
भारत के हॉकी स्टार रूपिंदर पाल सिंह ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास ले लिया है. टोक्यो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रहे रूपिंदर ने गुरुवार सुबह सोशल मीडिया पर इसकी घोषणा की. दरअसल, उन्होंने युवाओं के लिए रास्ता बनाने की कवायद में अंतरराष्ट्रीय हॉकी से तुरंत प्रभाव से संन्यास लेने का ऐलान किया है.
भारतीय टीम के लिए अपने 13 साल लंबे करियर के दौरान 223 मैच खेलने वाले रूपिंदर एक शक्तिशाली ड्रैग-फ्लिकर के रूप में अपनी क्षमताओं के लिए जाने गए.
रूपिंदर ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा,‘मैं आपको भारतीय हॉकी टीम से संन्यास लेने के अपने फैसले से अवगत कराना चाहता हूं. पिछले कुछ महीने मेरे जीवन के सर्वश्रेष्ठ रहे. टोक्यो में अपनी टीम के साथ पोडियम पर खड़े होने के अनुभव को मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकूंगा.’
उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि अब समय आ गया है जब युवा और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उस आनंद की अनुभूति का अवसर दिया जाए, जो भारत के लिए खेलते हुए मैं पिछले 13 साल से अनुभव कर रहा हूं.’
30 साल के रूपिंदर पाल सिंह ने टोक्यो ओलंपिक में भारत के अभियान के दौरान चार महत्वपूर्ण गोल किए. जिसमें जर्मनी के खिलाफ कांस्य पदक के मैच में पेनल्टी स्ट्रोक पर किया गया गोल भी शामिल है.
रूपिंदर और टीम के साथी गुरजंत सिंह को गृह राज्य लौटने के बाद हरियाणा के राज्यपाल की ओर से हॉकी चंडीगढ़ द्वारा आयोजित समारोह में 5-5 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया था.
फरीदकोट से टोक्यो में पोडियम तक का सफर
पंजाब के फरीदकोट से टोक्यो में पोडियम तक के सफर के दौरान रूपिंदर ने कड़ी मेहनत कर कई बार वापसी की. रूपिंदर भारत की रक्षापंक्ति के अहम सदस्य रहे और वीआर रघुनाथ के साथ मिलकर उन्होंने खतरनाक ड्रैग फ्लिक संयोजन बनाया.
निडर रक्षण के अलावा रूपिंदर पर उनके कप्तान पेनल्टी कॉर्नर और पेनल्टी स्ट्रोक पर गोल करने के लिए भी काफी भरोसा करते थे. रूपिंदर की मजबूत कद-काठी और लंबाई पेनल्टी कॉर्नर के समय किसी भी टीम के डिफेंस को परेशान करने के लिए पर्याप्त थी. उन्हें अपने चतुराई भरे वैरिएशन के लिए भी जाना जाता था.
रूपिंदर को 2014 विश्व कप में भारतीय टीम का उपकप्तान बनाया गया और वह इसी साल राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने वाली भारतीय टीम का भी हिस्सा रहे.
रूपिंदर उस भारतीय टीम का भी हिस्सा रहे जिसने 2014 इंचियोन एशियाई खेलों में स्वर्ण और 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता. एशियाई खेलों में निराशा के बाद रूपिंदर को बलि का बकरा भी बनाया गया और इसके बाद टीम के हुए बदलाव के दौरान उनकी अनदेखी की गई.
सबसे बड़ी सफलता इस साल टोक्यो खेलों में
वह चोटों से भी परेशान रहे. पैर की मांसपेशियों में समस्या के कारण 2017 में उनका करियर लगभग खत्म हो गया था. इस समय को उन्होंने अपने करियर का सबसे मश्किल समय करार दिया था.
चोट के कारण उनके छह महीने तक बाहर रहने का सबसे अधिक फायदा हरमनप्रीत को मिला, लेकिन उनकी सफल वापसी के बाद ये दोनों शॉर्ट कॉर्नर पर भारत के ट्रंप कार्ड बने और इनकी जोड़ी टोक्यो तक बनी रही. रूपिंदर ने अपने करियर की सबसे बड़ी सफलता इस साल टोक्यो खेलों में हासिल की.
लाकड़ा ने भी अंतरराष्ट्रीय हॉकी से विदा ली
ओलंपिक कांस्य पदक विजेता भारतीय हॉकी टीम के अनुभवी डिफेंडर बीरेंद्र लाकड़ा ने भी गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय हॉकी से तुरंत प्रभाव से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया. लाकड़ा के संन्यास की घोषणा हॉकी इंडिया ने ट्विटर पर की.
हॉकी इंडिया ने ट्वीट किया, ‘मजबूत डिफेंडर और भारतीय हॉकी टीम के सबसे प्रभावी खिलाड़ियों में से एक ओडिशा के स्टार लाकड़ा ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने का फैसला लिया है. हैप्पी रिटायरमेंट बीरेंद्र लाकड़ा.’
31 साल के लाकड़ा इंचियोन एशियाई खेल 2014 में स्वर्ण पदक और 2018 जकार्ता खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य थे.