
दुनिया में महिला अधिकार को लेकर तमाम बहसों के बीच एक मुल्क ऐसा है, जहां महिलाओं के चलने, पहनने, खेलने और यहां तक की बोलने पर भी पहरा है. दशकों से उनके 'वजूद' को कुचला जा रहा है. लेकिन इन तमाम पाबंदियों, बंदिशों और खामोशियों के बावजूद भी वो आगे बढ़ी हैं. हमेशा लड़ी हैं लेकिन इस लड़ाई में वो अकेले हैं. क्योंकि उनके ऊपर हो रहे अत्याचार पर दुनियाभर में बस चुप्पी है.
आज हम बात करेंगे अफगानिस्तान की महिला क्रिकेट टीम की, जिन्होंने इस उम्मीद में हाथ में बल्ला पकड़ा था कि वो अपने सपने को जी सकेंगी और दुनिया में अपने देश का नाम बढ़ा सकेंगी. लेकिन उन्हें इसी देश ने सबसे बड़ा दर्द दिया है.
ये बात इसलिए मौजूं है क्योंकि अफगानिस्तान की महिला क्रिकेट टीम करीब 37 महीने बाद फिर से मैदान पर वापसी करने जा रही है. लेकिन ये वापसी देश की पहचान के लिए नहीं बल्कि अपने वजूद के लिए है. दरअसल, तालिबान द्वारा टीम पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद महिला खिलाड़ियों ने ऑस्ट्रेलिया में शरण ली थी. अब यह टीम मेलबर्न में क्रिकेट विदाउट बॉर्डर्स इलेवन के खिलाफ टी20 मैच खेलने उतरेगी.
2021 में तालिबान ने लगाया बैन
अफगानिस्तान की महिला टीम को क्रिकेट खेलने से प्रतिबंधित किए हुए तीन साल से अधिक समय हो गया है. अगस्त 2021 में जब तालिबान ने फिर से नियंत्रण हासिल किया, तो उन्होंने महिलाओं पर कई बैन लगाए. महिला एथलीटों के घरों पर छापे मारे गए, जिनमें से कुछ को पहचान से बचने के लिए अपनी किट जलाने के लिए मजबूर होना पड़ा. तालिबान का डर ऐसा था कि ज्यादार महिला खिलाड़ियों ने या तो देश छोड़ दिया या फिर चुप्पी साध ली.
लेकिन नहीं मानी हार...
भले ही तालिबान ने अपने देश की महिलाओं के हर अधिकार को रौंदने की कोशिश की हो. लेकिन वहां की महिलाएं हमेशा आगे बढ़ने की उम्मीद में रही हैं. बैन के बाद से महिला खिलाड़ी फिर से खेलने के लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं. तालिबान ने जब महिला टीम के वित्तीय भुगतान को रोक दिया तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (ICC) और अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (ACB) से भी कोई खास मदद नहीं मिली.
महिला क्रिकेट टीम ने जुलाई 2023 में ICC के चेयरमैन से एक पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि वे ऑस्ट्रेलिया में एक शरणार्थी टीम बनाने में उनकी मदद करें. इसमें उन्होंने अपने कौशल को निखारने और प्रदर्शित करने की इच्छा जताई थी, साथ ही अफगानिस्तान की महिलाओं के संघर्षों की ओर ध्यान आकर्षित करने की बात कही थी.
ऑस्ट्रेलिया ने दिया साथ
तमाम चुप्पियों के बाद अफगानिस्तान की महिलाओं को ऑस्ट्रेलिया का साथ मिला. ऑस्ट्रेलिया ने 2023 में तालिबान के इस कदम की आलोचना करते हुए अफगानिस्तान की मेंस टीम के साथ सीरीज खेलने से इनकार कर दिया.ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड का कहना था कि अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति में निरंतर गिरावट हो रही है. इसी तरह, इंग्लैंड महिला क्रिकेट टीम के कोच ने भी इस मामले में अफ़ग़ान महिला क्रिकेट टीम के समर्थन में अपनी आवाज उठाई. उन्होंने कहा कि हर किसी को अपनी पसंद के खेल में अपनी देश का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार होना चाहिए.
जादुई कहानी की तरह है अफगानिस्तान में क्रिकेट का सफर
अफगानिस्तान में क्रिकेट का उभरना किसी जादुई कहानी की तरह है. तालिबान ने जब पहली बार सत्ता हासिल की थी तो कई चीजें तबाह हुई थी, जिसमें खेल भी था. लेकिन तालिबान के सत्ता से बेदखल होने के एक साल बाद आईसीसी ने अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड को मान्यता दी थी. इसके बाद अगले 20 सालों में इस देश ने खेल की दुनिया में खूब नाम कमाया.
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अफगानिस्तान में क्रिकेट की दिलचस्पी 2000 के दशक में बढ़ी. अफगानिस्तान की टीम ने अपना लोहा भी मनवाया. क्रिकेट वर्ल्ड कप तक का सफर भी किया. 2017 में टेस्ट क्रिकेट का भी दर्जा मिला. राशिद खान जैसे स्टार खिलाड़ी भी इस देश से निकले.
वहीं, राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम 2010 में बनी. तब भी इसका विरोध हुआ. शुरुआत में तो खुद अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने महिला टीम को अंतरराष्ट्रीय खेलों में मौक़ा देने से परहेज किया. तब भी बोर्ड ने तालिबान के डर का हवाला दिया था. लेकिन 2012 में महिला टीम ताजिकिस्तान गई और शानदार परफॉर्मेंस की. इसके बाद साल 2020 में 25 महिलाओं को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया. लेकिन 10 महीने बाद ही उनके सपने फिर से टूट गए. तालिबान ने फिर उनकी उम्मीदों को चूर कर दिया.
एक बार फिर 4 साल के संघर्ष के बाद अफगानिस्तान की महिला क्रिकेट टीम को उम्मीद की किरण दिखी है. ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें बड़ी राहत दी है. एक बार फिर उनके सपने सजीव हो उठे हैं. लेकिन इतनी संघर्ष भरी यात्रा से एक बात तो साफ है कि तालिबान की बंदिशों के साथ ही अफगान महिलाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय चुप्पी भी बड़ा जख्म है.