ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम इतिहास रचने से चूक गई है. अर्जेंटीना के साथ आज खेले गए सेमीफाइनल मैच में भारत महिला हॉकी टीम हार गई है. अर्जेंटीना ने 2 गोल दागे, जबकि भारत सिर्फ एक गोल कर पाया है. हालांकि हमारी बेटियों ने शानदार प्रदर्शन किया. अब ब्रॉन्ज के लिए महिला टीम की टक्कर होगी. खैर आज देश को उन सभी 16 बेटियों पर नाज है, जिन्होंने इतिहास में पहली बार महिला हॉकी टीम को अंतिम-4 में पहुंचाया है. आइए इन्हीं बेटियों में से एक निशा वारसी के बारे में जानते हैं.
भारत की महिला हॉकी टीम भी सेमीफाइनल से आगे नहीं बढ़ पाई है. उसे अर्जेंटीना के हाथों 1-2 से हार मिली है. टीम इंडिया अब कांस्य पदक के लिए खेलेगी. महिला टीम से पहले पुरुष टीम भी सेमीफाइनल का मैच हारी थी. उसे बेल्जियम से शिकस्त मिली थी.
भारत की बेटियों के सामने आज इतिहास रचकर पहली बार ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने का चांस है. पूरे देश की नज़रें आज टोक्यो में टीम इंडिया पर टिकी हैं और सवा अरब लोगों की दुआएं देश की बेटियों के साथ हैं.
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निशा वारसी ने अपना अंतरराष्ट्रीय डेब्यू 2019 में हिरोशिमा में FIH फाइनल्स में किया. तब से वह नौ बार भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. निशा के पिता ने किसी तरह कुछ पैसे अलग बचाए थे, जिससे निशा को टूर्नामेंट के लिए यात्रा करने में मदद मिली. आज निशा टोक्यो ओलंपिक में पूरे भारत का नाम रोशन कर रही हैं.
निशा वारसी के पिता सोहराब ने कहा कि जब हमारे घर लड़की (निशा) पैदा हुई तो कई लोग ताने मार रहे थे. निशा की जिंदगी में कई सामाजिक बाधाएं भी थीं, लेकिन कोच सिवाच ने निशा का साथ दिया. 2018 में निशा को भारतीय टीम के कैंप के लिए चुना गया लेकिन घर छोड़ने का फैसला आसान नहीं था.
हरियाणा के सोनीपत की रहने वालीं निशा वारसी पहली बार ओलंपिक में हिस्सा ले रही हैं. निशा को ओलंपिक तक का सफर तय करने के लिए कई मुश्किलों से जूझना पड़ा. निशा के पिता सोहराब अहमद दर्जी थे और निशा को हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया था, लेकिन साल 2015 में उन्हें लकवा मार गया और उन्हें दर्जी काम छोड़ना पड़ा. निशा की मां महरून ने एक फोम बनाने वाली कंपनी में काम किया, ताकि निशा हॉकी स्टार बन सके.