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Monsoon 2024: भरोसे लायक नहीं रहा मॉनसून... 729 जिलों में बारिश का अलग पैटर्न

इस साल जो बारिश हुई है, उसे समझने में वैज्ञानिकों ने दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा दिए. 'मौसम की तरह बदलने...' वाली कहावत इस साल साफ-साफ दिखाई दी है. देश के 729 जिलों में बारिश का अलग-अलग पैटर्न देखने को मिला है. कहीं कम, कहीं ज्यादा, कहीं बहुत ज्यादा तो कहीं इतनी ज्यादा की तबाही मचा दी.

ये तस्वीर 26 अगस्त 2024 की है, जब जम्मू के ऊपर घने बादल छाए थे. (फाइल फोटोः एपी) ये तस्वीर 26 अगस्त 2024 की है, जब जम्मू के ऊपर घने बादल छाए थे. (फाइल फोटोः एपी)
कुमार कुणाल
  • नई दिल्ली,
  • 17 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 8:27 PM IST

साल 2024 में मौसम ने जितने रंग दिखाए वो पहले बरसों में एक बार देखने को मिलता था. इस साल वैज्ञानिकों ने जब बारिश की स्टडी को तो हैरान करने वाली जानकारियां सामने आईं. बदलता हुआ मौसम. पहचान बदलता जलवायु. ऊपर जाती गर्मी. इन सबकी वजह से देश में कई जगहों पर विनाशकारी आपदाएं देखने को मिलीं. 

वैज्ञानिकों ने देश के 729 जिलों की स्टडी की. हर जगह अलग-अलग बारिश का पैटर्न. इनमें से 340 जिलों में सामान्य बारिश हुई. 158 जिलों में अधिक बारिश हुई. 48 जिलों में बहुत ज्यादा बारिश. वहीं, 178 जिले ऐसे, जिनमें बारिश कम हुई. 11 में बहुत ही ज्यादा कमी थी. यानी बारिश की अधिकता और कमी दोनों ही पैरामीटर्स पर मौसम ने अपना रंग दिखाया. 

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हैरानी इस बात की है कि साल 2024 में मॉनसून ने जितनी बार अधिक, बेहद अधिक और चरम बारिश वाली घटनाएं दिखाई हैं, उतनी पिछले पांच साल में नहीं हुई. ये बदलाव डरावना है. जानलेवा है. नुकसान देने वाला है. पिछले पांच साल में इस साल का जून दूसरा सबसे ज्यादा बारिश वाला महीना साबित हुआ. 

हर महीने बारिश ने बनाया नया रिकॉर्ड

साल 2020 के बाद इस साल अगस्त में 753 मौसम स्टेशनों पर बेहद अधिक बारिश दर्ज की गई. सितंबर में भी नया रिकॉर्ड बना. 525 स्टेशनों पर अधिक बारिश दर्ज की गई. आमतौर पर मॉनसूनी सिस्टम को जमीन और समंदर की ऊपरी सतह पर मौजूद गर्मी के अंतर से समझा जाता है. जिसमें हवाएं का चलना, ज्यादा तापमान हो जाना, वैश्विक तापमान आदि प्रभाव डालते हैं. ऐसे में मॉनसून पिछले दशक की तुलना में बहुत बदल चुका है. 

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कम समय में तेज बारिश जलवायु परिवर्तन का नतीजा

IMD के पूर्व डायरेक्टर जनरल डॉ. केजे रमेश ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में मॉनसून अपना पुराना रास्ता छोड़कर मध्य भारत के रास्ते निकल रहा है. जबकि पहले ये बिहार-यूपी होकर जाता था. इसकी चार वजहें हैं- ग्लोबल वॉर्मिंग, अल नीनो, इंडियन ओशन डाइपोल (IOD) और मैडेन्न-जुलियन ऑसीलेशन (MJO) है. कम समय में तेज बारिश का होना जलवायु परिवर्तन का नतीजा है.  जहां तक बात रही लंबे समय तक मॉनसून के टिके रहने की तो उसकी वजह मिट्टी की नमी को सैचुरेट करने वाले लगातार आ रहे सिस्टम हैं. 

पिछले वर्षों की तुलना में ज्यादा हो रही है बारिश

यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग्स के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक साइंस के साइंटिस्ट डॉ. अक्षय देवरास ने कहा कहा कि जिस हिसाब से धरती गर्म हो रही है, उससे तो मॉनसून में बदलाव आएगा ही. पहले मॉनसून में ऐसा नहीं होता था, लेकिन अब जैसे ही बारिश के लिए अच्छी कंडिशन बनती है, बारिश पिछले कुछ वर्षों की तुलना में अधिक होने लगती है. जिसका असर भारत के सभी जिलों में देखने को मिलता है. 

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ऐसे मौसम से बचने के लिए सही रणनीति जरूरी

क्लाइमेट ट्रेंड्स की संस्थापक और डायरेक्टर आरती खोसला कहती हैं कि पूरे देश में इस साल बेतरतीब बारिश हुई है. पिछले साल का सूखा हो या इस साल की सामान्य से अधिक बारिश की घटनाएं. ये पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी हैं. इनसे बचने के लिए सही नीतियां और स्ट्रैटेजी बनाने की जरूरत है, ताकि जिंदगियों को बचाया जा सके. नुकसान कम हो. ईकोसिस्टम न बिगड़ने पाए. क्यों भारत जलवायु परिवर्तन से अछूता नहीं है. 

 अप्रत्याशित मॉनसून और उसके साइड इफेक्ट्स

गर्मियों के बाद आने वाला मॉनसून पहले भरोसेमंद था. पता होता था कब आएगा. कब जाएगा. कितनी बारिश होगी. लेकिन जून से सितंबर तक रहने वाला ये मौसम अब बदल गया है. इसकी वजह से कृषि और पानी सप्लाई प्रभावित होता है. लेकिन हाल ही में हुई स्टडीज से पता चला है कि अब मॉनसून भरोसे लायक नहीं रहा. अब तो मॉनसून के महीनों में गर्मियों वाले दिन बन जाते हैं. अचानक से कम समय में बहुत ज्यादा बारिश हो जाती है. फिर एकदम ठंड पड़ने लगती है. अगले ही दिन फिर मौसम विचित्र रूप से बदल जाता है. 

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