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ICC अंपायर अनिल चौधरी की मजबूरी, लॉकडाउन में चढ़ना पड़ा पेड़ पर

भारत के शीर्ष क्रिकेट अंपायरों में शामिल अनिल चौधरी अचानक सुर्खियों में छा गए हैं. इसकी वजह अंपायरिंग से जुड़ा कोई फैसला नहीं, बल्कि कुछ और है.

ICC international panel umpire Anil Choudhury ICC international panel umpire Anil Choudhury
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2020,
  • अपडेटेड 3:30 PM IST

भारत के शीर्ष क्रिकेट अंपायरों में शामिल अनिल चौधरी अचानक सुर्खियों में छा गए हैं. इसकी वजह अंपायरिंग से जुड़ा कोई फैसला नहीं, बल्कि कुछ और है. आईसीसी पैनल के अंपायर अनिल चौधरी का कभी पेड़ पर, तो कभी छत पर चढ़कर मोबाइल लहराते हुए नया रूप निश्चित तौर पर चौंकाने वाला लगेगा.

दरअसल, भारत के शीर्ष क्रिकेट अंपायरों में शामिल चौधरी कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन के दिनों में अपने गांव में रहने के लिए मजबूर हैं, जहां खराब नेटवर्क के कारण उनका खुले खेतों में भी ‘गुगली’ और ‘बाउंसर’ से सामना हो रहा है.

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55 साल के अनिल चौधरी को भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच वनडे मैचों में अंपायरिंग करनी थी, लेकिन सीरीज बीच में ही रोक दिए जाने के कारण वह 16 मार्च को उत्तर प्रदेश के शामली जिले में स्थित अपने गांव डांगरोल आ गए थे.

चौधरी ने पीटीआई से कहा, ‘मैं 16 मार्च को अपने दोनों बेटों के साथ गांव आ गया था. मैं काफी दिनों बाद गांव आया था, इसलिए मैंने एक सप्ताह यहां बिताने का फैसला किया... लेकिन इसके बाद लॉकडाउन हो गया और मैं उसका पूरी तरह से पालन कर रहा हूं. मेरी मां और पत्नी दिल्ली में हैं.’

अब तक 20 वनडे और 28 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में अंपायरिंग कर चुके चौधरी गांव में लोगों को सामाजिक दूरी बनाए रखने और कोविड-19 के प्रति जागरूक करने में लगे हैं, लेकिन नेटवर्क की समस्या के कारण वह विभिन्न कार्यक्रमों में ऑनलाइन हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं, जिनमें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) की वर्कशॉप भी शामिल हैं.

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उन्होंने कहा, ‘गांव में नेटवर्क सबसे बड़ा मसला है. हम किसी से बात तक नहीं कर सकते या नेट का इस्तेमाल नहीं कर सकते. इसके लिए उन्हें गांव से बाहर या किसी खास छत या पेड़ पर जाना होता है, वहां भी हमेशा नेटवर्क नहीं रहता है.’

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चौधरी ने कहा, ‘अभी सबसे बड़ी समस्या बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं को लेकर है. दिल्ली, रूड़की, देहरादून आदि शहरों में पढ़ने वाले लड़के ऑनलाइन कक्षाएं नहीं ले पा रहे हैं. मेरा बेटा हिंदू कॉलेज में पढ़ता है. उसकी कक्षाएं चल रही हैं, लेकिन नेटवर्क नहीं होने से वह मजबूर है.’

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