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नीरज चोपड़ा के टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड जीतने की कहानी, ‘इससे बड़ा तो शायद ही कुछ होगा’

नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में जब इतिहास रचा, तब पूरा भारत उन्हें गर्व से देख रहा था. लेकिन वहां क्या हो रहा था, नीरज चोपड़ा ने कैसे इतिहास रचा. इसके पीछे भी एक कहानी है..

Neeraj Chopra (File) Neeraj Chopra (File)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 02 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 10:47 PM IST

तारीख- 7 अगस्त, 2021. कोरोना के काल के बीच देश में हर किसी की नज़र टीवी और मोबाइल फोन की स्क्रीन पर थीं. वजह थी हरियाणा के गांव से निकला एक 23 साल का लड़का खेलों के महाकुंभ ओलंपिक में ऐसे मुहाने पर खड़ा था, जो इतिहास रचने वाला था. वो लड़का नीरज चोपड़ा था, जिसने वाकई उसदिन इतिहास रचा. 

उस दिन क्या माहौल था, नीरज चोपड़ा के साथ क्या हो रहा था. नीरज चोपड़ा पर लिखी गई किताब ‘Neeraj Chopra: From Panipat to the podium’ में सात अगस्त 2021 की पूरी कहानी बताई गई है. इस किताब को अर्जुन सिंह कादियान ने लिखा है और रूपा पब्लिकेशन ने छापा है. 

सात अगस्त, 2021 की शाम टोक्यो के नेशनल स्टेडियम में सभी बेस्ट जैवलिन थ्रोअर इकट्ठा हो चुके थे. यागो और वैलकॉट जो ओलंपिक मेडल जीत चुके थे वो खराब फॉर्म के चलते फाइनल्स में जगह नहीं बना पाए थे. नीरज चोपड़ा शानदार फॉर्म में थे. 28 डिग्री के तापमान में हवा 2 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी, जैवलिन थ्रोअर के लिए इसके मायने काफी अहम होते हैं.

23 साल के नीरज चोपड़ा की तब एंट्री हुई, वो खिलाड़ी जो सीजन में जोहानेस वेटर के बाद सबसे बेहतरीन फॉर्म में था और उसपर करोड़ों लोगों की उम्मीदें टिकी थीं. नीरज चोपड़ा ने कैमरे की ओर देखते हुए नमस्ते किया और अपनी तैयारियों में जुट गए. 

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मोल्डोवा के खिलाड़ी ने अपनी पहली थ्रो फेंकी, जो 80 मीटर के पार गई. नीरज चोपड़ा आए, पास मे खड़े पाकिस्तान के थ्रोअर अरशद नदीम के पास गए. अपना जैवलिन लिया और उसे अपने हाथ में लेने के बाद बिल्कुल कसकर पकड़ लिया. नीरज चोपड़ा के लिए यह पल काफी खास था, क्योंकि चोट से उबरने के बाद पिछले कई साल की मेहनत का नतीजा अगले कुछ मिनटों में निकलने वाला था.

सीधे हाथ में जैवलिन लिए हुए नीरज चोपड़ा ट्रैक की ओर गए, अपना मार्क लिया. जैवलिन को कुछ देर रखा, स्ट्रेच करने लगे. कुछ सेकंड के बाद नीरज चोपड़ा ने जैवलिन उठाया, कंधे के पास रखा और सारी उम्मीदें, सपने, दुआएं लेकर दौड़ पड़े. जैवलिन दूर, दूर और बहुत दूर तक गया. पहला जैवलीन 87.03 मीटर तक गया, जो उम्मीद जगाने के लिए काफी था.

नीरज चोपड़ा के नज़दीक कोई भी नहीं आया. अब उनकी नज़र सिर्फ किसी मेडल पर नहीं बल्कि गोल्ड मेडल पर थी. नीरज चोपड़ा ने अपना दूसरा अटेम्प्ट किया और उन्होंने जैवलिन को फेंका. ज़ोर से चिल्लाए और पीछे मुड़कर हवा में पंच किया, मानो उन्हें मालूम हो कि वो क्या कर चुके हैं. जैवलिन 87.53 मीटर दूर जाकर गिरी. यहां पर ही फैसला हो गया था, नीरज चोपड़ा इतिहास रच चुके थे. हरियाणा के लाल ने भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक का इकलौता गोल्ड मेडल जीत लिया था.

गोल्ड मेडल जीतने के बाद जब नीरज चोपड़ा लगातार मीडिया में छाए हुए थे, तब उन्होंने एक बात कही थी, ‘इससे बड़ा तो शायद ही कुछ होगा’. 

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