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दिल्ली हाईकोर्ट ने आजाद की डीडीसीए भ्रष्टाचार की न्यायिक जांच की मांग खारिज की

आज हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने इस याचिका को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि सीबीआई पहले से ही इस मामले को देख रही है इसलिए वो इस जांच में दखल नहीं दे सकते. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका प्रीमैच्योर है.

कीर्ति आजाद कीर्ति आजाद
सूरज पांडेय
  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 6:18 PM IST

सांसद और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद, बिशन सिंह बेदी समेत अन्य क्रिकेटरों द्वारा DDCA में भ्रष्टाचार के आरोपों की न्यायिक जांच की मांग करने वाली याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया.

बेदी, आजाद की थी याचिका
गौरतलब है कि डीडीसीए के खिलाफ लंबे समय से मोर्चा खोले कीर्ति आजाद, बिशन सिंह बेदी के साथ कई अन्य क्रिकेटरों ने डीडीसीए में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार की शिकायत दिल्ली हाईकोर्ट में की थी. इस याचिका के जरिए इन लोगों ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा था कि डीडीसीए के कई अधिकारियों के साथ केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली भी कई सालों से भ्रष्टाचार में लिप्त हैं.

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न्यायिक जांच की मांग की गई थी
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में इस भ्रष्टाचार की सीबीआई या फिर न्यायिक जांच की मांग की थी. आज हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने इस याचिका को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि सीबीआई पहले से ही इस मामले को देख रही है इसलिए वो इस जांच में दखल नहीं दे सकते. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका प्रीमैच्योर है. अदालत ने अपने फैसले में आगे कहा कि सिर्फ इस बात पर किसी मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच नहीं हो सकती कि इसमें किसी केंद्रीय मंत्री का नाम है. ऐसी कोई भी जांच तथ्यों के आधार पर होनी चाहिए.

जेठमलानी थे याचिकाकर्ताओं के वकील
इस मामले में केस दायर करने वाले क्रिकेटरों की ओर से वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी पेश हुए थे. उन्होंने अपनी दलील में कहा कि पिछले कुछ सालों में डीडीसीए ने हर चीज में भ्रष्टाचार किया है फिर चाहे वो सीट बनाने का काम हो या फिर स्टेडियम का नवीनीकरण. ऑडिटर की रिपोर्ट समेत अन्य कई रिपोर्ट्स ऐसा इशारा करती हैं कि यहां खूब भ्रष्टाचार हुआ है.

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सीबीआई ने बताया प्रीमैच्योर
जवाब में सीबीआई ने अपनी दलील में केस को प्रीमैच्योर बताते हुए कहा कि इसके तथ्य सही नहीं हैं इसलिए इसे तुरंत खारिज किया जाना चाहिए. इस मामले पर भारत सरकार का कहना था कि जो भी आरोप लगाए गए हैं वो बिना तथ्य के हैं इसलिए याचिका की बातों के आधार पर नोटिस नहीं जारी किया जाना चाहिए क्योंकि यहां पॉलिसी को चुनौती नहीं दी गई है.

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