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पीआर मानसिंह: 1983 वर्ल्डकप में टीम का मैनेजर, जिसने उधार पर सारा सामान इंग्लैंड पहुंचाया

पीआर मानसिंह को टीम इंडिया का बड़ा भाई माना जाता था. टीम इंडिया में बतौर खिलाड़ी तो वो एंट्री नहीं ले सके, लेकिन उन्होंने बतौर डिप्टी मैनेजर ड्रेसिंग रूम में एंट्री ज़रूर ली. वो भी पाकिस्तान के दौरे पर, क्योंकि साल 1978 में जब भारत ने तय किया कि टीम इंडिया सीरीज़ खेलने के लिए पाकिस्तान जाएगी तब वह पूरी तरह से राजनीतिक क्रिकेट सीरीज़ समझी जा रही थी.

पीआर मानसिंह (सबसे दाएं) (Getty) पीआर मानसिंह (सबसे दाएं) (Getty)
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 25 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 9:56 AM IST

साल 1965-66 की बात है जब रणजी ट्रॉफी का सीज़न चल रहा था. हैदराबाद की टीम अपने मुकाबले खेल रही थी, लेकिन एक खिलाड़ी था जिसे टीम में शामिल नहीं किया गया. उस प्लेयर का काम यही था कि वो सिर्फ बेंच पर बैठा रहता था, ताकि कभी तो वो सुबह होगी कि कप्तान बोलेगा तुम आज खेल रहे हो. लेकिन ये इतना आसान नहीं था क्योंकि टीम में खेलने वाले दूसरे खिलाड़ियों में मंसूर अली खान पटौदी, अब्बास अली बेग, हबीब अहमद जैसे बड़े नाम शामिल थे. 

तो एक दिन एक सीनियर प्लेयर ने बेंच पर बैठे इस खिलाड़ी से कहा, ‘मियां, कबतक बेंच पर बैठे रहोगे’. और सलाह दी कि यहां बैठने पर वक्त खराब नहीं करो और मैदान से बाहर चीज़ों को संभालने का काम करो.

सलाह ने कर दिया जादू

सलाह देने वाला वो सीनियर प्लेयर गुलाम अहमद था, जो उस वक्त के बेहतरीन ऑफ स्पिनर में गिना जाता था. सुभाष गुप्ते, वीनू मांकड़ के साथ गुलाम अहमद की तिकड़ी तब देश के बेस्ट स्पिनर्स में से एक थे. जिस प्लेयर को सलाह दी गई थी उसका नाम था पीआर मान सिंह. अपने सीनियर खिलाड़ी की सलाह मानकर क्रिकेट छोड़ एडमिनिस्ट्रेशन में घुसने वाले पीआर मान सिंह बाद में 1983 वर्ल्डकप जीतने वाली भारतीय टीम के बड़े भाई थी, जो ना होते तो शायद ये सपना कभी पूरा ही नहीं होता. 

पीआर मानसिंह को टीम इंडिया का बड़ा भाई माना जाता था. टीम इंडिया में बतौर खिलाड़ी तो वो एंट्री नहीं ले सके, लेकिन उन्होंने बतौर डिप्टी मैनेजर ड्रेसिंग रूम में एंट्री ज़रूर ली. वो भी पाकिस्तान के दौरे पर, क्योंकि साल 1978 में जब भारत ने तय किया कि टीम इंडिया सीरीज़ खेलने के लिए पाकिस्तान जाएगी तब वह पूरी तरह से राजनीतिक क्रिकेट सीरीज़ समझी जा रही थी. तय हुआ कि बड़ौदा के महाराजा को टीम का मैनेजर बनाकर साथ भेजा जाएगा, लेकिन उन्होंने आगे शर्त रख दी कि मैं ऐसा तब करूंगा जब पीआर मानसिंह को मेरा डिप्टी बनाया जाएगा. और इस तरह ड्रेसिंग रूम में पीआर मानसिंह घुस गए.

