
‘पत्ते क्या झड़ते हैं
पाकिस्तां में वैसे ही
जैसे झड़ते यहां
ओ हुसना’
पीयूष मिश्रा द्वारा लिखा और गाया गया ये गाना यू-ट्यूब पर अक्सर ट्रेंड में रहता है. हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच जो रिश्ता है, उस रिश्ते को बयां करने के लिए ये गाना बिल्कुल सटीक भी है. पाकिस्तान में इन दिनों जो चल रहा है, वो पेड़ों से झड़ते पत्तों की तरह ही है. क्योंकि चार साल से चल रही सरकार गिरने की हालत में पहुंच गई है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) कभी भी सत्ता से बाहर हो सकते हैं और प्रधानमंत्री पद छिन सकता है. इमरान खान के साथ हालात कुछ इस तरह बदले कि उनको लेकर अलग-अलग मीम्स बनने लगे हैं. इन मीम्स में पूर्व भारतीय क्रिकेटर और इमरान खान के दोस्त नवजोत सिंह सिद्धू की भी एंट्री हुई है. क्योंकि कुछ वक्त पहले सिद्धू अर्श पर थे, लेकिन पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव के बाद वो भी फर्श भी नज़र आए.
क्रिकेट के मैदान पर 'दुश्मन', राजनीति में बने दोस्त!
साल 1989 में जब टीम इंडिया (Team India) ने पाकिस्तान (Pakistan) का दौरा किया था. टीम इंडिया की बल्लेबाजी चल रही थी और नवजोत सिंह सिद्धू कराची टेस्ट की दूसरी पारी में 85 रनों पर खेल रहे थे. सिद्धू पहली पारी में ज़ीरो पर आउट हुए थे, ऐसे में नज़र थी कि दूसरी पारी में सेचुरी कर ली जाए. लेकिन ये हो नहीं पाया, क्योंकि सामने पाकिस्तान के कप्तान इमरान खान बॉलिंग करने आए और उनकी एक गेंद पर रमीज़ राजा (मौजूदा में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष) ने उनका कैच लपक लिया.
नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान के खिलाफ उन्हीं की धरती पर चार टेस्ट मैच खेले हैं, इनमें उनके नाम तीन अर्धशतक दर्ज हैं. कुल सात पारियों में इमरान खान ने दो बार नवजोत सिंह सिद्धू को आउट किया, जबकि एक बार उनका कैच भी लपका. क्रिकेट के मैदान पर चली ये दुश्मनी जब राजनीति की पिच पर आई, तो दोस्ती में बदल गई.
बीते कुछ वक्त में ऐसे कई मौके आए हैं, जब कांग्रेस नेता और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ने खुले मंच पर इमरान खान की तारीफ की और उन्हें अपना दोस्त बनाया. ये सब तब हुआ जब देश में वक्त-वक्त पर पाकिस्तान के साथ रिश्तों को लेकर तनाव बढ़ता गया है. राजनीतिक तौर पर नवजोत सिंह सिद्धू को इन बयानों के लिए बैकफुट पर भी गए, लेकिन ‘दोस्त’ इमरान खान के लिए उनका याराना कम नहीं हुआ.
अर्श से फर्श पर आए इमरान खान..
आज से करीब चार साल पहले इमरान खान जब अपनी पार्टी की रैलियों में गरजते थे और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर लाहौर-कराची-इस्लामाबाद की सड़कों पर निकले, तब ऐसा लगा कि वह पाकिस्तान में एक नई क्रांति का प्रतीक बनेंगे. आंदोलन की उस लहर में इमरान खान चुनाव जीते और सरकार भी बना ली. लेकिन उसके बाद से ही अर्श से फर्श पर आने का सिलसिला भी शुरू हुआ.
इमरान खान पर लगातार पाकिस्तानी सेना की इशारों पर सरकार चलाने का आरोप लगा, लगातार उनके बयानों, नीतियों ने पाकिस्तान को घरेलू और ग्लोबल लेवल पर संकट में डाला. जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ मशाल उठाकर इमरान खान सरकार में आए थे, उसी भ्रष्टाचार की आंच अब उनकी सरकार पर आती दिख रही है और इसी वजह से सरकार जाने की कगार पर है. क्रिकेट के मैदान पर इमरान खान की कप्तानी और उनका ऑलराउंडर खेल विरोधी टीम की चिंता बढ़ाता रहा है. लेकिन राजनीति की पिच पर इस वक्त इमरान खान खुद बाउंसर और यॉर्कर झेल रहे हैं.
हाल ए नवजोत सिंह सिद्धू...
इमरान खान से हटकर अगर बात नवजोत सिंह सिद्धू की जाए, तो भारतीय जनता पार्टी छोड़ने के बाद उन्होंने कांग्रेस में एंट्री ली और जिस तरह की हुंकार भरी उसने पार्टी के लिए एक उम्मीद पैदा की. कांग्रेस में रहकर ही नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर निशाना साधा, अपनी ही सरकार को आड़े हाथों लिया.
‘गुरू’ सिद्धू ने ऐसा माहौल बनाया कि वह पंजाब में अपनी पार्टी के अध्यक्ष बने. हालांकि, लंबे वक्त से नवजोत सिंह सिद्धू की कोशिश पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने की थी. लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सके. सिद्धू की मोर्चाबंदी के कारण कांग्रेस आलाकमान ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने का फैसला तो लिया, लेकिन उनकी जगह दलित चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया.
नवजोत सिंह सिद्धू यहां भी मात खा गए, ऐसे में जिस उम्मीद को लेकर वह कांग्रेस में आए और अपना प्लान पेश किया वह उसमें सफल होते नहीं दिखे थे. पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा चरणजीत सिंह चन्नी को ही रखा. पार्टी को इसका भारी नुकसान हुआ और पंजाब में ऐतिहासिक जीत के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई.
नवजोत सिंह सिद्धू की किस्मत भी ऐसी रही कि वह जिस ‘लाफ्टर चैलेंज’ शो में जज थे, उसी में कंटेस्टेंट बने भगवंत मान राजनीतिक पिच पर गुरू पर भारी पड़ गए. और चुनाव के बाद भगवंत मान ही पंजाब के मुख्यमंत्री बने.