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Why India paralympics performance improved: आखिर पेरिस पैरालंपिक में ऐसा क्या हुआ कि भारतीय पैरा एथलीट ने धमाल मचाकर रख दिया. पैरालंपिक के इतिहास में इस बार भारत के एथलीट्स ने जो प्रदर्शन किया है, वह अविश्वसनीय है. लंदन पैरालंपिक 2012 में भारत के 10 पैरा एथलीट्स गए और एक मेडल जीता. इस बार यानी 2024 में पेरिस पैरालंपिक में 84 पैरा एथलीट्स ने हिस्सा लिया और मेडल्स का आंकड़ा भी 30 के करीब रहा. पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत ने 29 मेडल जीते. जिसमें 7 गोल्ड, 9 सिल्वर और 13 ब्रॉन्ज शामिल रहे.
भारतीय एथलीट्स की संख्या अब पैरालंपिक में बढ़ी हैं, यह बात तो निश्चित तौर पर कही जा सकती है. लेकिन यह भी कहना होगा कि हमारे खिलाड़ियों ने पैरालंपिक में मेडल्स जीतने की भूख दिखी. आखिर इतने मेडल्स जीतने के पीछे की कहानी क्या है, कैसे यह सुधार आया है. इस बारे में हमने दीपा मलिक से बात की. दीपा मलिक भारत की पहली महिला पैरालंपिक पदक विजेता रहीं हैं. उन्होंने भारतीय पैरालंपिक की यात्रा को बेहद करीब से देखा है. दीपा मलिक एशियन पैरालंपिक कमेटी की मेंबर भी हैं. वह 2020 में पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया (PCI) की अध्यक्ष भी चुनी गई थीं.
जितने मेडल पेरिस पैरालंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने जीते हैं पैरालंपिक इतिहास में कभी नहीं हुआ. भारत के पैरालंपिक खिलाड़ियों के इस प्रदर्शन पर दीपा मलिक बेहद खुश दिखीं.
दीपा मलिक ने कहा, 'मेरे लिए सम्मान की बात है, उनके कार्यकाल के दौरान टोक्यो पैरालंपिक, एशियन पैरा गेम्स और पेरिस की तैयारी हुई. इसके लिए वह खिलाड़ियों, कोच, पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया, SAI (भारतीय खेल प्राधिकरण) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देती हैं, जो खिलाड़ियों के जिंदगी से जुड़े रहे और सहयोग दिया.'
अब वो कारण जान लीजिए, जिनकी वजह से पैरालंपिक खेलों में भारत का खेल सुधरा है. इसकी कुछ वजह हमने दीपा मलिक से समझी.
वजह 1: पैरालंपिक खिलाड़ियों की तैयारी के लिए फंडिंग बढ़ी
आखिर भारत की संख्या मेडल्स की कैसे बढ़े? इस पर दीपा ने कहा- हम बतौर पैरा खिलाड़ी हमेशा कहते थे कि अगर अवसर मिलेंगे तो खुद को साबित करेंगे. सबसे पहली बात यह है कि खेलों को मेनस्ट्रीम दर्जा मिल रहा है. अब खेलों को मेनस्ट्रीम फंडिग मिल रही है. भारत सरकार ने पेरिस पैरालिंपिक (2021-2024) के लिए 74 करोड़ रुपये आवंटित किए, जो टोक्यो पैरालंपिक की साइकिल से 26 करोड़ रुपये अधिक थे. ऐसे में यह बात साफ है कि पैरालंपिक में फंडिग बढ़ी है.
वजह 2: पैरालंपिक की तरफ ज्यादा ध्यान दिया गया
दीपा ने कहा पिछले कुछ सालों में पैरालंपिक के लिए जो पॉलिसी बनी है, जिसमें 'टारगेट ओलंपिक पोडियम' के तहत खिलाड़ियों को उसकी तैयारी के हिसाब से फंडिंग की जा रही है. वहीं खिलाड़ी अपने हिसाब से कस्टमाइज्ड तरीके से तैयारी कर रहे हैं. पैरालंपिक में मेडल्स बढ़ने की एक वजह यह भी रही कि अब ग्रासरूट पर कई ऐसे प्रोग्राम खिलाड़ियों के लिए तैयार किए गए, जिसकी वजह से उनको बहुत आसानी हुई.
'एक्सीलेंस प्रोग्राम', 'खेलो इंडिया पैरा गेम्स' इसका नमूना है. वही पैरालंपिक की फेडरेशन (PCI) में भी अब सुधार हुआ है. दीपा मलिक ने खुद माना कि पहले फेडरेशन को एनजीओ के तौर पर देखा जाता था, अब पैरालंपिक को हार्डकोर गेम्स माना जाता है. SAI (भारतीय खेल प्राधिकर) सेंटर्स को भी पैरा खिलाड़ियों के लिहाज से सुगम्य बनाया गया है.
