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रियो ओलंपिक से करीब तीन महीने पहले इंडिया टुडे कॉन्क्लेव- 2016 में चर्चा ओलंपिक खेलों और इस ओर भारत की तैयारियों को लेकर हुई. बीजिंग ओलंपिक में गोल्ड पर निशाना लगाने वाले शूटर अभिनव बिंद्रा ने इस दौरान कहा कि बीजिंग में गोल्ड जीतना उनकी चाहत थी, लेकिन रियो में यह उनकी जरूरत है. वहीं, बैडमिंटन में टीम इंडिया के नेशनल कोच गोपीचंद पुलेला ने उम्मीद जताई कि इस बार बैडमिंटन में भी मेडल मिलेगा.
गुरुवार शाम को सत्र के दौरान इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर (स्पोर्ट्स) बोरिया मजूमदार से चर्चा करते हुए अभिनव बिंद्रा ने कहा, 'आम आदमी के लिए भले ही ओलंपिक चार वर्षों में आता हो, लेकिन एथलिट्स के लिए हर दिन ओलंपिक होता है.' अभिनव बिंद्रा ने आगे कहा कि एथेंस में मेडल जीतना उनके लिए बहुत मायने रखता था, लेकिन वह सातवें नंबर पर रहें. उन्होंने कहा, 'बीजिंग में मैं गोल्ड चाहता था, लेकिन रियो में यह मेरी जरूरत है.'
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'सायना और सिंधू अच्छा खेल रहे हैं'
क्या आपको लगता है कि बैडमिंटन में इस बार ओलंपिक मेडल आ रहा है? इस सवाल का जवाब देते हुए गोपीचंद ने कहा, 'काश यह सवाल जितना सीधा और सरल है, खेल भी उतना ही सरल और सीधा होता. हमारे पास अभी समय है और हमें पूरी उम्मीद है कि हम मेडल लेकर आएंगे.' उन्होंने आगे कहा कि सायना और सिंधू दोनों बहुत अच्छा खेल रहे हैं. गोपीचंद ने आगे कहा, 'हमारे लिए फोकस खेल होता है. हम मेडल जीतते हैं तो एक देश रहते हैं और अगर नहीं भी जीतते हैं तो एक देश रहते हैं.'
खेल को नए ढंग से देखने की जरूरत
गोपीचंद ने देश में खेल को लेकर नए सिरे से विचार की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने कहा, 'जरूरत है कि ओलंपिक से तीन महीने पहले खेल को नए तरीके से देखा जाए. हम जिस तरह या हमारे देश में खेल को जिस तरह लिया जा रहा है, उसमें बदलाव की जरूरत है. नए तरीके से इस ओर सोचने की जरूरत है. जरूरत है कि लोग खेलने के लिए आगे आए.' अभिनव बिंद्रा ने कहा कि हमें खेल में युवाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है.
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सबको मिलकर साथ बैठने की है जरूरत
बैडमिंटन के नेशनल कोच गोपीचंद ने आगे कहा कि स्कूल, कॉलेज हर स्तर पर खेल को लेकर कुछ न कुछ हो रहा है. जरूरत है कि हम साथ बैठे, सोचे, विचार करें और एक सही दिशा में आगे बढ़े. उन्होंने कहा, 'स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री में बहुत अच्छे लोग हैं, जो खेल को बढ़ावा देना चाहते हैं. लेकिन जरूरत है कि सब साथ बैठे. बड़ी संख्या में जो खेलना चाहते हैं उन तक पहुंचा जाए.'
खिलाड़ी और खेल का प्रेशर
ओलंपिक खेल के दौरान प्रेशर के सवाल पर बिंद्रा ने कहा, 'कोई भी सुपर ह्यूमन नहीं है. हर कोई प्रेशर में रहता है. यह एक मिथक है कि भारतीय एथलिट्स प्रेशर नहीं झेल सकते. हर किसी को प्रेशर रहता है. जब एथलिट्स के पास अच्छा फाउंडेशन होता है, वह प्रेशर को झेल जाता है. लेकिन जब ऐसा नहीं होता, ब्रेकडाउन होता है. यह ह्यूमन नेचर है.'
'स्ट्रैटजी की जरूरत'
गोपीचंद पुलेला ने कहा कि प्रेशर से निपटने के लिए स्ट्रैटजी बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा, 'जरूरत है कि आप मैच से पहले और मैच के बाद कहें कि जीत या हार से फर्क नहीं पड़ता. आप सिर-माथे तनाव लेकर नहीं बैठ सकते. डू ऑर डाय जैसा कुछ नहीं होता. अंतत: यह खेल है.' लेकिन क्या ओलंपिक फाइनल में कोई इस तरह सोच सकता है? इस पर बिंद्रा कहते हैं, 'यह व्यक्तित्व पर निर्भर करता है. जरूरी है कि आप सबकुछ भूलकर अपने दिन के रूटीन और खेल पर ध्यान दे. यह मुश्किल काम है, लेकिन फोकस जरूरी है.'
'रियो को लेकर बिंद्रा की तैयारी'
ओलंपिक खेल और अपनी तैयारियों का जिक्र करते हुए बिंद्रा कहते हैं, 'मुझे इससे प्यार है. मैं हर वह काम करता हूं, जो मैं कर सकता हूं. मेरे लिए ओलंपिक मेडल के लिए मंत्र यही है कि आप लक्ष्य का पीछा करें. आप हारते हैं, आप जीतते हैं. आप हारते हैं आप जीतते हैं. लगातार प्रयास करें.'