इस तरह टीम इंडिया के लिए क्रिकेट खेलने का सपना देखने वाले पीआर मानसिंह की एंट्री हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन में बतौर अधिकारी काम करते-करते मैनेजर बनकर टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में हो गई. अब अगर साल 1983 के वर्ल्डकप की बात करें तो ये वो दौर था जब टीम इंडिया को कोई तवज्जो नहीं दी जाती थी, ना घर में और ना ही बाहर. 

पिता का वो सपना

क्योंकि उससे पहले कुछ ऐसा नहीं हुआ था कि इंडिया क्रिकेट के मैदान पर कुछ कारनामा कर दे और लोग जश्न मनाएं या खिलाड़ियों का स्वागत-सतकार हो सके. ऐसे माहौल में पीआर मानसिंह को टीम के साथ वर्ल्डकप जिताने की जिम्मेदारी मिली. जब तय हुआ कि बतौर मैनेजर वो टीम इंडिया के साथ इंग्लैंड जा रहे हैं तब मानसिंह के पिता ने अपनी दुकान में एक अलमारी खाली करवाई और काम करने वालों से कहा कि मेरा बेटा इंग्लैंड जा रहा है, कप लेकर आएगा. जिस टीम इंडिया ने अभी तक के दो वर्ल्डकप में सिर्फ एक ही मैच जीता हो, उस टीम के मैनेजर के पिता बड़े ही गर्व के साथ इस बात का ऐलान कर रहे थे. जबान पर सरस्वती बैठने वाली कहावत यहां पर पूरी तरह सत्य वचन बन गई. 

वर्ल्डकप की घड़ी नज़दीक थी, सुनील गावस्कर को हटाकर कपिल देव टीम इंडिया के कप्तान बन चुके थे. एक युवा कप्तान की अगुवाई में 14 खिलाड़ियों की टीम को वर्ल्डकप जीतने की जिम्मेदारी दी गई. उनके साथ पंद्रहवा व्यक्ति खुद मानसिंह थे. अधिकतर खिलाड़ी इसे छुट्टियां ही समझ रहे थे, क्योंकि हर किसी को पता था कि हम तो कुछ ही मैच में बाहर हो जाएंगे. 

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उधार का लगेज

खैर, मुंबई में सभी खिलाड़ी इकट्ठा हुए और लंदन रवानगी की तैयारी हुई. टीम के साथ तब चार खिलाड़ी मौजूद नहीं थे. कपिल देव, मदन लाल, कीर्ति आजाद और मोहिंदर अमरनाथ, ये सभी पहले से ही इंग्लैंड में थे जहां वो क्लब क्रिकेट खेलते थे. अक्सर होता है कि टीम इंडिया किसी बड़े टूर पर जाए तो उन्हें शानदार विदाई दी जाती है. यहां तो टीम मिशन वर्ल्डकप के लिए निकल रही थी, लेकिन विदाई देने वाला कोई नहीं था. 

पीआर मानसिंह भी इन सभी के साथ ही थे, तब ऑल इंडिया रेडियो वाले शख्स ने उनसे वर्ल्डकप के सपने को लेकर सवाल किया. मानसिंह ने अपने पिता की बात पर विश्वास जताया और बोल दिया कि अगर ये टीम सेमीफाइनल तक नहीं पहुंची, तो कोई भी इंडियन टीम नहीं पहुंच सकती. 

लेकिन सबकुछ इतना आसानी से थोड़ी हो जाता है. मुंबई के एयरपोर्ट पर ही पहली मुसीबत आ गई. खिलाड़ियों के पास जो सामान था, वो तय मात्रा से ज्यादा था. क्योंकि कई खिलाड़ी अपने परिवार के साथ जा रहे थे, कुछ घूमने-फिरने का सपना देखकर जा रहे थे ऐसे में उनके पास अपना काफी सामान थे. यहां तक की खिलाड़ियों के पास आम, घर की बनी हुई चीज़ें थी. सामान पहुंचवाने की जिम्मेदारी पीआर. मानसिंह की थी तब उन्होंने एयरपोर्ट के स्टाफ से कई मन्नतें की. लेकिन कुछ भी काम नहीं आ सका, ऐन में यह तय हुआ कि ज्यादा सामान के पैसे दे दिए जाएं. 

