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टैलेंट को मेडल जीतने के बाद ही क्यों पहचाना जाता है: कृष्णा पूनिया

पद्मश्री से सम्मानित भारत की मशहूर डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया ने इंडिया टुडे वुमन समिट में मौजूदा भारतीय खेल परिदृश्य पर प्रकाश डाला.

India Today Woman Summit 2018 India Today Woman Summit 2018
विश्व मोहन मिश्र
  • जयपुर,
  • 26 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 5:54 PM IST

जयपुर में बुधवार को आयोजित इंडिया टुडे वुमन समिट एंड अवार्ड्स के तीसरे सत्र में जानी मानी डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन सुशांत मेहता ने किया. इस मौके पर उन्होंने खेल के मौजूदा हालात पर संतोष व्यक्त किया और नाराजगी भी जताई.

कृष्णा पूनिया ने माना कि 2010 के दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद भारत में काफी जागरूकता आई. उन्होंने कहा,' मेडल आने पर लोगों ने सिर आंखों पर बिठाया. इससे पहले तक गावों में तो डिस्कस थ्रो के बार में इतना पता होता था कि गोल-गोल थाली जैसी चीज फेंकी जाती है. लेकिन दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद औरों में भी मेडल जीतने की ललक पैदा हुई. '

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पूनिया ने कहा कि स्टार भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा के अलावा धाविका हिमा दास से भविष्य में भारतीय एथलेटिक्स को नई दिशा मिलेगी. साथ ही उन्होंने इस बात पर नाराजगी जताई कि हमारे देश में प्रतिभा को पहले क्यों नहीं पहचाना जाता, मेडल जीतने के बाद ही क्यों लोगों का ध्यान जाता है. उन्होंने हिमा दास के संदर्भ में कहा, 'हिमा ने जब खुद को साबित किया तब उसे हाथों-हाथ लिया गया.'

डिस्कर थ्रोअर कृष्णा पूनिया राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली भारत की पहली महिला एथलीट हैं. उन्होंने 2010 में दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में उस वक्त यह स्वर्णिम कामयाबी हासिल की, जब उनका बेटा- लक्ष्य राज 11 साल का था. उन्होंने कहा, 'जब मैं गोल्ड जीती तो दर्शकदीर्घा में बैठा मेरा बेटा कह रहा था- मेरी मम्मी ने गोल्ड जीता है. मैं उस पल को कभी नहीं भूल सकती.'

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उन्होंने अपने डिस्कस थ्रो के शुरुआती दिनों के बारे में बताया कि लंबाई के चलते उन्हें बैक प्रॉब्लम हुई और डॉक्टर ने स्पोर्ट्स छोड़ने की सलाह दी, लेकिन एक सही कोच की मदद से उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया. और वह वह कोच कोई और नहीं उनके पति वीरेंद्र पूनिया (हैमर थ्रोअर) हैं. कृष्णा उन्हें अपना गुरु मानती हैं.

अपनी धुन की पक्की पूनिया ने कहा, 'मेरी सिजेरियन डिलीवरी हुई थी. बेटा जब छह महीने का था, तो रेलवे के लिए ट्रायल देने गई थी. मुझे नौकरी की जरूरत थी, दर्द की वजह से झुककर चल पा रही थी. बेटे को किसी और ने संभाला था. और इस प्रतिकूल परिस्थिति में मैंने हिम्मत नहीं हारी और 46 मीटर थ्रो कर सभी को चकित कर दिया था.'

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