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Tokyo Olympics: लवलीना बोरगोहेन के पिता नहीं देखते उनका कोई भी मुकाबला, जानिए क्या है वजह?

असम की रहने वाली भारतीय बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन 4 अगस्त को अपना सेमीफाइनल मुकाबला खेलेंगी. 23 साल की लवलीना 69 किलोग्राम वर्ग की कैटेगरी में देश के लिए मेडल जीतने के इरादे से मैदान में उतरेंगी.

Lovlina Borgohain Lovlina Borgohain
आशुतोष मिश्रा
  • दिसपुर,
  • 02 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 8:22 PM IST
  • 4 अगस्त को लवलीना खेलेंगी सेमीफाइनल मुकाबला
  • लवलीना के पिता नहीं देखते उनका कोई भी मैच

असम की रहने वाली भारतीय बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन 4 अगस्त को अपना सेमीफाइनल मुकाबला खेलेंगी. 23 साल की लवलीना 69 किलोग्राम वर्ग की कैटेगरी में देश के लिए मेडल जीतने के इरादे से मैदान में उतरेंगी. फिलहाल उनको कांस्य पदक मिलना तय है.

ऊपरी असम के गोलाघाट जिले के एक छोटे से सुदूर गांव में रहने वालीं लवलीना अब सिर्फ असम ही नहीं, बल्कि पूरे हिंदुस्तान की पहचान बन चुकी हैं. 'आजतक' असम के गोलाघाट जिले में लवलीना के गांव बारामुखिया पहुंचा और उनके परिवार से मुलाकात की.

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लवलीना के परिवार से मिलकर उनकी जिंदगी के कई उन पहलुओं को जाना जो अब तक छिपे हुए थे. सबसे अहम जानकारी यह है कि जिस मुख्य कच्ची सड़क से गांव में उनके घर का रास्ता कभी कीचड़ और पानी-मिट्टी से भरा हुआ होता था, उसे 30 जुलाई के बाद गाड़ियों की आवाजाही के लिए तैयार कर दिया गया है. 30 जुलाई को लवलीना जब क्वार्टर फाइनल मुकाबले में बॉक्सिंग रिंग में उतरीं, तो उस दिन उनके घर के सामने असम सरकार के स्थानीय प्रशासन की तरफ से सड़क तैयार हो रही थी.

लवलीना के पिता टिकेन बोरगोहेन बताते हैं कि पहले यह रास्ता काफी खराब हुआ करता था, लेकिन 30 जुलाई को जब मैच हो रहा था तब पीडब्ल्यूडी के लोग आए और उन्होंने बताया कि आपकी बेटी के वतन वापसी से पहले उसके स्वागत के लिए सड़क बनकर तैयार हो जाएगी. वहीं, लवलीना के कोच प्रशांत भी बताते हैं कि जब वह ट्रेनिंग के लिए बरपत्थर इंस्टीट्यूट आती थी तो उसकी साइकिल पूरी तरह कीचड़ से सनी हुई होती थी, लेकिन भारत का नाम ऊंचा करने के बाद उसके लिए यह अच्छी सड़क एक तोहफा है.

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मैच जीतते ही घर में बढ़ गई मेहमानों की संख्या
लवलीना के घर में उनके माता-पिता अकेले रहते हैं और जब 'आजतक' की टीम पहुंची तो वह अपने घर में दोपहर का खाना खा रहे थे. 30 जुलाई के पहले घर में मेहमानों की संख्या कम होती थी, लेकिन बेटी ने मां-बाप और देश का नाम ऊंचा किया तो अब हर घंटे बड़ी-बड़ी गाड़ियों से आने-जाने वालों का सिलसिला लगा हुआ है. कभी एनजीओ के लोग आते हैं, तो कभी प्रशासन के, कभी नेता आते हैं तो कभी समाज के दूसरे तबके और मीडिया का जमावड़ा भी लगा रहता है.

लवलीना के पिता कहते हैं कि अब बहुत सारे लोग आने लगे हैं, लेकिन इसके बारे में वह अपनी बेटी को नहीं बताते क्योंकि इससे उनकी बेटी प्रेशर में आ जाएगी और वह नहीं चाहते कि वह किसी भी मानसिक दबाव से मुकाबले में उतरे. 

