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On This Day: जब सुनील गावस्कर इतना नाराज हुए थे कि दूसरे बल्लेबाज को लेकर मैदान से बाहर जाने लगे

ठीक 33 साल पहले भारतीय सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर अंपायर के फैसले से इतना नाराज हो गए कि वह गलत आउट दिए जाने के बाद अपने साथी खिलाड़ी को भी पवेलियन ले जाने लगे.

Sunil Gavaskar (Getty) Sunil Gavaskar (Getty)
केतन मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 10 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 2:34 PM IST
  • अंपायर के फैसले ने किया था गावस्कर को नाराज
  • जब गलत आउट दिए जाने के विरोध में साथी खिलाड़ी को भी पवेलियन ले जाने लगे गावस्कर

2014 के एमसीसी काऊड्री लेक्चर के दौरान पैनल में 3 लोग बैठे थे. इंग्लैंड के पूर्व कप्तान इयान बॉथम, पूर्व इंग्लिश विकेटकीपर मैट प्रायर और पूर्व भारतीय खिलाड़ी सुनील गावस्कर. इनके साथ ब्रॉडकास्टर और क्रिकेट पंडित मार्क निकोलस बातचीत कर रहे थे. इस दौरान स्लेजिंग के बारे में तीनों लोगों ने अपने विचार रखे.

एक मौके पर सुनील गावस्कर ने कहा, "सच कहूं तो आप जो भी कहते हैं, वो टीवी पर देखा जा रहा होता है. वो नई पीढ़ी के लिए एक ख़राब उदाहरण पेश करता है. आप चाहे गाली दे रहे हों, आप चाहे गाली नहीं दे रहे हों, वो एक ख़राब उदाहरण पेश करता है. और जो बातचीत होनी चाहिए, वो सिर्फ़ और सिर्फ़ बल्ले और गेंद के बीच होनी चाहिए. इस बात में मेरा पूर्ण विश्वास है."

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यही सुनील गावस्कर अपनी कही इस बात से 33 साल पहले, जब वो भारतीय ओपनिंग बल्लेबाज़ हुआ करते थे, आउट दिए जाने के बाद अम्पायर के फैसले से इतने नाराज़ दिखे थे कि अपने साथी बल्लेबाज़ को भी अपने साथ ले जाने लगे. सुनील गावस्कर की ये कहानी क्रिकेट की तमाम यादगार कहानियों में से एक है जो आज ही के दिन, 10 फ़रवरी 1981 को घटी थी. 

इस सीरीज में नहीं चला गावस्कर का बल्ला

भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया में थी. 2 सीरीज़ एक साथ चल रही थीं. भारत-ऑस्ट्रेलिया-न्यूज़ीलैंड के बीच वन-डे सीरीज़ और भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच 3 टेस्ट मैचों की सीरीज़. 8 वन-डे मैचों के बाद पहला टेस्ट मैच हुआ. इसके बाद बाक़ी के 7 वन-डे मैच हुए और फिर तीसरा मैच खेला गया. वन-डे सीरीज़ में भारतीय टीम बाहर हो गई और फिर न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच बेस्ट ऑफ़ फ़ाइव फ़ाइनल खेला गया जिसे 3-1 से ऑस्ट्रेलिया ने जीता. जिस घटना का यहां ज़िक्र किया जा रहा है, वो इन फ़ाइनल मैचों के बाद खेला गया. 

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भारतीय टीम ख़ासे वक़्त से ऑस्ट्रेलिया में थी. टेस्ट मैचों में ऑस्ट्रेलिया एक जीत चुकी थी जबकि एक मैच ड्रॉ हुआ था. इस सीरीज़ में अम्पायरिंग पर र्भी सवाल उठे थे. भारतीय खिलाड़ियों के दिमाग में ऐसे कई मौके थे जिनके बारे में उनका मानना था कि वो ग़लत फैसले थे. ज़ाहिर सी बात है कि ये सभी फैसले ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में गए थे. इसके अलावा, ये सुनील गावस्कर के लिए भी एक ख़राब सीरीज़ साबित हो रही थी.

पहले मैच की पहली पारी में वो ज़ीरो पर आउट हुए, उसके बाद 10 पर. दूसरे मैच में वो 23 और 5 पर आउट हुए. इससे भी बड़ी बात ये थी कि दूसरे मैच की पहली पारी में वो बोल्ड आउट हुए. ख़ैर, अब मैच मेलबर्न में था और यहां भी पहले बैटिंग करते हुए सुनील गावस्कर ने 10 रन ही बनाए. गुंडप्पा विश्वनाथ ने सेंचुरी मारी और भारत ने 237 रन बनाए. जवाब में ऑस्ट्रेलिया की ओर से ग्रेग चैपल, एलन बॉर्डर और डग वाल्टर्स ने बढ़िया रन बनाए.. बॉर्डर ने तो शतक भी मारा. ऑस्ट्रेलिया ने कुल 419 रन बनाए.