लेकिन मुसीबत ये थी कि तब उतने पैसे किसी के पास नहीं थे, तो क्या किया जाए? तब टीम के मैनेजर पीआर मानसिंह और बीसीसीआई के एक अधिकारी ने एयरपोर्ट वालों को लिखित में दिया कि पैसे कल तक पहुंच जाएंगे, आप बस हमें सामान ले जाने दीजिए. इन मुश्किलों को पार करके किसी तरह टीम इंडिया इंग्लैंड के लिए रवाना हो पाई.  

पीआर मानसिंह और वेजिटेरियन खाना

पीआर मानसिंह को सभी खिलाड़ियों ने बड़े भाई की तरह सम्मान दिया. तब वह टीम में एक मैनेजर की भूमिका निभाने के साथ-साथ एक कोच का रोल भी निभा रहे थे. क्योंकि तब टीम इंडिया के पास कोई कोच नहीं था. ऐसे में बार-बार खिलाड़ियों से टीम में, अलग-अलग जाकर बात करना ही पीआर मानसिंह का काम था. जब टीम लंदन पहुंची, तो सारे लोग इकट्ठा हुए. इंग्लैंड में क्रिकेट खेल रहे चारों प्लेयर भी आ गए. ये वो दौर था जब टीम के मैनेजर को एक जासूस की तरह देखा जाता था, क्योंकि वह खिलाड़ियों की हर हरकत को बोर्ड से बताता था. लेकिन पीआर मानसिंह ने उसको बदल दिया, टीम की जो भी मीटिंग होती थी वो उनके ही कमरे में होती थी. कपिल देव अपनी बात कहते, सभी खिलाड़ी वहां मौजूद रहते. 

एक तरफ खिलाड़ियों के सामने वर्ल्डकप खेलने की चुनौती थी, हर मैच जीतने का टारगेट था. लेकिन पीआर मानसिंह के सामने बस उन 14 खिलाड़ियों को मैनेज करने, उनकी परेशानियों को दूर करने की चुनौती थी. मेन वर्ल्डकप शुरू होने से पहले जो प्रैक्टिस मैच खेले गए, उसमें तीन टीम इंडिया ने गंवा दिए. इससे किसी को हैरानी नहीं हुई, लेकिन जो एक परेशानी हुई वो पीआर मानसिंह को ही हुई. क्योंकि तब उन्हें पहली बार पता चला कि टीम में 3 खिलाड़ी वेजिटेरियन हैं. यशपाल शर्मा, के. श्रीकांत और सैयद किरमानी के लिए पीआर मानसिंह को ब्रेड, फल और बाकी खाने की व्यवस्था करनी पड़ी. उसके बाद पीआर मानसिंह ने एक नियम बना लिया, वह किसी भी होटल या स्टेडियम में जाते तो सबसे पहले रसोई का एक चक्कर लगा ही आते ताकि रसोईया को बता सकें कि तीन वेजिटेरियन लोगों की भी व्यवस्था रखना.  

बीसीसीआई के ‘जासूस’ ने बोर्ड के ही नियम तोड़ दिए

जैसा हमने पहले भी बताया कि उस दौर में टीम के मैनेजर को बीसीसीआई का जासूस माना जाता था, लेकिन मानसिंह ने उस नज़रिए को बदला था. इससे सबसे बेहतरीन सबूत तो यही है कि पीआर मानसिंह ने खिलाड़ियों के लिए BCCI के ही नियमों को ताक पर रख दिया था. ऐसा इसलिए क्योंकि वर्ल्डकप के वक्त ये नियम था कि जिन खिलाड़ियों की पत्नी साथ में हैं, वो प्लेयर्स के साथ सेम होटल में नहीं रुक सकती हैं. प्लेयर्स की पत्नियां अलग होटल में रुकी हुई थीं या अपने किसी जान-पहचान वाले के यहां थीं. 

