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टोक्यो ओलंपिक

भैसों की पूंछ खींचना, मधुमक्खियों के छत्ते उड़ाना... बचपन में ऐसी शरारतें करते थे नीरज चोपड़ा

aajtak.in
  • टोक्यो,
  • 08 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 9:27 AM IST
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वजन कम करने लिए खेलों से जुड़ने वाला बच्चा आगे चल कर एथलेटिक्स में देश का पहला गोल्ड मेडल पदक विजेता बन गया. जी हां! बात हो रही है स्टार भाला फेंक एथलीट (Javelin thrower) नीरज चोपड़ा की. हरियाणा के इस किसान के बेटे ने टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक के फाइनल में 87.58 मीटर भाला फेंककर दुनिया को स्तब्ध कर दिया. एथलेटिक्स में पिछले 100 वर्षों से अधिक समय में भारत का यह पहला ओलंपिक मेडल है.

भारत ने पहली बार एंटवर्प ओलंपिक 1920 में एथलेटिक्स में भाग लिया था, लेकिन तब से लेकर रियो 2016 तक उसका कोई एथलीट पदक नहीं जीत पाया था. दिग्गज मिल्खा सिंह और पीटी उषा क्रमश: 1960 और 1984 में मामूली अंतर से चूक गए थे.

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खेलों से नीरज के जुड़ाव के पीछे एक दिलचस्प वाकया है. दरअसल, संयुक्त परिवार में रहने वाले नीरज बचपन में काफी मोटे थे और परिवार के दबाव में वजन कम करने के लिए वह खेलों से जुड़े. वह 13 साल की उम्र तक काफी शरारती थे. वह गांव में मधुमक्खियों के छत्ते से छेड़छाड़ करने के साथ भैसों की पूंछ खींचने जैसी शरारत करते थे.

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पिता सतीश कुमार चोपड़ा बेटे के बढ़ते वजन से चिंतित थे. काफी मनाने के बाद नीरज दौड़ने के लिए तैयार हुए, जिससे उनका वजन घट सके. उनके चाचा सुरेंद्र चोपड़ा उन्हें गांव से 15 किलोमीटर दूर पानीपत स्थित शिवाजी स्टेडियम लेकर गए. नीरज को दौड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और जब उन्होंने स्टेडियम में कुछ खिलाड़ियों को भाला फेंक का अभ्यास करते देखा तो उनका इस खेल की ओर झुकाव हो गया.

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और यहीं से नीरज ने भाला फेंक में हाथ आजमाने का फैसला किया... और अब वह एथलेटिक्स में इतिहास रचने में कामयाब हो गए. अनुभवी भाला फेंक खिलाड़ी जयवीर चौधरी ने 2011 में नीरज की प्रतिभा को करीब से देखा था. नीरज बेहतर सुविधा हासिल करने के उद्देश्य से पंचकूला के ताऊ देवी लाल स्टेडियम में आ गए और 2012 के आखिर में वह अंडर-16 राष्ट्रीय चैम्पियन बन गए .

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अब उन्हें इस खेल में अगले आगे बढ़ने के लिए बेहतर उपकरण और आहार की जरूरत थी. ऐसे में उनके परिवार ने उनकी मदद की और 2015 में नीरज राष्ट्रीय शिविर में शामिल हो गए. वह 2016 में जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर-20 विश्व रिकॉर्ड के साथ एक ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद सुर्खियों में आए और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
 

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नीरज ने 2017 में सेना से जुड़ने के बाद कहा था, ‘हम किसान हैं, परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी नहीं है और मेरा परिवार बड़ी मुश्किल से मेरा साथ देता आ रहा है. लेकिन अब यह एक राहत की बात है कि मैं अपने प्रशिक्षण को जारी रखने में सक्षम हूं.’
 

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नीरज ने 2017 एशियाई चैम्पियनशिप में शीर्ष स्थान हासिल किया है और इसके बाद 2018 में राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे. उन्हें 2018 अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

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2019 में उन्हें दाहिनी कोहनी की आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी करवानी पड़ी, इस वजह से लगभग एक साल तक वह खेलों से दूर रहे. कोविड-19 महामारी के दौरान लागू प्रतिबंधों के कारण उन्हें अभ्यास करने में परेशानी हुई और वह ओलंपिक से पहले कई अहम अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में हिस्सा नहीं ले पाए थे. 

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