
मुंबई को अगर भारतीय क्रिकेट का 'मक्का' कहा जाए तो गलत नहीं होगा. इस शहर ने भारतीय क्रिकेट को कई ऐसे खिलाड़ी दिए हैं, जिन्होंने इस शहर से साथ भारतीय क्रिकेट को भी एक अलग मुकाम पर पहुंचाने का प्रयास किया है. इस शहर से निकलकर टीम इंडिया के लिए क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ियों की लिस्ट काफी लंबी है. 1983 विश्व कप की 14 सदस्यीय टीम में से 5 खिलाड़ी मुंबई से थे.
19 साल की उम्र में दिलीप वेंगसरकर ईरानी ट्रॉफी में मुंबई के लिए रेस्ट ऑफ इंडिया टीम के खिलाफ खेल रहे थे. उस मुकाबले में रेस्ट ऑफ इंडिया टीम में उनके सामने टीम इंडिया की स्पिन चौकड़ी के दो सदस्य बिशन सिंह बेदी और इरापल्ली प्रसन्ना के साथ मदन लाल सरीखे गेंदबाज थे. वेंगसरकर ने उस मुकाबले में बिशन सिंह बेदी और इरापल्ली प्रसन्ना को क्रीज से बाहर निकलकर कई बाउंड्री लगाई. जिसके बाद रेडियो पर कमेंट्री कर रहे भारतीय क्रिकेट के सबसे पहले सुपरस्टार लाला अमरनाथ ने कहा , 'वेंगसरकर बिल्कुल कर्नल सीके नायडू की तरह बल्लेबाजी कर रहे हैं'.
जब दिलीप को मिली 'कर्नल रैंक'
कमेंट्री में लाला अमरनाथ के यह बोलते ही दिलीप वेंगसरकर को अपना एक नया नाम मिल गया था. ईरानी ट्रॉफी के मुकाबले ने भारतीय टीम को मुंबई से ही उभरता हुआ एक नया सितारा दे दिया था. वेंगसरकर ने अपने फर्स्ट क्लास डेब्यू के ठीक एक साल बाद ही भारतीय टीम में जगह बना ली थी. 20 साल की उम्र में ही कर्नल ने टीम इंडिया के लिए टेस्ट और वनडे डेब्यू किया.
अपनी बल्लेबाजी से दिलीप वेंगसरकर ने सभी को कम उम्र में ही मुरीद बना लिया था. छोटी उम्र से ही क्रिकेट की शुरुआत करने वाले वेंगसरकर अपनी बल्लेबाजी में भी मुंबई क्रिकेट पाठशाला के ही छात्र थे. एक बार वेंगसरकर अगर विकेट पर कुछ वक्त गुजार लेते थे तो गेंदबाजों के लिए उनका विकेट निकालना काफी मुश्किल हो जाता था. दिलीप वेंगसरकर ने 1983 विश्व कप से पहले 1979 के विश्व कप में भी भारतीय टीम में जगह बनाई थी.
1983 में चोट का मलाल
1983 विश्व कप में दिलीप वेंगसरकर चोट की वजह से ज्यादा नहीं खेल पाए थे. वेस्टइंडीज के खिलाफ ओवल में खेले गए चौथे लीग मुकाबले में दिलीप वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज मैल्कम मार्शल की एक सटीक बाउंसर से चोटिल हो गए थे. इस मुकाबले में भारतीय टीम 283 रनों का पीछा कर रही थी, पहले 2 विकेट जल्दी गिर जाने के बाद दिलीप वेंगसरकर नंबर 3 के बल्लेबाज मोहिंदर अमरनाथ के साथ भारतीय पारी को संभालने को कोशिश कर रहे थे, लेकिन मैल्कम मार्शल की एक बाउंसर उनके जबड़े पर आकर लगी जो उन्हें मैदान से बाहर करने के लिए काफी थी. दिलीप वेंगसरकर उस वक्त 32 रन बनाकर क्रीज पर थे.
उस चोट का असर इतना था कि वेंगसरकर को जबड़े में 7 टांके लगे और वह उसके बाद पूरा विश्व कप अस्पताल से ही फॉलो करते रहे. भारत को उस मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था. इस मुकाबले के पहले दिलीप वेंगसरकर ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी अंतिम ग्यारह में जगह बनाई थी, लेकिन वह कुछ खास कमाल नहीं कर सके थे. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कर्नल सिर्फ 5 रन ही बना पाए थे. दिलीप वेंगसरकर आज भी उस चोट की वजह से एक मलाल जरूर रहता है. वेंगसरकर के मुताबिक इस चोट की वजह से वो कपिल देव की 175 रनों की ऐतिहासिक पारी का आनंद मैदान पर हाजिर रहकर नहीं ले सके.