तब के. श्रीकांत की नई-नई शादी हुई थी और उन्होंने पीआर मानसिंह से कहा कि मेरी वाइफ पास में ही एक रिश्तेदार के यहां रुकी हुई है, मैं एक रात के लिए वहां जाना चाहता हूं और सुबह वापस आ जाऊंगा. लेकिन पीआर मानसिंह ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, उल्टा उन्होंने कहा कि अपनी वाइफ को होटल बुला लो और यहां पर ही रोक लो. रोजर बिन्नी उस वक्त के. श्रीकांत के रूम पार्टनर के थे, तो पीआर. मानसिंह ने रोजर बिन्नी को अपने रूम में बुलाया और श्रीकांत अपनी वाइफ के साथ रुक पाए. ये बीसीसीआई के नियमों के खिलाफ था, लेकिन खिलाड़ियों के लिए पीआर मानसिंह ने ऐसा किया.

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पीआर मानसिंह और वो अंग्रेज़ पत्रकार

साल 1983 के वर्ल्डकप और पीआर मानसिंह से जुड़े कई किस्से हैं, जिनका ज़िक्र बार-बार किया जाता है. पीआर मानसिंह जब भारत से टीम के प्लेयर्स के साथ लंदन के लिए उड़े थे, तब शायद उनके पिता को ही भरोसा था कि उनका बेटा वर्ल्डकप वापस लाएगा. ऐसा हो भी गया, टीम के प्लेयर्स ने मैदान पर इतिहास रचा तो पीआर मानसिंह मैदान के बाहर हिसाब चुकता कर रहे थे. 

ऐसा ही एक हिसाब था, क्रिकेट मैग्ज़ीन के एडिटर डेविड फ्रिथ का. जब वर्ल्डकप-1983 की शुरुआत हो रही थी तब विस्डन ने एक स्टोरी की जो डेविड ने ही लिखी थी. उसमें उन्होंने कहा कि भारत, जिम्बाब्वे जैसी टीमों को वर्ल्डकप में हिस्सा ही नहीं लेना चाहिए, क्योंकि ऐसी टीमों को खेलना आता नहीं हैं बस वक्त की बर्बादी के लिए वो टूर्नामेंट में होते हैं. 

पीआर मानसिंह ने भी इस आर्टिकल को पढ़ा था, जब टीम इंडिया ने वर्ल्डकप जीत लिया तब उन्होंने डेविड फ्रिथ को एक लेटर लिखा. पीआर मानसिंह ने कहा कि आपने वर्ल्डकप से पहले हमारी टीम के लिए ऐसा कहा था, अब हमने ये वर्ल्डकप जीत लिया है तो आप क्या कहेंगे. ये लेटर डेविड के पास पहुंचा, उन्होंने इसके जवाब में जो किया वो यादगार था. 

विस्डन में वर्ल्डकप खत्म होने के कुछ वक्त बाद एक और आर्टिकल लिखा गया, जिसमें डेविड फ्रिथ की तस्वीर छिपी थी. एक हाथ में कॉफी, दूसरे हाथ में कुछ खाते हुए तस्वीर और आर्टिकल की हेडलाइन ‘Edible Words’. डेविड फ्रिथ ने लिखा कि इंडियन टीम के मैनेजर ने मुझे मेरे शब्दों को चबाने पर मजबूर कर दिया. 

साल 1983 की वर्ल्डकप जीत हर किसी को याद है, नई पीढ़ी ने उसके बारे में पढ़ा, सुना और कुछ हदतक देखा है. उस वर्ल्डकप से जुड़ी हर किसी की अपनी कहानियां हैं, किसी को मदनलाल का स्पेल भाता है तो कोई सिर्फ कपिल देव की कप्तानी का ज़िक्र करता है. लेकिन पर्दे के पीछे पीआर मानसिंह ने जिस तरह से टीम को संभाला, जब खिलाड़ियों को दिहाड़ी के हिसाब से पैसे मिलते थे, जब मैनेजर ही कोच, लॉजिस्टिक मैनेजर, ट्रेनर सबकुछ होते थे. उस दौर में पीआर मानसिंह इस इतिहास के हिस्सेदार बने. अब जब फिल्म 83 सभी के सामने आ रही है, तब खिलाड़ियों से अलग पीआर मानसिंह की कहानी जानना भी दिलचस्प होगा. 

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