
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के 19वें संस्करण की शुक्रवार को शानदार शुरुआत हुई. ओलंपिक में भारत का नाम रोशन करने वाले दो सबसे बड़े सितारे अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा ने ‘Magic DNA: Inside the inspirational minds of two sporting heroes’ सेशन में चार चांद लगा दिए. दोनों स्टार्स खिलाड़ियों के साथ JSW स्पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की मनीषा मल्होत्रा ने भी इस सेशन में हिस्सा लिया. इंडिया टुडे ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन कली पुरी ने इन दोनों ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट से बात की और इनकी सफलता का राज़ जाना.
नीरज चोपड़ा और अभिनव बिंद्रा के साथ हुई इस खास बातचीत को पढ़िए...
कली पुरी: अभिनव, आपको ओलंपिक में मेडल जीते 13 साल हो गए हैं, तब से अब तक देश में स्पोर्ट्स में बदलाव और उस जीत को लेकर आपके क्या ख्याल हैं?
अभिनव बिंद्रा: इंडिया टुडे ग्रुप के इतने बड़े कॉन्क्लेव की शुरुआत ओलंपिक की बातचीत से होना ही इस बात का संकेत है कि खेल में बड़ा बदलाव हुआ है. जब मैं खेल रहा था, तब मैं ‘डरपोक’ था, लेकिन आज की जनरेशन ऐसी नहीं है. आज के खिलाड़ियों के पास अपना विश्वास है, जो ताज़ा वक्त के बदलाव का संकेत देता है.
आज के वक्त में जब कोई खिलाड़ी ओलंपिक में जाता है, तो उसे सम्मान के साथ भेजा जाता है. वो वहां से जीतकर आए या फिर हारकर आए, अब हमेशा ही नए जोश के साथ उसका स्वागत होता है. नए वक्त में खेल एक अहम बदलाव ले रहा है, सरकारें हो या फिर आम इंसान हर कोई खेल को प्राथमिकता दे रहा है.
कली पुरी: नीरज, आप कहां थे 2008 में जब अभिनव बिंद्रा ने भारत के लिए गोल्ड जीता? क्या आपने वो ओलंपिक देखा था और सोचा था कि लौटने पर आप गोल्ड मेडलिस्ट के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे?
नीरज चोपड़ा: तब तो मैं गांव में था और पता नहीं था कि मैं स्पोर्ट्स में जाऊंगा. तब तो मैं ओलंपिक को फॉलो भी नहीं करता था, लेकिन बाद में जब खेल में आया तो मुझे इनकी जानकारी हुई. जब मैंने गोल्ड मेडल जीता था, तब मिल्खा सिंह जी को याद किया था और अभिनव सर लगातार हमारे बारे में अपडेट्स ले रहे थे.
अभिनव बिंद्रा के साथ मुलाकात पर नीरज बोले कि अभिनव सर ने दस साल से अपने मेडल को नहीं छुआ था, लेकिन जब मैं टोक्यो ओलंपिक के बाद मैंने अभिनव सर से मुलाकात की तब मेरे कहने पर ही उन्होंने मेडल निकाला था.
कली पुरी: मनीषा, दोनों मेडल्स में आपको क्या अंतर दिखाई पड़ता है?
मनीषा मल्होत्रा: दोनों मेडल्स की तुलना करना सही नहीं होगा, लेकिन दोनों का रास्ता अलग था. अभिनव बिंद्रा के लिए तीसरा ओलंपिक था, जिसको लेकर लंबी उम्मीद थी. अभिनव के बाद 13 साल मौका आया, जब नीरज चोपड़ा आए. नीरज का ये पहला ओलंपिक था, वो पूरी तरह जोश में थे. लेकिन उन्होंने इसके लिए काफी मेहनत भी की.
कली पुरी: अभिनव आपने भी चोट के कारण एक लंबा दर्दभरा रास्ता तय किया है, इन चीज़ों से उबरना कितना मुश्किल होता है?
अभिनव बिंद्रा: मेरे गेम में अलग-अलग तरह की दिक्कतें होती हैं, मैं अपने दिमाग की मैपिंग के लिए साउथ अफ्रीका गया था. वहां पर टेस्ट हुए और उसके बाद मैंने 3000 शॉट्स मारकर ट्राई किया, तब जाकर ट्रेनिंग पूरी हुई. मुझे किसी ने बताया था कि याक का दूध पीना काफी फायदेमंद होता है, तो मैंने यार्क का दूध मंगवाया और अभी तक वो मेरे पास है. इनके अलावा आंख, सांस लेने और फिजिकल तौर पर खुद को फिट रखने के लिए काफी अलग-अलग एक्सरसाइज़ पर फोकस किया.
