
Bhagwani Devi Dagar gold medal in Finland: ट्रेक सूट, स्पोर्ट्स शूज और गले में तीन-तीन मेडल. मंगलवार को जिसने भी दिल्ली एयरपोर्ट पर 94 साल की भगवानी देवी को देखा वह हैरान रह गया. सबके मन में यही सवाल था कि आखिर 94 साल की यह महिला जो ढोल पर थिरक रही है और जिसको घेरकर लोग चक दे इंडिया, चक दे इंडिया के नारे लगा रहे हैं उसने आखिर क्या किया है?
फिर जब उन्हीं लोगों को पता चला कि 94 साल की 'दादी' भगवानी देवी डागर फिनलैंड में भारत का नाम रोशन करके आई हैं तो उनकी भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. खुश होना बनता भी है.
उम्र के इस पड़ाव पर जब लोग खाट या बेड से उठते तक नहीं हैं, तब भगवानी देवी दिल्ली के गांव से निकलकर फिनलैंड तक पहुंचीं. वह नजफगढ़ में मौजूद मलिकपुर गांव की रहने वाली हैं.
फिनलैंड जाकर भगवानी देवी ने वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप (World Masters Athletics Championships) में हिस्सा लिया. इसमें उन्होंने एक नहीं बल्कि पूरे तीन मेडल जीते. इसमें 100 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल, डिस्कस थ्रो (Discus throw) और गोला फेंक (Shot put) में ब्रॉन्ज शामिल है. ये तीनों मेडल 90 से 94 साल की एज ग्रुप वाली कैटेगिरी में जीते गये हैं.
100 मीटर दौड़ दादी भगवानी देवी ने 24.74 सेकेंड में पूरी की थी. रेफरेंस के लिए जान लीजिए कि दुनिया के सबसे तेज धावक उसेन बोल्ट ने 100 मीटर की रेस 9.58 सेकेंड में पूरी की हुई है, जो कि वर्ल्ड रिकॉर्ड है.
भगवानी देवी को पसंद थी कबड्डी
आजतक.इन ने भगवानी देवी के बारे में ज्यादा जानने के लिए उनके पोते विकास डागर से बात की. जो कि खुद इंटरनैशनल पैरा एथलीट हैं. विकास डागर बताते हैं कि दादी का पहला प्यार कबड्डी था. बचपन में यह खेल उनको काफी पसंद था. फिर जिंदगी के उतार-चढ़ाव में वह कबड्डी से दूर हो गईं.
29 साल की उम्र में भगवानी देवी ने अपने पति विजय डागर को खो दिया था. उसके बाद उनकी 11 साल की बेटी भी दिया छोड़कर चली गई. उस वक्त भगवानी का एकमात्र सहारा उनका बेटा हवा सिंह था. हालांकि, बाद में धीरे-धीरे जिंदगी थोड़ी संभलती चली गई.
अब भगवानी देवी के दो पोते (विकास डागर और विनीत डागर) भी हैं. दोनों MCD स्कूल में टीचर हैं. विकास डागर अंतरराष्ट्रीय पैरा एथलीट भी हैं. उनको राजीव गांधी स्पोर्ट्स अवॉर्ड भी मिल चुका है. वह खुद 40 से ज्यादा राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं.
सिर्फ छह महीने की मेहनत ने दिला दी अंतरराष्ट्रीय पहचान
दादी के फिनलैंड तक पहुंचने में पोते विकास डागर का बड़ा हाथ है. विकास ने बताया कि बात ज्यादा पुरानी नहीं है. सिर्फ छह महीने की मेहनत ने उनकी दादी को इस मुकाम तक पहुंचा दिया है.
विकास ने बताया कि कुछ महीने पहले उन्होंने Shot put खेल की लोहे वाली भारी-भरकम गेंद दादी को थमा दी और बोले कि देखो दादी इसमें कितना ज्यादा वजन है.
फिर क्या था. वहीं से दादी का खेल के प्रति बचपन वाला लगाव फिर जाग गया. फिर भगवानी देवी पोते के साथ प्रैक्टिस करने स्टेडिम जाने लगीं. दादी की लगन को देखकर विकास ने उनका नाम प्रतियोगिताओं में लिखवाना शुरू कर दिया. फिर इसी साल मई महीने में दिल्ली स्टेट मास्टर्स चैंपियनशिप में अपनी उम्र वाली कैटेगिरी में तीन गोल्ड मेडल हासिल कर लिये. खेल वही थे जो उन्होंने बाद में फिनलैंड में जाकर खेले.
भगवानी देवी इतनी फिट कैसे रहती हैं?
आजकल की जो युवा पीढ़ी इनडोर गेम्स और फोन पर ज्यादा वक्त बिताती है उनको दादी भगवानी देवी सलाह भी देती हैं. उनका मानना है कि हर उम्र के लोगों को खेल-कूद करनी चाहिए. उनका मानना है यह कोई मेडल पाने के लिए ही नहीं करना चाहिए, बल्कि ऐसा करने से शरीर फिट भी रहेगा.
भगवानी देवी खुद को कैसे फिट रखती हैं? इस सवाल पर विकास ने बताया कि दादी देसी (दूध, दही, घी) और शाकाहारी खाना खाती हैं और उनकी डाइट में अलग से कुछ स्पेशल नहीं है.