
Narinder Batra Hockey Star Rani Rampal: भारत में क्रिकेट को भले भी धर्म के रूप में माना जाता हो, लेकिन देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी ने भी दुनियाभर में अपनी छाप छोड़ी है. भारत की पुरुष टीम ने दुनिया में सबसे ज्यादा 8 ओलंपिक मेडल जीते हैं. मगर इसी देश में एक ऐसी भी घटना हुई थी, जिसे कोई सोच भी नहीं सकता.
यह बात 1 नवंबर 2019 की है, तब इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन (FIH) के अध्यक्ष रहे नरिंदर बत्रा भारतीय महिला टीम की कप्तान रानी रामपाल को छोड़कर बाकी खिलाड़ियों को पहचान ही नहीं पाए थे. इस बात का खुलासा टीम के पूर्व कोच सोर्ड मारिन (Sjoerd Marijne) ने अपनी किताब विल पावर में किया है.
अमेरिका के खिलाफ अहम मैच में हुई घटना
नरिंदर बत्रा इंडियन ओलंपिक कमेटी (IOC) के भी अध्यक्ष रह चुके हैं. इतने बड़े दो पदों पर रहने वाले शख्स का हॉकी खिलाड़ियों को नहीं पहचान पाना अजीब लगता है. मारिन ने अपनी किताब के जरिए कहा कि यह काफी शर्म की बात रही थी. मैंने इसका फायदा उठाया और इसी बात का उदाहरण देते हुए टीम की खिलाड़ियों को अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित किया.
दरअसल, मारिन ने 1 नवंबर 2019 को खेले गए उस मैच का जिक्र किया, जिसमें भारतीय महिला हॉकी टीम का मुकाबला अमेरिका से हुआ था. यह काफी अहम मैच था. यह ओलंपिक क्वालिफायर मैच भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में हुआ था. तब FIH के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा ने मैच शुरू होने से पहले खिलाड़ियों से ग्राउंड में ही मुलाकात की थी. इसी पल का मारिन ने जिक्र किया है.
कप्तान के अलावा किसी को नहीं पहचान पाए बत्रा
मारिन ने किताब में लिखा, 'इस बेहद खास मैच के शुरू होने से ठीक पहले टीम को शुभकामनाएं देने के लिए कुर्ता-पायजामा और जैकेट पहने नरिंदर बत्रा मैदान में आए. उन्होंने कप्तान रानी से शुरुआत की, लेकिन आगे चलते ही स्थिति गड़बड़ा गई. बत्रा रानी के अलावा किसी को भी नहीं पहचान पा रहे थे.'
पूर्व कोच ने आगे लिखा, 'अजीब सी स्थिति बनी और इसी बीच बत्रा ने वहीं खड़े होकर पूछा 'ड्रैग-फ्लिकर कौन है?' उन्होंने यह सवाल जहां खड़े होकर पूछा, उससे कुछ ही गज की दूरी पर दुनिया की बेस्ट ड्रैग-फ्लिकर में से एक गुरजीत कौर खड़ी हुई थीं.'
यह सब पैसों के लिए होता है: पूर्व कोच मारिन
मारिन ने कहा, 'भारत में हॉकी पुरुषों का ही खेल माना जाता है. यह शर्म की बात है. यहां टॉप की लीग, टीमें, टूर्नामेंट और वर्ल्ड क्लास कोचिंग स्टाफ सभी कुछ पुरुषों के लिए ही था. दुर्भाग्य की बात है कि यहां महिला हॉकी को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है. यह सब पैसों के लिए होता है. मगर बड़ी बात तो ये है कि फेडरेशन की प्रायोरिटी में भी महिला टीम नहीं है. मैं शिकायत नहीं कर रहा हूं बस जो फेक्ट हैं, उन्हीं को पेश कर रहा हूं.'