कली पुरी: नीरज आपको कभी अपने ऊपर डाउट था? क्या आपने सोचा कि मैं नहीं कर पाऊंगा? कॉम्पिटिशन से पहले आप नर्वस थे?
नीरज चोपड़ा: मैंने अभिनव सर जैसी मेहनत नहीं की, लेकिन अगर मुझे कोच कुछ कह देते थे तो मैं जरूर करता था. अगर कोच मुझे छत से कूदने को कह देते हैं, तो मैं कूदने के लिए तैयार हूं.
ओलंपिक से पहले बाल कटवाने को लेकर नीरज ने बताया कि उनको अच्छे लगते हैं लंबे बाल, लेकिन ओलंपिक में जाने से पहले उन्होंने बाल कटवा दिए थे ताकि अगर कुछ गड़बड़ हो तो कोई बालों को लेकर ताने नहीं मारे.
सर्जरी को लेकर नीरज चोपड़ा ने बताया कि ऑपरेशन के वक्त मैं काफी मुश्किल में था, बेड रेस्ट के बाद जब मैं पहली बार उठा तो मैंने बहुत साइक्लिंग की, जिसकी वजह से मेरे टांके हट गए थे. इसलिए बाद में डॉक्टर के कहने पर फिर बेड रेस्ट हुआ. लेकिन मैंने इंजरी के बाद जब कमबैक की कोशिश की तब मैं पूरी तरह फिट होना चाहता था, इसलिए मैंने सीधे ओलंपिक के क्वालिफायर के लिए कमबैक किया था.
कली पुरी: अभिनव आप किसी आम इंसान या किसी नॉन-गोल्ड मेडलिस्ट को तनाव और फेलियर से निपटने के लिए क्या गुर देंगे?
अभिनव: मुझमें हमेशा सेल्फ कॉन्फिडेंस की कमी थी, मुझे काफी कुछ बदलाव करना पड़ा. मैं हर रोज़ शाम को खुद को शीशे में देखता था, ताकि चेक कर सकूं कि क्या मैं सही बढ़ रहा हूं. बीजिंग में जाने से पहले मैंने खुद से सवाल किया कि क्या मैं फिट हूं, तब मैंने खुद को हां में जवाब दिया. ऐसे में गेम शुरू होने से पहले ही मैं अपने आप में जीत चुका था. हर किसी की सच को स्वीकारना जरूरी है, अगर आप अपने डर को स्वीकार लें तो काफी कुछ आसान हो जाता है.
मनीषा: नीरज आपने कॉम्पिटिशन के दिन सिर्फ 2-3 वॉर्म अप थ्रो किए थे, क्या आपको कॉन्फिडेंस था?
नीरज: टोक्यो में बहुत गर्मी थी, यूरोपियन एथलीट एक-दो घंटे पहले ही वॉर्म अप शुरू कर देते थे. लेकिन मैं वहां जाकर लेट गया था, इसलिए वॉर्म अप के दौरान मैंने 2-3 थ्रो किए. और अंदर जाकर मैंने पूरा फोकस किया और फिर मेडल आ गया.
कली पुरी: नीरज गोल्ड मेडल मिलने के बाद आप सो पाए? आपको विश्वास हो गया कि मेडल मिल गया?
नीरज: मेरे दिमाग में रहता है कि मैं अपना पूरा सौ फीसदी दूंगा, चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन मैं कुछ करके ही जाऊंगा. कभी-कभी अगर तैयारी अच्छी नहीं होती है, तब थोड़ा-बहुत लगता है. लेकिन मैं पूरी जी-जान लगा देना चाहता हूं.
कली पुरी: एक कहावत है कि एक जीत के लिए पूरा गांव लग जाता है, तो आपके पैरेंट्स, दोस्त और कोच का क्या रोल रहा आपकी जीत में? आपका अपने कोच के साथ कैसा रिश्ता है? कहते हैं कि कोच एक हमसफर की तरह होता है, क्या ये सच है?
नीरज: मेरी कोच के साथ काफी अच्छी बनती है, लेकिन परिवार का अहम रोल है. परिवार ने मुझ पर कोई दबाव नहीं डाला. इसलिए आसपास के लोग अगर पॉजिटिव रहे तो काफी फायदेमंद होता है.