टिकेन की कुल तीन बेटियां हैं. दो बेटियां जुड़वा हुई थीं जो मोरथाई किक बॉक्सिंग खेलती थी और राष्ट्रीय खिलाड़ी रही हैं. इनमें से एक बेटी सीआरपीएफ में देश की सेवा कर रही है तो दूसरी बीएसएफ में अपनी ड्यूटी कर रही है. लवलीना तीसरी और सबसे छोटी बहन है. लवलीना के सबसे पहले कोच प्रशांत आगे बताते हैं कि साल 2010 में जब वह मोरथाई किक बॉक्सिंग सीख रही थी तब 2 साल के भीतर ही स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की सिलेक्शन टीम इलाके में आई थी और उसने लवलीना को चुना था जिसके बाद कोलकाता में हुए मैच में पहली बार में ही उसने बॉक्सिंग में गोल्ड मेडल जीता था. प्रशांत कहते हैं कि मोरथाई की बॉक्सिंग में हाथ के अलावा कोहनी और पैरों का भी इस्तेमाल होता है लेकिन बॉक्सिंग में जहां सिर्फ हाथों का इस्तेमाल होता है. उस खेल में भी लवलीना ने कमाल कर दिया था. ‌

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लवलीना के पिता करते हैं किसानी
लवलीना के पिता टीकेन किसानी करते हैं. उन्होंने बताया कि पहले वह बेहद गरीब हुआ करते थे, तब घर भी छोटा हुआ करता था लेकिन जब दो जुड़वा बेटियां पैरामिलिट्री में शामिल हो गईं तो अपनी कमाई से उन्होंने इस घर को खड़ा किया. टिकेन ने लवलीना का प्रैक्टिसिंग बॉक्सिंग क्लब और पंचिंग बैग भी दिखाया, जहां वह दिन में सुबह-शाम दो-दो घंटे प्रैक्टिस किया करती थी. उनके पिता कहते हैं कि जब वह प्रैक्टिस करती थी तो मां उनके लिए पराठा और अंडे बनाती थी. इसी बातचीत में हमें पता चला कि 23 साल की इस भारतीय बॉक्सर को खाने में अंडे और पोर्क मीट सबसे ज्यादा पसंद है. 

घर में बच्चे के लिए कोई अलग कमरा नहीं
उनके पिता ने हमें पूरा घर दिखाया और बताया कि यहां किसी भी बच्चे के लिए कोई अलग कमरा नहीं है, बल्कि जब सब इकट्ठा होते हैं तो एक साथ अपनी मां के साथ ही रहते हैं. लवलीना की मां फिलहाल बात करने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि हाल ही में उनका किडनी ट्रांसप्लांटेशन हुआ है और ऐसे में वह दूसरी गतिविधियों से दूर ही रहती हैं. उनके पिता बताते हैं कि जब बेटी घर आती है तो किचन में खाना भी बनाती है और कई बार जो खाना वह बाहर खाकर आई होती है घर पर भी बनाने का प्रयोग करती है. लेकिन कहते हैं कि खाना कैसा भी बना हो लेकिन वह कभी बेटी के बनाए खाने को खराब नहीं कहते. 

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पिता ने सुनाए लवलीना की जिंदगी के किस्से
बेटी की जिंदगी के किस्से सुनाते हुए उनके पिता घर के दूसरे हिस्से में ले गए, जहां इतने कम उम्र में लवलीना ने अनेकों ट्रॉफी और मेडल जीत लिए हैं. ‌‌पिता अलमारी में उसकी तस्वीरें और अवॉर्ड रखे हुए हैं. पिता बताते हैं कि बेटी को पढ़ने का भी बहुत शौक है. वहीं, पिता को कुछ साल पहले बहुत कुछ स्थानीय निवासियों और गांव वालों से सुनना पड़ता था. टिकेन बताते हैं कि जब तीनों बेटियां छोटी थी तो आसपास के गांव वाले कहते थे कि तुम्हारा बेटा क्यों नहीं है. अगर बेटा नहीं होगा तो मरने के बाद कंधा कौन देगा और तुम्हारा ख्याल कौन रखेगा. लवलीना के पिता बताते हैं जब गांव वालों ने ऐसा कहा उसके बाद उनकी मां ने तीनों बेटियों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग के लिए भेजना शुरू किया और वहीं से इनकी जिंदगी में बदलाव की इबारत लिख दी गई. 

सेमीफाइनल का मुकाबला नहीं देखेंगे लवलीना के पिता
आखिर, ऐसा कौन सा पिता होगा जो अपने बच्चों को इतिहास बनाते हुए लाइव नहीं देखना चाहेगा? लेकिन लवलीना के पिता टिकेन 4 अगस्त को अपनी बेटी का सेमीफाइनल मुक्केबाज़ी का मुकाबला नहीं देखेंगे. उनका कहना है कि इससे पहले भी उन्होंने कभी भी अपनी बेटी का लाइव मैच नहीं देखा. हालांकि, वे रिपीट टेलीकास्ट जरूर देखते हैं, भले ही वह मुकाबले में हार गई हों या जीत गई हों. टिकेन कहते हैं कि हार-जीत जिंदगी का हिस्सा है. हम रिपीट टेलीकास्ट जरूर देखते हैं लेकिन लाइव मुकाबले में अपनी बेटी को मार खाते नहीं देख सकते. जब भी मुक्का उसके शरीर पर या उसके चेहरे पर पड़ता है तो मेरे कलेजे को दर्द होता है.

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