
353 रन और वीवीएस लक्ष्मण. काफ़ी मज़ेदार कॉम्बिनेशन. सिडनी में साल 2004 में सचिन तेंदुलकर के साथ लक्ष्मण ने मिलकर 353 रन बनाए. स्टीव वॉ का आखिरी मैच, जिसमें उन्हें एक वक़्त हार का डर सताने लगा था. सचिन और लक्ष्मण ने मिलकर मैच के तीसरे दिन की सुबह सबसे पहले ब्रेट ली को 3 ओवर में 7 चौके मारे और यहीं से सारा खेल उल्टा हो गया. इन 7 चौकों में 5 लक्ष्मण ने मारे थे. टेस्ट मैच ड्रॉ हुआ और इंडिया ने बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी पर अपना कब्ज़ा जमाये रखा. मैच ख़तम होने के बाद जस्टिन लैंगर ने कहा कि उन्होंने अब तक अपने करियर में इतनी मज़बूत टीम से कभी भी नहीं खेला था. लेकिन लक्ष्मण के करियर के हिसाब से देखें तो इन 353 रनों से भी ज़्यादा ज़रूरी एक और 353 रन थे. वो 353 रन जो उन्होंने अकेले बनाए थे. डोमेस्टिक क्रिकेट में.
11 अप्रैल 2000. बेंगलुरु में रणजी ट्रॉफ़ी का सेमी फाइनल खेला जा रहा था. हैदराबाद और मैसूर के बीच. हैदराबाद ने पहले बैटिंग करनी शुरू की और वन-डाउन खेलने के लिए आया वंगिपुरप्पु वेंकट साई लक्ष्मण. कुल 560 गेंदें खेली और 353 रन बनाए. टू-डाउन पर आये हुए मोहम्मद अज़हरूद्दीन के साथ मिलकर 288 रनों की पार्टनरशिप बनाई. उन 396 गेंदों के बारे में सोचिये तो मालूम चलेगा कि इस पूरे दौरान भारतीय क्रिकेट की सबसे कीमती कलाइयां अपने काम पर थीं. अज़हरुद्दीन ने 204 गेंदों में 123 रन बनाए थे.
12 अप्रैल 2000. दिन ख़तम होते-होते लक्ष्मण ने अपना स्कोर 346 कर लिया था. अपने फ़र्स्ट क्लास करियर में वो दूसरी बार 300 रन के पार पहुंचे थे. इस सीज़न में वो अपनी फ़ॉर्म के चरम पर थे. ये वो समय था जब एक सीज़न में खेले 10 डोमेस्टिक फ़र्स्ट क्लास मैचों में उन्होंने 10 सेंचुरी मारी थीं. लक्ष्मण के शहर हैदराबाद में एक डॉक्टर कुलबुला रहा था. वो डॉक्टर भी था, जैज़ म्यूज़िक का शौक़ीन और एक अच्छा ड्रमर भी. इसके साथ एक फ़न उसे और आता था – बल्लेबाज़ी. वो कुलबुला इसलिये रहा था क्यूंकि उसे लक्ष्मण की इनिंग्स देखनी थी.
डॉक्टर को ख़बर मिल चुकी थी कि लक्ष्मण अगले दिन भारतीय फ़र्स्ट क्लास का सबसे बड़ा स्कोर तोड़ सकता है – भाऊसाहब निम्बलकर के 443 रन. लेकिन इन रनों के पहले एक अदना सा स्कोर और पड़ता था. 366 रनों का. ये 366 रन उसी डॉक्टर ने बनाये थे. डॉक्टर का नाम – एम वी श्रीधर. उन्हें ख़ुशी थी कि उनका रिकॉर्ड कोई हैदराबादी ही तोड़ने वाला था. वो हैदराबादी जो उनके सामने पनपा था. पहले ही रणजी मैच में जब उसे असफलता मिली थी (लक्ष्मण ज़ीरो पर आउट हुए थे) तो एमवी श्रीधर ने ही उसे पुचकारा था और आगे चलने की राह दिखाई थी.