वजह 3: महिला खिलाड़ियों की भागीदारी बढ़ी
रियो पैरालंपिक 2016 में जब दीपा मलिक ने शॉट पुट (गोलाफेंक) में रजत पदक हासिल किया था. इसके बाद से लगातार भारत की पैरालंपिक के खेलों में महिलाओं की संख्या बढ़ी है. आठ सालों में भारतीय महिला पैरा-एथलीटों ने पदकों की संख्या एक से बढ़ाकर 11 कर ली है (ये संख्या लगातार बढ़ रही है). खास बात यह है कि इस बार 10 महिला खिलाड़ी मेडल्स जीती हैं. टोक्यो में अवनि लेखरा और भाविना पटेल ने मेडल्स जीते हैं. यानी महिला खिलाड़ियों की हिस्सेदारी के कारण भी मेडल्स बढ़े हैं. यह भी एक बड़ा कारण है.
वजह 4: जूनियर लेवल के टूर्नामेंट बढ़े, खेलों की संख्या भी बढ़ी
पेरिस पैरालंपिक में कई ऐसे खिलाड़ी भी हैं, जो खेलो इंडिया पैरा गेम्स और जूनियर टूर्नामेंट से गए हैं. खेलो इंडिया पैरागेम्स पिछले साल ही शुरू हुए हैं. एशियन यूथ पैरा गेम्स में कई भारतीय खिलाड़ी गए थे. पैरास्तर पर नेशनल जूनियर और नेशनल सब जूनियर टूर्नामेंट फिर शुरू हुए हैं. जिससे प्लेयर्स का पूल पैरालंपिक में आया. दीपा मलिक ने यह भी कहा कि चीन और अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन मेडल्स ज्यादा मेडल्स इसलिए जीतता है क्योंकि वह ज्यादा खेलों में हिस्सा लेता है. रियो में भारत ने 5, टोक्यो में 9, जबकि पेरिस में 12 खेलों में हिस्सा लिया.
वजह 5: SAI ने रिसर्च ऑफिसर्स की नियुक्ति की
पैरालंपिक में भारत के मेडल्स बढ़ने की वजह अब कमेटी और एसोसिएशन में खिलाड़ियों का होना हैं. कुल मिलाकर प्रशासनिक पोजीशन पर अब खिलाड़ी हैं. दूसरी खास बात है SAI (भारतीय खेल प्राधिकरण) ने अब रिसर्च ऑफिसर्स की नियुक्ति की है. जो खिलाड़ियों का एनालिसिस करते हैं, अगर किसी खिलाड़ी को कोई कृत्रिम अंग चाहिए तो उसके लिए एक तय समय सीमा है. जैवलिन थ्रोअर सुमित अंतिल के पास तीन प्रोस्थेटिक की टांगे हैं, इनमें एक चलने के लिए है, दूसरी वेटलिफ्टिंग के लिए, तीसरी भालाफेंक के लिए हैं. यही वजह है कि मेडल्स की लगातार झड़ी लगा रहे हैं.
वजह 6: खिलाड़ियों को स्थानीय भाषा में नियम समझाए
भारत के पैरालंपिक कार्यक्रम को खेल चिकित्सा, प्रशिक्षण तकनीकों और अनुभवी कोचिंग में बढ़ते निवेश से लाभ मिला है- जिससे पैरा-एथलीटों को अपनी क्षमता को अधिकतम करने में मदद मिली है. खिलाड़ियों को सिंपल भाषा में NADA (National Anti-Doping Agency) के नियमों का हिंदी में रूपांतरण करके बांटे हैं, ताकि खिलाड़ियों को पता हो कि कौन सी चीजें प्रतिबंधित हैं. टोक्यो के समय इसका कोर्स कैप्सूल बनाया गया था, जिसे सरल भाषा में समझाया. पैरा खिलाड़ियों को इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से जोड़ा गया है, उनको डाटा एनालिसिस समझाया. जिसका फायदा खिलाड़ियों को हुआ, अब पैरा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय मानक के आधार पर खुद को तैयार कर रहे हैं.
वजह 7: खिलाड़ियों को सपोर्ट स्टाफ मिला
पहले कोई भी पैरा एथलीट अपने घर पर ही रहकर तैयारी करता था. अब खिलाड़ी के पास न्यूट्रिशनिस्ट है, अब यह सुविधा है कि खिलाड़ियों को एंटी डोपिंग के नियम समझाने वाले लोग हैं. अगर कोई खिलाड़ी इंटरनेशनल टूर्नामेंट में जाता है तो ट्रेंड प्रोफेशनल (डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट) होते हैं.