20 साल में ही मिला भारतीय टीम का ब्लेजर
घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन कर दिलीप वेंगसरकर ने 20 साल की उम्र में ही भारतीय टीम में जगह बना ली थी. वेंगसरकर ने टीम इंडिया के लिए इंटरनेशनल डेब्यू ऑकलैंड में न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट मैच में किया था. वेंगसरकर ने भारतीय टीम के लिए अपना पहला कदम बतौर ओपनिंग बल्लेबाज रखा था, लेकिन सफलता हासिल नहीं कर सके. कुछ मुकाबलों के बाद टेस्ट और वनडे दोनों फॉर्मेट में वेंगसरकर को मध्यक्रम में बल्लेबाजी का मौका दिया गया, जिसके बाद दिलीप वेंगसरकर लगातार बल्ले से सबको प्रभावित करते रहे.
ओपनिंग में असफल होने के बाद दिलीप वेंगसरकर नंबर 5 पर बल्लेबाजी करने लगे और इसी नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 17 टेस्ट मैच के बाद अपना पहला शतक जड़ा. वेस्टइंडीज के खिलाफ ईडन गार्डन में दूसरी पारी में 157 रनों की शानदार पारी खेली थी. उन्होंने इस पारी में कप्तान सुनील गावस्कर के साथ मिलकर 344 रनों की नाबाद साझेदारी की थी. वेंगसरकर के लिए अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए यह पारी काफी थी. इस पारी के बाद दिलीप वेंगसरकर ने भारतीय टीम के लिए ढेरों रन बटोरे.
... जब कर्नल बने देश के हीरो
पाकिस्तान के खिलाफ 1979 में फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में खेली गई 146 रनों की पारी दिलीप वेंगसरकर के करियर में एक टर्निंग प्वाइंट साबित हुई थी. पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय टीम को 390 रनों के लक्ष्य का पीछा करना था. इस लक्ष्य का पीछा करने में दिलीप का बखूबी साथ निभाया था गुंडप्पा विश्वनाथ और यशपाल शर्मा ने. दोनों ने दिलीप के साथ मिलकर बेहतरीन साझेदारियां कीं, लेकिन भारतीय टीम अंत में लक्ष्य से मात्र 26 रन दूर रह गई थी. वेंगसरकर की इस 146 रनों की पारी ने भारतीय क्रिकेट में एक नए हीरो का दर्जा भी दे दिया था.
लॉर्ड्स के मैदान पर जब वेंगसरकर 1979 में पहली बार बल्लेबाजी करने उतरे तो बिना कोई रन जोड़े आउट हो गए. शायद यह बात दिलीप वेंगसरकर को चुभ गई और फिर उन्होंने लॉर्ड्स को अपने घर के जैसा बना लिया. वेंगसरकर उस टेस्ट की दूसरी पारी में जब उतरे तो उन्होंने शतक जड़ा. इसके बाद वेंगसरकर ने क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स में 1982 और 1986 के दौरे पर भी इस मैदान में शतक लगाया. वेंगसरकर ने लॉर्ड्स में लगातार 3 टेस्ट मुकाबलों में शतक जड़कर अपना एक नया नाम भी हासिल किया था. लॉर्ड्स में शानदार प्रदर्शन की बदौलत लोग उन्हें 'लॉर्ड ऑफ लॉर्ड्स' भी कहते थे.
दिलीप वेंगसरकर नबर-1
टेस्ट क्रिकेट के साथ दिलीप वेंगसरकर ने वनडे में भी खराब शुरुआत के बाद लगातार रन बनाना जारी रखा. वेंगसरकर ने भारतीय टीम के लिए 3 विश्व कप (1979, 1983 और 1987) टूर्नामेंट में हिस्सा लिया. विश्व विजेता कप्तान कपिल देव के बाद 1987 में कुछ समय के लिए भारतीय टीम के वनडे और टेस्ट कप्तान भी बने. 80 के दशक में इंटरनेशनल क्रिकेट में दिलीप वेंगसरकर अपनी बल्लेबाजी से भारतीय टीम को कई मुकाबलों में जीत दिला चुके थे, लेकिन 80 के दशक के अंत में बारी आई दिलीप वेंगसरकर के टीम लीड करने की. बतौर कप्तान वेंगसरकर ज्यादा सफल नहीं रहे. दिलीप वेंगसरकर ने 1987 विश्व कप के बाद भारतीय टीम की कमान संभाली थी. वेंगसरकर ने 18 वनडे और 10 टेस्ट मैचों में टीम की कप्तानी संभाली, जिसमें भारतीय टीम को सिर्फ 8 वनडे और 2 टेस्ट मुकाबलों में जीत मिली.