श्रीधर ने अपनी गाड़ी निकाली और बेंगलुरु के लिए निकल पड़े. रात भर में 550 किलोमीटर का सफ़र तय किया और सुबह वो स्टेडियम में मौजूद थे. लेकिन किस्मत का खेल ऐसा कि लक्ष्मण ने श्रीधर का रिकॉर्ड नहीं तोड़ा. आज भी सबसे बड़े भारतीय फ़र्स्ट क्लास स्कोर में भाऊसाहब का नाम सबसे ऊपर, फिर संजय मांजरेकर (377 रन) , फिर श्रीधर (366 रन), फिर विजय मर्चेंट (359 रन) और फिर वीवीएस लक्ष्मण (353 रन) का नाम आता है.
51 साल के एमवी श्रीधर की अक्टूबर 2017 में मौत हुई. उनके मरने के बाद उन पर एक किताब लिखी गयी – रेनीज़ां मैन. इस किताब के इंट्रो में वीवीएस लक्ष्मण ने लिखा – “मैं उस रोज़ श्रीधर के रिकॉर्ड को तोड़ नहीं पाया. मुझे लगता है कि ये सही ही रहा कि वो रिकॉर्ड उनके नाम ही रहा.”
साल 2008 में मंकीगेट मसले में डॉक ने अहम् भूमिका निभाई थी. न्यूज़ीलैंड के हाई कोर्ट जज के सामने अपील की गयी थी और इस सुनवाई के पूरे प्रकरण के दौरान एक शख्स जो कि BCCI और खिलाड़ियों और मीडिया के बीच एक पुल का काम कर रहा था, वो स्वयं एमवी श्रीधर ही थे. श्रीधर उस वक़्त टीम इंडिया के असिस्टेंट मैनेजर के पद पर काम कर रहे थे. ये पहली दफ़ा था जब श्रीधर टीम इंडिया के साथ ऐसे किसी टूर पर आये हुए थे. और ये पहली दफ़ा था जब श्रीधर और हरभजन आपस में बातें कर रहे थे.
भारतीय क्रिकेट बोर्ड से होने वाली सभी बातें खिलाड़ियों तक श्रीधर के ज़रिये ही पहुंचती थीं. और ये बेहद ज़रूरी था. क्यूंकि ऐसे नाज़ुक मौके पर अच्छा कम्युनिकेशन ही सब कुछ ठीक कर सकता था. इस कम्युनिकेशन के लिए एक चैनल चाहिये था जो श्रीधर के रूप में मिला. श्रीधर को मालूम था कि चूंकि ये एक हाई प्रोफ़ाइल मामला था और होते-करते दोनों बोर्ड्स (खासकर भारतीय क्रिकेट बोर्ड) की साख का मामला बन चुका था, इसलिए मीडिया में, या कहीं भी और, कुछ भी कह देना ठीक नहीं होगा.
सुनवाई के लिए जाते वक़्त हरभजन को श्रीधर ही तैयार करते थे. गाड़ी में दोनों बातें करते. हरभजन को वो रिलैक्स रखने की पूरी कोशिश करते. उन्हें बताते कि जज के सामने उन्हें क्या और कैसे कहना है. भज्जी ने उस घटना के बाद हमेशा ये कहा कि उस मामले में उनका बरी होना श्रीधर की वजह से ही संभव हो सका था. इन सारे पचड़ों के बाद हरभजन से नस्लभेदी टिप्पणी के चार्ज हटाये गए और उन्हें 50% मैच फ़ीस का झटका मात्र लगा.
श्रीधर इसके बाद भारतीय क्रिकेट के एडमिनिस्ट्रेटिव मसलों में गहराई से शामिल रहे. 2013 में जनरल मैनेजर बने. डोमेस्टिक क्रिकेट की देख-रेख करने वाले श्रीधर आगे चलकर प्लेयर्स और सेलेक्टर्स के बीच बांध बने, आईसीसी मीटिंग में गए, इंटरनेशनल और डोमेस्टिक शेड्यूल्स की देखरेख करने लगे. सितम्बर 2017 में उन्होंने अपने इस पद को छोड़ा. वो आराम करना चाहते थे.
नवम्बर की 2 तारीख को श्रीधर की बेटी का जन्मदिन था. वो उसी की तैयारी में लगे हुए थे. जन्मदिन से 2 रोज़ पहले यानी 30 अक्टूबर 2017 को श्रीधर ने अपने भाई को फ़ोन किया और बताया कि उन्हें अपनी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. उनका भाई घर आया. लेकिन फिर श्रीधर को बेहतर लगने लगा और दोनों ने दोपहर का खाना खाया. उनका भाई चला गया. इसके 2 घंटे बाद उन्हें हार्ट अटैक आया और उन्हें अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.