Sunil Gavaskar lost his wicket to Rodney Hogg in Sydney 1981 (Getty)

182 रन से पीछे चल रही इंडिया ने फिर से बैटिंग करनी शुरू की. इस बार गावस्कर का बल्ला भी चला. चेतन चौहान और सुनील गावस्कर ने मिलकर बड़ी पार्टनरशिप शुरू की. तीसरा दिन का खेल ख़तम हुआ तो गावस्कर 59 रन और चौहान 41 रन बनाकर खेल रहे थे. और कहानी चौथे दिन की है.

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दोनों ने मिलकर 57 रन और बनाए. और फिर डेनिस लिली की एक गेंद जाकर गावस्कर के पैड में लगी. गावस्कर का पैड एकदम स्टम्प के आगे था. इसमें कोई शक नहीं था कि उनका पैर नहीं होता तो गेंद विकेटों के बीचों-बीच जाकर लगती. ज़ोरदार अपील हुई और अम्पायर रेक्स व्हाइटहेड ने उंगली उठा दी. अम्पायर रेक्स व्हाइटहेड पहली दफ़ा टेस्ट मैचों में अम्पायरिंग कर रहे थे और ऑस्ट्रेलिया के ही थे.

अंपायर के फैसले से नाराज थी भारतीय टीम

इन्हीं जनाब से भारतीय टीम को दिक्कत भी थी. भारतीय टीमानुसार व्हाइटहेड ने कई आपत्तिजनक फैसले दिए थे और उनमें एक भी भारत के पक्ष में नहीं था. सनद रहे कि क्रिकेट की दुनिया को अभी माइक गैटिंग बनाम शकूर राणा वाली वो घटना अभी देखनी बाक़ी थी (7 दिसंबर 1987), जिसके बाद न्यूट्रल अम्पायरों का दौर शुरू हुआ था. 

सुनील गावस्कर से रहा नहीं गया. अम्पायर के फैसले के बाद वो क्रीज़ पर ही खड़े रहे. उन्होंने अपने हाव-भाव से बकायदे ये जताया कि वो इस फैसले से ख़ुश नहीं थे. इतने में डेनिस लिली, जो इस पारी में अपना तीसरा स्पेल लेकर आए थे और ये उनकी पहली सफ़लता थी, गावस्कर की तरफ़ आक्रामकता के साथ आगे बढ़े. उन्होंने जाकर गावस्कर के पैड पर उंगली रख दी, जहां उनके हिसाब से गेंद लगी थी. इतनी ही देर में गावस्कर के इर्द-गिर्द ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी आ चुके थे.

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हर कोई कुछ न कुछ कह रहा था. लिली उन्हें पवेलियन की ओर जाने को कह रहे थे और गवास्कर लगातार ये बता रहे थे कि गेंद उनके बल्ले का भीतरी किनारा लेकर पैड पर गयी थी. गावस्कर का पारा भी बढ़ रहा था. लिली भी अग्रेसिव हो रहे थे. लेकिन चूंकि फैसला दिया जा चुका था और गावस्कर कुछ नहीं कर सकते थे, वो अपनी निराशा और नाराज़गी ज़ाहिर करके आगे बढ़ने लगे.

उन्होंने पिच को पार किया, लेकिन फिर पीछे मुड़े और अपने साथी चेतन चौहान से भी वापस चलने को कहा. वो कुछ कदम पीछे आए. चेतन चौहान के पास पहुंचे और उन्हें पीठ पर धक्का देकर अपने साथ ले चलने लगे.

बापू नादकर्णी के समझाने पर माने सुनील गावस्कर

ये दृश्य देखकर भारत के टूर मैनेजर विंग कमांडर शाहिद दुरानी दौड़कर बाउंड्री लाइन पर आ खड़े हुए. सुनील गावस्कर चेतन चौहान को लेकर बाउंड्री पर आए तो वहीं शहीद दुरानी और असिस्टेंट मैनेजर बापू नादकर्णी ने उन्हें रोका. गावस्कर को समझाया गया. उन्हें बताया गया कि यदि उन्होंने मैदान यूं छोड़ दिया तो मैच ऑस्ट्रेलिया को दे दिया जाएगा और भारत बगैर खेले ही हार जायेगा. गावस्कर पर इन लोगों की बातों का असर पड़ा और उन्होंने चेतन चौहान को वापस जाने दिया. क्रीज़ में उनका साथ देने 'कर्नल' वेंगसरकर आए.