बतौर कप्तान भले ही दिलीप वेंगसरकर को कोई बड़ी सफलता न मिली हो, लेकिन उस वक्त दिलीप वेंगसरकर अपनी बल्लेबाजी से लंबे समय तक दुनिया के नंबर 1 बल्लेबाज बने रहे. दिलीप वेंगसरकर ने अपने टेस्ट करियर में 116 मैच खेले. कर्नल ने 116 टेस्ट की 185 पारियों में 42.13 की औसत से 6868 रन बनाए हैं. वेंगसरकर के नाम टेस्ट में 17 शतक और 35 अर्द्धशतक जड़े. इसके अलावा वनडे करियर में भी वेंगसरकर ने शानदार प्रदर्शन किया. वेंगसरकर ने 129 वनडे मुकाबलों में 34.73 की औसत से 3508 रन बनाए. हालांकि वनडे फॉर्मेट में वेंगसरकर के बल्ले से सिर्फ 1 ही शतक निकला.
विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर
इंग्लैंड के खिलाफ 1984 में पुणे में वेंगसरकर के बल्ले से वनडे फॉर्मेट में इकलौता शतक निकला. दिलीप वेंगसरकर ने अपनी शानदार बल्लेबाजी की बदौलत साल 1987 में विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर का अवॉर्ड भी अपने नाम किया. इसके अलावा 1983 विश्व कप जीत से पहले साल 1981 में दिलीप वेंगसरकर अर्जुन अवॉर्ड अपने नाम कर चुके थे. इसके अलावा साल 1987 में में ही भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म श्री का सम्मान भी दिया गया. आगे चलकर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने भी कर्नल सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी नवाजा गया. इन्हीं कर्नल सीके नायडू के नाम पर पहली बार लाला अमरनाथ ने दिलीप वेंगसरकर को कर्नल नाम दिया था.
अपने क्रिकेट करियर के बाद दिलीप वेंगसरकर ने बतौर क्रिकेट एडमिनिस्टेटर काफी शानदार काम किया. 2003 में दिलीप मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष चुने गए थे. 2002 में दिलीप वेंगसरकर टैलेंट रिसोर्स विंग के भी अध्यक्ष बने. इसके बाद साल 2006 में बतौर चयनसमिति अध्यक्ष पदभार संभाला था. दिलीप वेंगसरकर ने ही पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली की टीम में वापसी का रास्ता खोला था. ग्रैग चैपल से विवाद के बाद लंबे वक्त तक सौरव गांगुली को टीम में जगह नहीं मिली थी, लेकिन दिलीप वेंगसरकर के इस पद को संभालते ही सौरव गांगुली ने 2006 में टीम इंडिया में अपनी वापसी की.
संन्यास लेने के बाद दिलीप वेंगसरकर ने युवा खिलाड़ियों को तैयार करने के लिए मुंबई में दो और एक पुणे में क्रिकेट एकेडमी भी शुरू की है.
जब कर्नल को लगानी पड़ी दौड़
इन सभी बातों के अलावा दिलीप वेंगसरकर का एक और किस्सा काफी प्रचिलित है. साल 1994 में दिलीप वेंगसरकर मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में रणजी ट्रॉफी का एक मैच देख रहे थे. इस मुकाबले के दौरान कुछ फैंस वेंगसरकर को काफी तंग कर रहे थे, वेंगसरकर ने कुछ वक्त तक उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज किया, लेकिन जब वेंगसरकर को लगा कि अब सीमा पार हो चुकी है उन्होंने सभी को उनकी स्टैंड्स से उनकी ओर छलांग लगाते हुए उन्हें खदेड़ लिया. वेंगसरकर को रिटायर हुए 2 साल हो गए थे जिसके बावजूद उन्होंने सभी को वानखेड़े स्टेडियम के गेट पर दबोच लिया एक झन्नाटेदार थप्पड़ रशीद कर दिया. दिलीप वेंगसरकर अपने खेल के दिनों में सबसे फिट खिलाड़ियों में से एक माने जाते थे.
दिलीप वेंगसरकर का योगदान 1983 विश्व कप जीत में भले ही 2 मुकाबलों तक ही सीमित रहा हो, लेकिन उन्होंने 1983 विश्व कप से अलग हटकर अपने खेल के जरिए टीम इंडिया और विश्व क्रिकेट में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी. आज भी भारतीय फैंस वेंगसरकर को उनकी लॉर्ड्स में खेली गई शानदार पारियों के लिए याद रखते हैं. जिस वक्त वेस्टइंडीज के गेंदबाजों का खौफ अपने चरम पर था उस वक्त सुनील गावस्कर के साथ वेंगसरकर उन्हीं गेंदबाजों के लिए मुसीबत के रूप में सामने आए.
दिलीप वेंगसरकर ने अपने इंटरनेशनल करियर का अंत 1992 विश्व कप से ठीक पहले जनवरी-फरवरी 1992 में खेली गई ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज से किया था. वेंगसरकर ने अपना आखिरी टेस्ट 1992 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फरवरी में खेला था. इस मुकाबले में वेंगसरकर 2 पारियों में सिर्फ 5 रन ही बना पाए थे. इसके पहले नवंबर 1991 में वेंगसरकर ने अपना आखिरी वनडे मुकाबला दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपने पसंदीदा मैदानों में से एक फिरोजशाह कोटला में खेला था.