
डब्ल्यूडब्ल्यूई में खली ने भारत का डंका बजवाया था. अब भारत को सतेंद्र डागर के रूप में दूसरा खली भी मिल गया है. यानी डब्ल्यूडब्ल्यूई में भारत का डंका बजता रहेगा. 15-16 जनवरी को दिल्ली में हो रहे ताकत और रोमांच के इस महामुकाबले में खलबली मचाने के लिए सतेंद्र जिम से लेकर अखाड़े में दिन रात पसीना बहा रहे हैं. सुबह और शाम तीन-तीन घंटे की वर्जिश और खानपान पर ज्यादा ध्यान. लक्ष्य ये है कि अपने देश की जमीन पर अपने लोगों के बीच डेब्यू से ही जीत का तहलका मचा देना. इस लक्ष्य को लेकर सतेंद्र उत्साह के साथ ही आत्म विश्वास से भी लबरेज हैं.
जीत का है पूरा विश्वास
सतेंद्र डागर को अपनी जीत का पूरा विश्वास है. डागर ने कहा कि कद काठी से कोई फर्क नहीं पड़ता और अपने लोग साथ होंगे तो जीत जरूर मिलेगी. ये हालांकि इंटरटेनमेंट है यानी मनोरंजन, लेकिन इसके लिए कितना पसीना बहाना पड़ता है ये सतेंद्र से बेहतर कोई नहीं जान सकता. सतेंद्र के साथी भी कंधे से कंधा मिलाकर जुटे हैं. डागर के कई दोस्त तो अब सेना में कमांडो भी हैं. वे भी सारे टिप्स सतेंद्र को देते रहते हैं.
सतेंद्र के जुनून से घरवाले थे परेशान
सतेंद्र के परिवार में पीढ़ियों से कुश्ती की परंपरा रही है. सतेंद्र के दादा को भी हिंद केसरी का खिताब मिला और फिर सतेंद्र ने भी हिंद केसरी दंगल जीता, लेकिन परंपरागत कुश्ती में बचपन से माहिर सतेंद्र ने इस परंपरा को थोड़ा अलग लुक दिया. हालांकि बचपन में सतेंद्र के जुनून से घरवाले परेशान भी थे. सतेंद्र के पिता वेदपाल डागर ने बताया कि सतेंद्र ने खुद ही अखाड़ा खोद लिया था. वे जब छुट्टियों में आकर सतेंद्र के बारे में पूछते, तो जवाब यही मिलता था कि अखाड़े में लोट रहा होगा.
पूरी तरह शाकाहारी हैं सतेंद्र
दुनिया के सारे पहलवान डब्ल्यूडब्ल्यूई मुकाबले के रिंग में उतरने के लिए खानपान में ना जाने क्या-क्या प्रयोग करते हैं, लेकिन देश के प्रधानमंत्री की तरह सतेंद्र भी पूरी तरह शाकाहारी हैं. आज तक कभी मांस या अंडे को छुआ तक नहीं. सतेंद्र कहते हैं, 'मेरे लिए तो दूध, दही, घी और दाल, सब्जी, फल ही बहुत हैं.' दुनिया भर में ट्रेनिंग के लिए गए और खान-पान में आई मुश्किलों का सामना किया क्योंकि हर जगह शाकाहारी खाने के नाम पर स्तरीय खाना नहीं था, जिससे मांसपेशियों को इतनी ताकत मिले कि वो मुकाबले में अपना लोहा मनवा सकें.
कई महीने दूध और घी से चलाया काम
पहले कई महीने तो सिर्फ पांच-सात किलो दूध और घी से काम चलाया. जब इससे काम नहीं चला तो कनाडा में रह रही अपनी पत्नी जगजीत से खाना बनाना सीखा और फिर खुद बनाते खाते और सुबह शाम की चार-चार घंटे की वर्जिश करते. इसी बीच शरीर को आराम भी देना होता था. यानी इसे सिर्फ और सिर्फ जुनून ही कहा जा सकता है.
सफर और साधना का आने वाला है नतीजा
सतेंद्र का सफर बागड़ू गांव की गलियों से शुरू हुआ. सात साल की उम्र में खुद अखाड़ा खोदा और कुश्ती शुरू की. दादाजी का हाथ सिर पर था और फिर शुरू हुआ सफर जो हिंद केसरी होता हुआ अब डब्ल्यूडब्ल्यूई तक पहुंचा है. अब गांव के अखाड़े से चंडीगढ़ और फिर अमेरिका तक के सफर और साधना का नतीजा आने वाला है. सतेंद्र के घरवाले हों या गांव बागड़ू के लोग सबको बेसब्री से इंतजार है कि अपने कुश्ती मुकाबले में पुट्ठी दांव के लिए मशहूर सतेंद्र इस महामुकाबले में भी अपने पुट्ठी का दमखम दिखाएंगे.
पर्स में रखते हैं अखाड़े की मिट्टी
बड़ी तादाद में गांव के बच्चे कुश्ती के जोर करने लगे तो सतेंद्र को चिंता हुई कि बड़े मुकाबले तो मैट पर होते हैं. वहां तो बच्चे पिछड़ जाएंगे, तो अपनी ओर से अखाड़े में मैट भी लगवाया. अब कुश्ती के इंडोर स्टेडियम का काम चल रहा है. सतेंद्र के पर्स में अपने अखाड़े की मिट्टी हमेशा रहती है क्योंकि उनका मानना है कि उस मिट्टी का कमाल है कि वे यहां तक पहुंचे हैं.
गांव के लोगों को सरकार से उम्मीद
गांव के लोग अब सरकार से भी उम्मीद करते हैं कि बच्चों ने अपनी मेहनत और लगन से यहां तक उपलब्धि तो हासिल कर ली, लेकिन सरकार भी कुछ करे, लोगों का कहना है कि जीतने के बाद लाखों रुपये देने से बेहतर है कि बच्चों के साधना और संघर्ष में सरकार अपनी ओर से कुछ करे.
घर पर है उत्साह का माहौल
सतेंद्र का मुकाबला 15 को होगा लेकिन जीत के उत्सव की तैयारियां अभी से ही होने लगी हैं. गांव भर में ये उत्साह है कि मुकाबला देखने दिल्ली जाएं. सतेंद्र के घर में यूं तो सब कुछ सामान्य है, लेकिन अंदर ही अंदर अरमानों के रंग सजने लगे हैं. सतेंद्र की बहन सुषमा ने कहा, 'हमने तो सरप्राइज ही रखा है. उससे भैया को दूर ही रखा है अब तक, लेकिन तैयारियां चल रही हैं. छोटे भाई ने सतेंद्र को घर की तमाम जिम्मेदारियों से दूर रखा ताकि वो अपने कुश्ती पर फोकस कर सके. अब छोटे भाई सुधीर की हसरत है कि 15 को उनके जन्मदिन पर भाई जीत का तोहफा दें.