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बेटी से हुआ था डील तो झझारिया ने रियो में तोड़ा अपना ही रिकॉर्ड

रियो पैरालंपिक खेलों में भाला फेंक प्रतिस्पर्धा में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ कर दूसरी बार गोल्ड मेडल जीतने वाले देवेंद्र झझारिया ने अपनी छह साल की बेटी के साथ हुई ‘डील’ के बारे में खुलासा किया जिसने उन्हें इस जीत के लिए प्रेरित किया.

देवेंद्र झझारिया ने एथेंस में भी जीता था गोल्ड देवेंद्र झझारिया ने एथेंस में भी जीता था गोल्ड
अभिजीत श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 14 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 9:17 PM IST

रियो पैरालंपिक खेलों में भाला फेंक प्रतिस्पर्धा में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ कर दूसरी बार गोल्ड मेडल जीतने वाले देवेंद्र झझारिया ने अपनी छह साल की बेटी के साथ हुई ‘डील’ के बारे में खुलासा किया जिसने उन्हें इस जीत के लिए प्रेरित किया.

राजस्थान में देवेंद्र झझारिया के साथ ट्रेनिंग के लिए गई जिया का अपने पिता के साथ समझौता हुआ था कि अगर वह अपनी एलकेजी परीक्षा में टॉप करती है तो वह पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर लाएंगे. पैरालंपिक में दो गोल्ड मेडल जीतने वाले एकमात्र भारतीय झझारिया ने पुरुष एफ46 भाला फेंक में रिकॉर्ड बनाने के बाद इस बात का खुलासा किया. उन्होंने कहा, ‘उसने गर्व के साथ फोन करते हुए मुझे बताया कि मैंने टॉप किया है और अब आपकी बारी है. ओलंपिक स्टेडियम में जब मैं मैदान पर उतरा तो यह बार बार मेरे कानों में गूंज रहा था.’ उन्होंने कहा, ‘उसे सबसे ज्यादा खुशी होगी. मैं उसके उठने का इंतजार करूंगा और उससे बात करूंगा.’ झझारिया ने एथेंस में बनाया अपना ही रिकॉर्ड तोड़कर गोल्ड मेडल जीता.

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झझारिया पूरी रात नहीं सोए और रियो में सुबह पांच बजे तक अपने परिवार के सदस्यों और शुभचिंतकों से बात करते रहे. प्रत्येक भारतीय को धन्यवाद देते हुए झझारिया ने कहा, ‘अब क्या सोना, अब हमें कुछ नहीं होगा. हम तो राष्ट्रीय ध्वज के साथ जश्न मनाएंगे.’

झझारिया ने अपने तीसरे प्रयास में 63.97 मीटर की थ्रो फेंकी और 2004 में एथेंस पैरालंपिक में 62.15 मीटर से गोल्ड जीतने के अपने ही प्रयास में सुधार किया. झझारिया पिछले दो पैरालंपिक में हिस्सा नहीं ले पाए क्योंकि उनकी स्पर्धा को कार्यक्रम में जगह नहीं मिली थी. इस दौरान खुद को फिट और चोट मुक्त रखने के लिए झझारिया ने कड़ी ट्रेनिंग की और बेहद कम बार घर गए. उनका घर राजस्थान के चुरू जिले के एक छोटे गांव में है. वह इतने कम घर रहे हैं कि उनका दो साल का बेटा काव्यान अपने पिता को पहचानता भी नहीं है.

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उन्होंने कहा, ‘उसको यह भी नहीं पता कि पिता कैसा होता है. उसकी मां की मेरी फोटो दिखाकर कहती है कि यह तुम्हारे पापा हैं. उम्मीद करता हूं कि अब उसके साथ कुछ समय बिता पाउंगा.’

पैरालंपिक से पहले झझारियो ने अप्रैल-जून में फिनलैंड के क्योरटेन में प्रैक्टिस किया जहां उनकी कीनियाई भाला फेंक खिलाड़ी यूलियस येगो से दोस्ती हुई जिन्हें वह अपना सबसे बड़ा प्रेरक मानते हैं. झझारिया ने कहा कि उनकी मां जिवानी देवी और पत्नी राष्ट्रीय स्तर की पूर्व कबड्डी खिलाड़ी मंजू ने उनकी सफलता में अहम भूमिका निभाई.

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