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नोटबंदी से कराटे चैंपियन आयशा का सपना चकनाचूर

किसी खिलाड़ी का सपना होता है वो अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारत की नुमाइंदगी करे. उसकी साथ ही पूरी कोशिश रहती है कि वो जीत हासिल कर तिरंगे का मान ऊंचा करे.

आयशा नूर आयशा नूर
अमित रायकवार/खुशदीप सहगल/इंद्रजीत कुंडू
  • कोलकाता ,
  • 17 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 4:11 PM IST

किसी खिलाड़ी का सपना होता है वो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारत की नुमाइंदगी करे. उसकी साथ ही पूरी कोशिश रहती है कि वो जीत हासिल कर तिरंगे का मान ऊंचा करे. लेकिन कोलकाता की 19 वर्षीय कराटे चैंपियन आयशा नूर का अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने का सपना नोटबंदी की वजह से चकनाचूर हो गया है.

आयशा के पास तीन अंतरराष्ट्रीय मेडल
कराटे में आयशा ने दो राष्ट्रीय और तीन अंतरराष्ट्रीय मेडल अपने नाम कर रखे हैं. लेकिन आयशा को चैंपियन बनने के लिए तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा. एक तरफ मिर्गी से लड़ाई और दूसरी तरफ परिवार की बेहद गरीबी. लेकिन आयशा के हौसलों की उड़ान कम नहीं थी. इसी ने आयशा को कराटे चैंपियन के मकाम तक पहुंचाया.

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14 से 16 दिसंबर तक होनी थी चैंपियनशिप
आयशा ना जाने कब से दिल्ली में 14 से 16 दिसंबर तक वर्ल्ड मार्शल आर्ट्स काउंसिल गेम्स में हिस्सा लेने के लिए तैयारी कर रही थी. आयशा को पूरी उम्मीद थी कि इस अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कोई ना कोई मेडल अपने नाम करेगी. प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए कई लोगों ने आयशा से आर्थिक मदद का वादा भी किया था. लेकिन 8 नवंबर को नोटबंदी का ऐलान होने के बाद जिन्होंने भी आयशा को आर्थिक मदद देने का वादा किया था, सभी ने हाथ पीछे खींच लिए. बहुत व्यथित नजर आ रही आयशा ने कहा, 'दिल्ली जाने के लिए लोग मेरी मदद को तैयार थे, लेकिन जब से प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान किया कोई भी मेरे लिए अलग से पैसे रखने को तैयार नहीं है.'

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आयशा को होना पड़ा निराश
दुखी नजर आ रहे आयशा के कोच एम ए अली ने कई लोगों से मदद लेने की कोशिश की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. अली कहते हैं- 'मैंने कई लोगों से संपर्क किया, कुछ ने वादा भी किया. यद्यपि जब हम मदद लेने के लिए उनके घर गए तो हर एक ने यही कहा कि नोटबंदी की वजह से खुद कैश की किल्लत है, इसलिए कोई मदद नहीं की जा सकती.'

गरीब परिवार में जन्मी हैं आयशा
दक्षिण कोलकाता के एक स्लम में गरीब परिवार में जन्मी आयशा ने 13 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था. आयशा की मां एक दर्जी की दुकान पर काम कर किसी तरह तीन जनों के परिवार का गुजारा कर रही हैं. ये परिवार पदमापुकुर स्लम बस्ती में रहता है. कोच अली की प्रेरणा से आयशा ने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेना शुरू किया था. क्लब और NGO की मदद से उसका प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना संभव हो सका.

कोच ने खेल मंत्रालय से मदद मांगी
कोच अली के मुताबिक ये बच्चे बहुत गरीब परिवारों से आते हैं और वो उन्हें मुफ्त में ट्रेनिंग देते हैं. जिससे कि वो अपनी सुरक्षा खुद कर सकें. आयशा और उसकी टीम को दिल्ली ले जाने की कोशिश अली के तमाम प्रयासों के बाद भी सिरे नहीं चढ़ सकी. आयशा जैसे चैंपियनों को भविष्य में ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए कोच अली ने अब खेल मंत्रालय से मदद मांगी है. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने की भी मांग की है. अली ने कहा, 'मैं स्लम की गरीब लड़कियों को मुफ्त सिखाता हूं. अगर वो चैंपियनशिप के लिए जा पाते तो मैं बहुत खुश होता. मैं मोदी जी से कुछ समर्थन के लिए आग्रह करता हूं जिससे कि आयशा जैसे बच्चे अपने सपनों को परवान चढ़ा सकें.'

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