
साल 1970 से लेकर अब तक दुनियाभर से दो-तिहाई वन्यजीव आबादी खत्म हो चुकी है. यानी 69 प्रतिशत जंगली जीव (जानवर और पेड़-पौधे) धरती और समुद्र दोनों से गायब हो चुके हैं. यह डरावनी रिपोर्ट दी है वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) ने. इसकी रिपोर्ट के मुताबिक इस बड़े और दुखद बदलाव के पीछे तीन बड़े कारण हैं, पहला- जलवायु परिवर्तन, दूसरा जंगलों का खत्म होना और तीसरा प्रदूषण. मजेदार बात ये है कि इंसान हर मिनट 27 फुटबॉल मैदान के बराबर जंगलों को साफ कर रहा है. उधर, समुद्र से आधे कोरल रीफ्स यानी मूंगे के पत्थर खत्म हो चुके हैं.
ऐसी स्थिति में जमीन और समुद्र दोनों से जीव खत्म तो होंगे ही. क्योंकि इंसानों ने मौसम बदल दिया. उनके रहने की जगह बर्बाद कर दी. शहर बना दिए. प्रदूषण इतना कर दिया कि कई जीव तो जहरीली हवा, दुर्गंध वाली जमीन और सड़ी हुई नदियों की वजह से मर गए. जानवरों और पेड़-पौधों की लाखों प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं. दिक्कत ये है कि इंसान अपने कपड़े, खाने, दवाओं के लिए इन जीवों का सर्वनाश करता जा रहा है.
जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन (ZSL) में कंजरवेशन एंड पॉलिसी के डायरेक्टर एंड्र्यू टेरी ने कहा कि 69 फीसदी कमी आना बहुत खतरनाक गिरावट है. हम अपनी दुनिया को खाली करते जा रहे हैं. WWF ने ZSL के डेटा का इस्तेमाल किया है. जिसमें बताया गया है कि 5000 से ज्यादा प्रजातियों के 32 जंगली जीवों की आबादी में 69 फीसदी कम हुई है. इसकी सबसे बड़ी वजह क्लाइमेट चेंज, इंसानों की प्राकृतिक स्थानों पर घुसपैठ, प्रदूषण और जंगलों को काटना हैं.
हर साल घट रहे हैं 2.5% जंगली जीव
जंगली जीवों की आबादी में सबसे ज्यादा गिरावट लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों में देखा गया है. पिछले पांच दशकों में यहां के कुल जंगली जीवों की आबादी में 94 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. ब्राजील के अमेजन में मिलने वाली पिंक रिवर डॉल्फिन (Pink River Dolphin) की आबादी 1994 से 2016 के बीच 65 फीसदी कम हो गई. एंड्र्यू टेरी ने बताया कि पिछली दो बार की WWF रिपोर्ट को देखें तो पता चलता है कि जंगली जीवों की आबादी में प्रति वर्ष 2.5 फीसदी की गिरावट आ रही है.
जिस दिन प्रकृति बदला लेगी, खतरनाक होगा
WWF-UK के डारेक्टर ऑफ साइंस मार्क राइट कहते हैं कि प्रकृति पहले भी बर्दाश्त कर रही थी, अब भी बर्दाश्त कर रही है. प्रकृति ने इंसानों से जंग लड़ना छोड़ दिया है. लेकिन इसका बदला बेहद खतरनाक होगा. हालांकि कुछ जगहों पर उम्मीद भी जगी है. जहां पर जंगली जीवों को लेकर बेहतर काम किए जा रहे हैं. जैसे- कॉन्गो के काहुजी-बीगा नेशनल पार्क में ईस्टर्न लोलैंड गोरिल्ला की प्रजाति 1994 से 2019 के बीच 80 फीसदी घट गई थी. वहीं उसी देश में मौजूद वीरूंगा नेशनल पार्क में 2010 से 2018 के बीच माउंटेन गोरिल्ला की आबादी 400 से बढ़कर 600 हो गई है.
हर साल कटते हैं पुर्तगाल के बराबर जंगल
मार्क ने कहा कि हमारे जंगल बढ़ते तापमान और प्रदूषण को नियंत्रित करते हैं. जिस हिसाब से उनकी कटाई हो रही है. प्रदूषण की वजह से तापमान बढ़ रहा है. ऐसे में अगर सारे जंगल खत्म हो जाएंगे तो धरती का तापमान तुरंत 0.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा हो जाएगा. लेकिन हम हर साल पुर्तगाल के बराबर जंगल खो रहे हैं. इससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है. सूखा बढ़ता है. बाढ़ और मिट्टी के कम होने की घटनाएं बढ़ जाती हैं. जिसकी वजह से जंगली जीवों के साथ-साथ इंसान भी खतरे में आ जाता है.
इंसान की भूख सबसे बड़ी मुसीबत
इंसान अपने खाने के लिए खेत बनाता है. उसके लिए जंगल काटता है. रहने के लिए शहर बनाता है. खाने का उत्पादन करने के लिए खेत जरूरी हैं. उनके लिए खुले मैदान. मैदान नहीं मिलने पर जंगल काट दिए जाते हैं. खाद्य उत्पादन की वजह से जमीन पर जैवविविधता में 70 फीसदी की कमी आई है. वहीं साफ पानी में यह कमी 50 फीसदी दर्ज की गई है. खेत-शहर बनाने के लिए साफ किए जंगलों की वजह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 30 फीसदी बढ़ गया है.