वजह 8: SAI और PCI में बेहतर समन्वय
दीपा मलिक ने कहा- SAI (भारतीय खेल प्राधिकरण) और पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया (PCI) के बीच अब लगातार संवाद होता है, किसी खिलाड़ी को किस तरह की जरूरत है. इस बारे में सेक्रेटी से लेकर मंत्री भी पहले की तुलना में ज्यादा इन्वॉल्व नजर आते हैं. अब प्रधानमंत्री खुद नजर रखते हैं.
दीपा मलिक ने 2016 में 46 साल की उम्र में शॉटपुट में मेडल जीता तो उनकी जीत को जादू कहा गया, क्योंकि वह पहले जैवलिन खेलती थीं. एक साल की तैयारी में दीपा ने तब दूसरे खेल में मेडल जीता था. दीपा ने कहा कि दरअसल, तब उनको कंडीशनिग कोच, नर्सिंग असिस्टेंट, मेंटल ट्रेनर, इंजरी मैनेजमेंट, च्वाइस की जगह ट्रेनिंग, ट्रांसपोर्टेशन और रहने जैसी सुविधाएं मिली थीं. अब PCI मैच्योर हुई है. अब खिलाड़ी का प्रॉपर चार्ट बनाया जाता है, डाटा एनालिसिस और उसके खेल को फॉलो किया जाता है, किस समय खिलाड़ी की ट्रेनिंग करवानी है, इसका ध्यान भी PCI रखती है.
वजह 8: मेडिकल क्लासिफिकेशन पर जोर...
मेडिकल क्लासिफिकेशन किसी भी पैरा एथलीट के लिए अहम है. क्योंकि इसके बाद ही एथलीट को लाइसेंस टू प्ले रहता है. फिर खिलाड़ी का रिकॉर्ड अंतराष्ट्रीय वेबसाइट पर चढ़ता है. इसके बाद ही निर्णय लिया जाता है कि खिलाड़ी किस श्रेणी में खेलेंगे. मेडिकल ग्रुपिंग होती है. दीपा ने कहा कि पिछले पांच सालों में खिलाड़ियों को क्लासिफाइड करवाकर क्वालिफाई करवाया जा रहा है. IPC (इंटरनेशनल पैरालंपिक कमेटी) से खिलाड़ियों का कोटा होता है,
वजह 9: इंटरनेशनल लेवल पर भारत की धमक
पैरा शूटिंग का भारत ने अब तक का सबसे सफल वर्ल्ड कप कप 2024 में करवाया. इसमें 44 देशों ने हिस्सा लिया. वहीं कई खिलाड़ियों का यहीं मेडिकल क्लासिफिकेशन हुआ. दिल्ली के कर्णी सिंह स्टेडियम में हुए इस टूर्नामेंट की वर्ल्ड शूटिंग पैरा स्पोर्ट्( World Shooting Para Sport) की एसोसिएशन ने तारीफ की थी. भारत ने एजुकेशन प्रोगाम करवाए, इसमें भी 11 देशों ने हिस्सा लिया. यानी साफ है कि भारत की गिनती अब उन देशों में हो रही है, जहां पैरा खेलों पर ध्यान दिया जा रहा है, इसका लोहा दुनिया मान रही है.
वजह 10: प्राउड पैरालंपियन प्रोग्राम
पैरालंपिक में सुधार की वजह 'ट्रेन द ट्रेनर', 'प्राउड पैरालंपियन प्रोग्राम' हैं. इसमें खिलाड़ी तैयार हो रहे दूसरे प्लेयर को जाकर गाइड करते हैं. किस तरह की बिहैव करना चाहिए. यह सब बताया जाता है. प्राउड पैरालंपियन प्रोग्राम की वजह से भी नए खिलाड़ियों को अनुभव मिल रहा है.
वजह 11: खिलाड़ियों पर इनामों की बौछार
पैरालंपिक के खिलाड़ी आर्थिक तौर पर मजबूत हुए हैं, वहीं उनको खेलों के बड़े पुरस्कारों से नवाजा गया है. ध्यानचंद खेल रत्न (पूर्व में राजीव गांधी खेल रत्न) और अर्जुन अवॉर्ड से भी खूब नवाजा गया है. पहले देवेंद्र झांझरिया को खेल रत्न दिया गया. इसके बाद इस लिस्ट में कई खिलाड़ी शामिल हुए.
