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देश में क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों की जब भी बात होती है, तो बदहाली, पैसे का अभाव फेडरेशन और खेल मंत्रालय का सही तरीके से काम न करना, खिलाड़ियों की अनदेखी, अच्छी फैसिलिटी का नहीं होना... जैसी बातें सुनने में आती हैं. क्या सारा दोष फेडरेशन खेल मंत्रालय और अधिकारियों पर मढ़ना सही है. भारत में टेनिस जैसे खेल हाशिए पर इसलिए है कि इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है या इसकी और वजह कुछ और है..?
क्यों है भारतीय टेनिस में खालीपन?
भारतीय टेनिस का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है. रामनाथन कृष्णन, विजय अमृतराज, रमेश कृष्णन, लिएंडर पेस, महेश भूपति, सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने अपनी मौजूदगी का खूब अहसास कराया है. फिर भी खेल प्रेमियों को भारतीय टेनिस में एक खालीपन-सा लगता है. कुछ अधूरा लगता है. आखिर क्यों है यह अधूरापन? भारतीय टेनिस में वो मुकाम हासिल क्यों नहीं कर सका, जिसकी उम्मीद की जा रही थी. 1996 एटलांटा ओलंपिक के सिंगल्स मुकाबलों में लिएंडर पेस ने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर सनसनी मचा दी थी. ऐसा लग रहा मानो टेनिस में एक नए युग का आगाज हुआ है. लेकिन 21 सालों में अबतक कोई भी भारतीय टेनिस खिलाड़ी ओलिंपिक में अपना जलवा नहीं दिखा सका. ग्रैंड स्लैम डबल्स और मिक्स डबल्स मुकाबलों में भारतीय खिलाड़ी दूसरे देश के खिलाड़ी के साथ जोड़ी बनाकर छाये रहे. लेकिन आपस में एक-दूसरे के साथ खेलते समय मनमुटाव सामने आता रहा. क्या यही वजह है टेनिस में खालीपन का.
क्या है भारतीय टेनिस के पिछड़ने की वजह?
बड़े खिलाड़ी होने के बावजूद क्यों भारतीय टेनिस पिछड़ा हुआ दिखाई देता है. इस मुद्दे पर जब आजतक डॉट इन ने ओलिंपियन और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी विष्णु वर्धन से बात की, तो उन्होंने बताया कि फेडरेशन और सरकार की तरफ से खिलाड़ियों को कोई मदद नहीं मिलती. खिलाड़ियों को अपनी जेब से पैसा लगाकर ट्रैवल करना पड़ता है. कई बार तो कोच और फीजियो को देने के लिए पैसे तक नहीं होते. जिसकी वजह से खिलाड़ी पिछड़ जाते हैं. क्या सच में खेल मंत्रालय और ऑल इंडिया टेनिस फेडरेशन ने अपनी आंखे बंद की हुई हैं? जिसकी वजह से भारतीय टेनिस थोड़ा पिछड़ रहा है. वो रिजल्ट नहीं आ रहे जिसकी उम्मीद की जाती रही है.
फेडरेशन और खेल मंत्रालय को दोष देना कितना सही?
ऑल इंडिया टेनिस पर जिम्मेदारी है देश में टेनिस के माहौल को बढ़ाने की और नए खिलाड़ी तैयार करने की. फेडरेशन के एक अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि किसी पर तोहमत लगा देना बड़ा आसान होता है. फेडरेशन ने जूनियर, सब जूनियर, नेशनल और अंतरराष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट को आयोजन जमकर कराया है. पैसा पानी की तरह बहाया, लेकिन इन टूर्नामेंट को कभी पॉजिटिव तरीके से नहीं लिया गया. हमेश ये कहा गया यह तो फेडरेशन का काम है. उसे यह करना ही है सही काम को कभी नहीं सहराया गया. फिर स्पॉन्सर्स के न होने से नुकसान भी उठाना पड़ा. जिसका खामियाजा खिलाड़ियों को उठाना पड़ा और दोष फेडरेशन पर मढ़ दिया गया. सवा सौ करोड़ की आबादी में देशभर में सिर्फ दो हजार युवा ही टेनिस खेलते हैं. स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया और खेल मंत्रालय के पास वे सारे संसाधन मौजूद हैं जिससे देश में कई टेनिस खिलाड़ी बनाए जा सकते हैं. सरकार के उदासीन रवैया भी टेनिस में इस खालीपन की बड़ी वजह मानी जा सकती है. स्टार खिलाड़ियों का आसपस में टकराव ने भी भारतीय टेनिस को नुकसान पहुंचाया है.
इंडियन टेनिस एसोशिएस क्या किया अबतक?
ऑल इंडिया टेनिस फेडरेशन की नाकामी और उसके विरोध में कुछ पूर्व खिलाड़ियों ने साल 2013 में इंडियन टेनिस एसोसिएशन बनाई. जिसका मकसद खिलाड़ियों को सही फेसिलिटी देना और देश में टेनिस का विकास करना था. इस एसोसिएशन में महेश भूपति, जॉयदीप मुखर्जी, सोमदेव बर्मन जैसे दिग्गज थे. पिछले चार सालों में एसोसिएशन ने ग्राउंड लेवल पर कितना काम किया इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है. ऐसे में खिलाड़ियों का सरकार और फेडरेशन पर दोष देना समझ से परे है.
निजी स्वार्थ ने बिगाड़ा खेल
क्या वाकई में भारतीय टेनिस के पिछड़ने में ऑल इंडिया टेनिस फेडरेशन, सरकार और खिलाड़ियों का दोष हैं. असल में देखा जाए सही तालमेल और निजी स्वार्थ की वजह से भारतीय टेनिस आगे नहीं बढ़ सका. खिलाड़ी, फेडरेशन, खेल मंत्रालय में एकजुटता नहीं दिखी. जिसकी वजह से भारतीय टेनिस वो मुकाम हासिल नहीं कर सका, जहां उसे होना चाहिए था. किसी भी खेल को ऊपर लाने के लिए कुछ बुनियादी बातों को समझकर एक साथ चलने की जरूरत होती है, तभी किसी भी खेल का विकास होता है.