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बाद में गावस्कर ने एक बात साफ़ की. उन्होंने कहा कि वो अम्पायर के फैसले से नाख़ुश थे. लेकिन इतने नहीं कि चेतन चौहान को भी अपने साथ ले जाते. फिर उन्हें इतना गुस्सा क्यूं आया? इसके जवाब में सुनील गावस्कर ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने वहां स्लेजिंग करनी शुरू कर दी थी जो कतई शालीन नहीं थी. जिस तरीक़े की बातें उनसे कही जा रही थीं, और जिस तरीक़े से खिलाड़ी उनके साथ पेश आ रहे थे, उन्हें अच्छा नहीं लगा और एक कप्तान होने के नाते उन्होंने वहीं ये फैसला ले लिया कि ऐसी टीम के साथ उन्हें आगे खेलना ही नहीं था. 

सालों के बाद, 2020 के आख़िरी हिस्से में भारतीय टीम के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर थी. सुनील गावस्कर बतौर ब्रॉडकास्टर ऑस्ट्रेलिया में मौजूद वहां. वहां 7क्रिकेट के एक प्रोग्राम में डेमियन फ़्लेमिंग से बात करते हुए उन्होंने एक और मज़ेदार बात बतायी. उन्होंने कहा कि असल में उस घटना के एक दिन पहले एलन बॉर्डर बल्लेबाज़ी कर रहे थे और उनकी पारी के दौरान 3 ऐसे मौके आए जब भारतीय टीम को लगा कि वो आउट थे. चौथी बार वो बोल्ड हुए तो मुख्य अम्पायर ये पता करने के लिये कि क्या गेंद वाकई विकेटों में लगी थी, चलकर लेग अम्पायर के पास जाने लगे.

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विकेट के पीछे खड़े सैयद किरमानी ने सुनील गावस्कर के कहा कि अगर ये आउट नहीं दिया गया तो वो मैदान छोड़कर चले जाएंगे. गावस्कर ने उनसे कहा कि वो ऐसा नहीं कर सकते थे. इसपर किरमानी ने कहा कि बात अप उनके आत्म-सम्मान पर आ गयी थी. ये बात गावस्कर के दिमाग़ में घर कर गई और अगले दिन, जब उन्हें एक ख़राब फैसले का सामना करना पड़ा तो उन्होंने अपने पार्टनर चेतन चौहान से मैदान से चलने को कहा. अच्छी बात ये रही कि टीम के अधिकारियों ने उन्हें समझाया और मैच दोबारा शुरू हुआ.

डेनिस लिली के लिये ये विकेट असल में एक रिकॉर्ड था, लेकिन वो एक विवाद के शोर/सन्नाटे में दब गया. गावस्कर का ये विकेट उनके करियर का 24 वां विकेट था और वो रिची बेनो को पीछे कर ऑस्ट्रेलिया के लिए सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बन गए थे. 

अंत में, ये मैच भारत ने जीता. अच्छी ओपनिंग पार्टनरशिप के बाद ये घटना घटी और इसमें चेतन चौहान की बुद्धि हिल गई. वो कुछ ही देर में आउट हो गए. लेकिन फिर वेंगसरकर, गुंडप्पा विश्वनाथ और संदीप पाटिल ने ठीक-ठाक रन बनाए और ऑस्ट्रेलिया के सामने 143 रनों का आसान लक्ष्य रखा गया. चौथा दिन ख़त्म होते-होते ऑस्ट्रेलिया के 3 विकेट गिर चुके थे. करसन घावरी ने 2 और दिलीप दोषी ने 1 विकेट लिया था. कपिल देव अपनी जांघ के दर्द से जूझ रहे थे.

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उन्होंने मैच के चौथे दिन की रात को दर्द मिटाने वाले इंजेक्शन लिये. अगली सुबह भी उन्हें एक इंजेक्शन दिया गया. बल्लेबाज़ी के दौरान ठीक से पैर निकालकर खेलने में दिक्कत महसूस करने वाले कपिल ने पेन-किलर इंजेक्शनों के सहारे गेंदबाज़ी शुरू की और ऑस्ट्रेलिया की बल्लेबाज़ी तहस-नहस कर दिया. पांचवें दिन किम ह्यूज़ को दिलीप दोषी ने आउट किया. स्कोर था 40 रन पर 4 विकेट. इसके बाद कपिल देव के अंधड़ में ऑस्ट्रेलिया की बल्लेबाज़ी उड़ गयी. अगले 43 रनों में ऑस्ट्रलिया धराशायी हो गई. कपिल देव ने 28 रन देकर 5 विकेट लिये.

 

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