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शिव थापा
22 वर्ष, मुक्केबाजी
बैंटमवेट (56 किग्रा)
कैसे क्वालीफाई कियाः अप्रैल में चीन के क्विनान में एशिया ओशनिक ओलंपिक क्वालीफायर्स में दूसरे स्थान पर रहे
उपलब्धियां: दोहा में 2015 की विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक
गुरुग्राम के रमादा होटल के 10-10 फुट के छोटे-से जिम में एक फुर्तीला शख्स मुक्केबाजी का अभ्यास कर रहा है. हवा को चीरती हुई अकेली आवाज उसके दस्तानों की सुनाई देती है. अच्छी आमदनी वाले लोगों के इस होटल में एक मुक्केबाज को देखना अजूबे से कम नहीं, इसलिए वह बरबस लोगों का ध्यान खींच रहा है. लेकिन इस सबसे बेपरवाह यह मुक्केबाज पूरी तल्लीनता से अपने अभ्यास में जुटा है. तभी उसके पिता धीमे-से उससे रुकने के लिए कहते हैं और याद दिलाते हैं कि नाश्ते का वक्त हो गया है.
नाश्ता तो बहाना था. उसके पिता जानते थे कि मुक्केबाजी में भारत के लिए ओलंपिक पदक की सबसे बड़ी उम्मीद शिव को थोड़े आराम की जरूरत है. यह नौजवान मुक्केबाज इसलिए भी परेशान था कि पिछले दो दिन में विज्ञापनों की शूटिंग में उसके प्रशिक्षण का बहुत सारा वक्त जाया हो गया. उसे उम्मीद नहीं थी कि इसमें इतना समय लगेगा. यह पहली बार नहीं है जब उसके पिता को शिव की नाराजगी झेलनी पड़ी है.
कराटे के पूर्व प्रशिक्षक और अब गुवाहाटी में स्टील की अलमारियां बनाने वाली फैक्टरी के मालिक 54 वर्षीय पद्म थापा पिछले 15 साल से शिव के लंबे और मुश्किल भरे सफर में अव्वल प्रेरक शक्ति रहे हैं. यह सफर उसे उसके घर के नजदीक एसएआइ के प्रशिक्षण केंद्र से ओलंपिक की रिंग में ले आया है. उसकी दिनचर्या बेहद कठोर रही है. पिता और पुत्र रोज सुबह तीन बजे जाग जाते. साइकिल से एसएआइ सेंटर पहुंचते. नाश्ते में अखरोट-बादाम और अंकुरित अनाज साथ ले जाते. 6 बजे घर लौटते. 7 बजे स्कूल पहुंच जाते. स्कूल के बाद फिर प्रशिक्षण के लिए जाते. उसके बाद गणित की ट्यूशन और आखिर में 9 बजे तक घर लौटते.
पद्म कहते हैं, ''मेरी दिलचस्पी हमेशा से बॉडी कॉन्टैक्ट स्पोट्र्स में थी लेकिन मुझे सीखने के ज्यादा मौके नहीं मिले. मैं अपने बच्चों को ओलंपिक में भेजना चाहता था और यही वजह थी कि मैंने 17 साल की उम्र में शादी कर ली.'' चार बच्चों में सबसे छोटे शिव ने आखिरकार उनका सपना पूरा किया. शिव के बड़े भाई गोविंद भी राज्य स्तर के मुक्केबाज हैं. 2012 में उनका सपना उस समय चकनाचूर हो गया जब शिव लंदन ओलंपिक के पहले राउंड में ही बाहर हो गए. चार साल बाद उन्हें दूसरा मौका मिला है. वे कोई कसर बाकी छोड़ नहीं रहे. शिकंजी पीते हुए शिव कहते हैं, ''मेरी ताकत यह है कि मैं अंधाधुंध लड़ाई नहीं करता, जिसे कमजोरी भी माना जाता है. मेरी शैली नपी-तुली लड़ाई है. मैं इसे पर्याप्त आक्रामकता से जोडऩे पर काम कर रहा हूं.''
यह नई आई आक्रामकता ही थी जिसके बूते उन्होंने ओलंपिक के क्वालीफायर मुकाबले में विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता कजाखस्तान के केइरत येरालिएव को पराजित कर दिया. यह आसान मुकाबला नहीं था, खासकर उस वक्त जब ट्रायल के दौरान उनकी बाईं आंख के ऊपर कट लग गया था. इस जख्म में टांके लगवाने पड़े थे, जिसकी वजह से वे अभ्यास सत्रों में भाग नहीं ले सके, इस डर से कि कहीं जख्म दोबारा से न उभर जाए. वैसे मृदुभाषी थापा उस मुकाबले को याद करते हुए उत्साह से भर जाते हैं. वे कहते हैं, ''मैंने उसकी प्रतिष्ठा की परवाह नहीं की. वह मेरे ओलंपिक सपने और मेरे बीच में आ रहा था. मुझे उसे तो धूल चटानी ही थी.''
थापा भिवानी के उन लड़कों से अलहदा हैं जिन्होंने भारतीय मुक्केबाजी को शैली और चरित्र, दोनों ही लिहाज से दुनिया की नक्शे पर जगह दिलाईः जीतेंद्र कुमार और अखिल कुमार क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे और विजेंद्र सिंह ने रिंग में भारत के लिए पहला ऐतिहासिक कांस्य पदक जीता. वे अपने पैरों की फुर्ती का श्रेय घर पर अपनी बहन के साथ घंटों तक 'बम्बू डांस' के अभ्यास को देते हैं. बेहद संजीदा मौकों पर ध्वस्त कर देने वाले मुसलाधार मुक्कों की सामथ्र्य उन्होंने बचपन में माइक टाइसन के मुकाबलों को देखकर हासिल की. शिव कहते हैं, ''असल में टाइसन की लड़ाइयां देखने के बाद ही मैंने मुक्केबाजी में उतरने का फैसला किया. मैं उनका करिश्मा देखकर मंत्रमुग्ध था और इस बात से भी कि वे बॉक्सिंग को कितना स्टाइलिश बना देते थे.'' अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी के एक और दिग्गज से उनका साबका हाल ही में उस वक्त पड़ा जब मेनी पैकियाओ का ध्यान उनके लेफ्ट हुक पर गया. पैकियाओ को सदाबहार महान मुक्केबाजों में से माना जाता है और अपने दो दशक लंबे चमकदार करियर के दौरान वे आठ वर्गों में विश्व चैंपियन रहे हैं.
शिव कहते हैं, ''विश्व चैंपियनशिप के दौरान मेनी ने मेरी तारीफ की, इससे मेरे आत्मविश्वास में ठीक वैसा ही इजाफा हुआ जिसकी रियो से पहले मुझे दरकार थी.'' शिव का ओलंपिक सपना अब सिर्फ उन्हीं का नहीं रह गया है. उनकी हौसलाअफजाई करने वालों में क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर और ऐक्टर सलमान खान भी शामिल हैं. ऐसे में शिव को इसका पूरा भरोसा है कि उनका यह सफर पदकों के पोडियम पर जाकर ही खत्म होना चाहिए.