्टरनून में भूखे रहते हैं, इसलिए भी वे एक-दूसरे को कॉम्प्लिमेंट नहीं करते. बहुत बार मीटिंग्स में बॉस भड़के या थके होते हैं. तो कुल मिलाकर दिनभर के काम का बोझ दोपहर में एक साथ इकट्ठा हो जाता है. 

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एनर्जी गिरने पर ब्रेन मूड चेंज के रूप में पहला सिग्नल देता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

सर्कैडियन रिदम भी दोपहर की उदासी की एक वजह है. ये एक तरह की बॉडी क्लॉक है, जो हमारे चौबीस घंटों पर नजर रखती है. इसमें हमारा सोना-जागना और खाना-पीना भी शामिल है. अगर कई दिनों तक हम रात में पूरी नींद न लें तो सर्कैडियन रिदम डिस्टर्ब हो जाती है. इसका असर दोपहर में ही सबसे ज्यादा दिखता है, जब रोशनी बढ़कर एकदम से कम होने लगती है. 

स्टडी मानती है कि दोपहर में अगर हमें रिवॉर्ड मिले तो उदासी घट जाएगी. ये रिवॉर्ड किसी से मिली तारीफ हो सकती है, या फिर कोई बढ़िया खाना भी हो सकता है. कई बार लोग दोपहर ढलते में अचानक चटपटा या कार्ब्स से भरपूर खाना खाने को निकल पड़ते हैं. ये इशारा है कि रिवॉर्ड सर्किट कमजोर पड़ा हुआ है. मनपसंद खाना उसमें राहत देता है. 

दोपहर में अगर हमें तारीफ या पसंदीदा खाना मिले तो उदासी घट सकती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

24 घंटों में भी मूड में कई बार उतार-चढ़ाव आता है. यही पैटर्न लंबे समय यानी पूरे हफ्ते के लिए भी दिखता है. नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने इसपर काफी बड़ी स्टडी की. इसके मनोविज्ञान विभाग ने लगभग 25 मिलियन ट्विटर मैसेज का पैटर्न देखा. ये कॉमन यूजर्स के थे. इसमें पाया गया कि दिन के तय समय पर लोग तयशुदा व्यवहार करते हैं. कभी वे गुस्सैल हो जाते हैं, तो किसी खास समय पर वही लोग समझदारी-भरी बातें करते हैं.

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डेटा-एनालिसिस में पाया गया कि शाम 4 से लेकर रात 12 बजे तक लोग अच्छे मूड में रहते हैं. वे एक-दूसरे की तारीफें करते हैं. लेट मॉर्निंग में मूड खराब रहता है. इसकी वजह ये भी हो सकती है कि काम निबटाने के फेर में लोग हड़बड़ी में रहते हैं. सुबह जागने के बाद और रात में सोने से पहले भी वे आमतौर पर खुश रहते हैं. शुक्रवार सुबह से ही लोग ज्यादा प्रसन्न दिखते हैं. वे मदद करने को तैयार रहते हैं. वहीं वीकेंड खत्म होते-होते वे पूरे हफ्ते के सबसे ज्यादा खराब मूड में पहुंच जाते हैं. 

 

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