वहीं अब तो कई ऐसे पैरा खिलाड़ी भी हैं जो अर्जुन अवॉर्ड जीत चुके हैं. कई पैरा एथलीट्स के पास जॉब हैं, ऐसे में वह खुद अपने परिवार की आजीविका के साधन बन गए हैं. आर्थिक रूप से मजबूत होने से भी पैरा एथलीट्स के सुखद संकेत गया है. क्योंकि कई जगह तो नौकरी और मेडल जीतने के बाद राशि मिल रही हैं.
पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत के पदकवीर
1. अवनि लेखरा (शूटिंग)- गोल्ड मेडल, वूमेन्स 10 मीटर एयर राइफल (SH1)
2. मोना अग्रवाल (शूटिंग)- ब्रॉन्ज मेडल, वूमेन्स 10 मीटर एयर राइफल (SH1)
3. प्रीति पाल (एथलेटिक्स)- ब्रॉन्ज मेडल, वूमेन्स 100 मीटर रेस (T35)
4. मनीष नरवाल (शूटिंग)- सिल्वर मेडल, मेन्स 10 मीटर एयर पिस्टल (SH1)
5. रुबीना फ्रांसिस (शूटिंग)- ब्रॉन्ज मेडल, वूमेन्स 10 मीटर एयर पिस्टल (SH1)
6. प्रीति पाल (एथलेटिक्स)- ब्रॉन्ज मेडल, वूमेन्स 200 मीटर रेस (T35)
7. निषाद कुमार (एथलेटिक्स)- सिल्वर मेडल, मेन्स हाई जंप (T47)
8. योगेश कथुनिया (एथलेटिक्स)- सिल्वर मेडल, मेन्स डिस्कस थ्रो (F56)
9. नितेश कुमार (बैडमिंटन)- गोल्ड मेडल, मेन्स सिंगल्स (SL3)
10. मनीषा रामदास (बैडमिंटन)- ब्रॉन्ज मेडल, वूमेन्स सिंगल्स (SU5)
11. थुलासिमथी मुरुगेसन (बैडमिंटन)- सिल्वर मेडल, वूमेन्स सिंगल्स (SU5)
12. सुहास एल यथिराज (बैडमिंटन)- सिल्वर मेडल, मेन्स सिंगल्स (SL4)
13. शीतल देवी-राकेश कुमार (तीरंदाजी)- ब्रॉन्ज मेडल, मिक्स्ड कंपाउंड ओपन
14. सुमित अंतिल (एथलेटिक्स)- गोल्ड मेडल, मेन्स जैवलिन थ्रो (एफ 64 वर्ग)
15. नित्या श्री सिवन (बैडमिंटन)- ब्रॉन्ज मेडल, वूमेन्स सिंगल्स (SH6)
16. दीप्ति जीवनजी (एथलेटिक्स)- ब्रॉन्ज मेडल, वूमेन्स 400m (T20)
17. मरियप्पन थंगावेलु (एथलेटिक्स)- ब्रॉन्ज मेडल, मेन्स हाई जंप (T63)
18. शरद कुमार (एथलेटिक्स)- सिल्वर मेडल, मेन्स हाई जंप (T63)
19. अजीत सिंह (एथलेटिक्स)- सिल्वर मेडल, मेन्स जैवलिन थ्रो (F46)
20. सुंदर सिंह गुर्जर (एथलेटिक्स)- ब्रॉन्ज मेडल, मेन्स जैवलिन थ्रो (F46)
21. सचिन सरजेराव खिलारी (एथलेटिक्स)- सिल्वर मेडल, मेन्स शॉट पुट (F46)
22. हरविंदर सिंह (तीरंदाजी)- गोल्ड मेडल, मेन्स इंडिविजुअल रिकर्व ओपन
23. धर्मबीर (एथलेटिक्स)- गोल्ड मेडल, मेन्स क्लब थ्रो (F51)
24. प्रणव सूरमा (एथलेटिक्स)- सिल्वर मेडल, मेन्स क्लब थ्रो (F51)
25. कपिल परमार (जूडो)- ब्रॉन्ज मेडल, मेन्स 60 किलो (J1)
26. प्रवीण कुमार (एथलेटिक्स)- गोल्ड मेडल, मेन्स हाई जंप (T44)
27. होकाटो होटोजे सेमा (एथलेटिक्स) - ब्रॉन्ज मेडल, मेन्स शॉट पुट (F57)
28. सिमरन शर्मा (एथलेटिक्स)- ब्रॉन्ज मेडल, वूमेन्स 200 मीटर (T12)
29. नवदीप सिंह (एथलेटिक्स)- गोल्ड मेडल, मेन्स जैवलिन थ्रो (F41)