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रियो ओलंपिक 2016 में ब्रॉन्ज जीतने वाली साक्षी मलिक ने अपनी किताब विटनेस (Witness) में विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और बबीता फोगाट को लेकर कुछ दावे किए. साक्षी ने अपनी किताब में दावा किया है कि विनेश और बजरंग के फैसले से उनका आंदोलन 'स्वार्थपूर्ण' लगने लगा था. इस पर विनेश फोगाट ने असहमति जताई कि एशियाई खेलों के ट्रायल से छूट लेने के उनके और बजरंग पूनिया के फैसले से बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ उनका प्रदर्शन कमजोर पड़ा. वहीं साक्षी मलिक यहीं नहीं रुकी और उन्होंने कहा था कि बबीता फोगाट ने कुश्ती संघ का अध्यक्ष बनने के लिये पहलवानों को उकसाया था, वह बृजभूषण शरण सिंह की जगह लेना चाहती थी.
इन सब दावों के बीच भारतीय पहलवान और अब कांग्रेस नेता बजरंग पूनिया का सोशल मीडिया पोस्ट चर्चा में हैं. किसान कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर अपना पदभार ग्रहण करने के बाद बजरंग पूनिया ने यह पोस्ट लिखा. जो खूब वायरल हो रहा है. वहीं बजरंग ने इस पोस्ट में कहा कि उनका जीवन ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन कुछ जूनियर पहलवान उनके घर आईं, उन्होंने दो आंदोलन में भाग लिया. इसके बाद उनका पूरा जीवन ही बदल गया.
22 अक्टूबर को लिखे इस पोस्ट में ओलंपिक मेडलिस्ट बजरंग पूनिया ने लिखा- मेरे जीवन में सब सही चल रहा था, खेल में पदक जीत रहा था, सरकार से इनाम पा रहा था, मंत्री-संतरियों से खूब शाबाशी, फिर मेरे घर पर कुछ जूनियर महिला पहलवान आयीं, औपचारिक राम-रमी के बाद सबकी आंखों में आँसू थे. उनकी बात सुनी तो फिर जीवन का ऐसा सफर शुरू हुआ जिसके बारे में कभी सोचा भी नहीं था.
उनके संघर्ष में शामिल होने से खेल गया, कैरियर गया और मंत्री संतरियों की राम-रमी भी. लेकिन एक चीज की संतुष्टि है कि अब महिला खिलाड़ियों ने अपना मैदान जीत लिया है. यह जीत मेरे ओलंपिक मेडल से भी बड़ी जीत है.
बजरंग यहीं नहीं रुके और अपने पोस्ट में उन्होंने आगे लिखा- सरकार ने जो इनाम दिया था वह मैं प्रधानमंत्री आवास के सामने रख आया था. इस जीवन में अग्निवीर आंदोलन और किसान आंदोलन ने भी बहुत कुछ बदला है. इन दोनों आंदोलनों ने याद दिलवाया है कि ओलंपिक मेडल जीतने से पहले मेरी जिंदगी क्या थी? मेडल से मेरा जीवन तो बदला होगा, पर मेरे लोगों का नहीं. मेडल की तरफ देखता हूं तो बचपन का सपना याद आता है और अब आगे के सफरर की और देखता हूं तो बचपन की हकीकत याद आती है. इन्हीं उलझनों के बीच जो कुछ होता है उसी को जीवन कहते हैं.
कौन हैं बजरंग पूनिया
बजरंग पूनिया ने घुटने की चोट से जूझने के बावजूद टोक्यो में अपने पहले ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया था. वहीं वह जंतर मंतर पर विनेश फोगाट और अन्य पहलवानों संग भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंंह के खिलाफ आंदोलन करने के लिए उतरे थे. हरियाणा के झज्जर में साधारण से परिवार में जन्मे बजरंग के पिता बलवान सिंह खुद एक पहलवान थे. युवावस्था में बजरंग अक्सर पहलवानों की कुश्ती देखने के लिए स्कूल से भाग जाया करते थे.
बजरंग पुनिया ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें नहीं मुझे पता चला कि कुश्ती कब उनके जीवन का हिस्सा बन गया. इस भारतीय पहलवान ने स्थानीय अखाड़े में 14 साल की उम्र में ही प्रशिक्षण शुरू कर दिया और जल्द ही उन्हें साथी ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त से मिलवाया गया.
योगेश्वर दत्त की देख-रेख में बजरंग ने कुश्ती से जुड़ी कई बारीकियां सीखीं जो आगे चलकर उनके लिए काफी मददगार साबित हुईं. बजरंग पुनिया पहली बार 2013 में एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप और विश्व चैंपियनशिप में पुरुषों के फ्रीस्टाइल 60 किग्रा भार वर्ग में कांस्य पदक जीतकर सुर्खियों में आए थे.