
{mosimage}बॉलीवुड में कलाकारों की भरमार है, लेकिन उनमें शायद ही कोई कलाकार ऐसा हो जो किशोर कुमार (जन्म: 4 अगस्त, 1929, मृत्यु: 13 अक्टूबर, 1987) की तरह बहुमुखी प्रतिभा का धनी हो. किशोर कुमार का अभिनय जहां लोगों को गुदगुदाता है वहीं उनके दर्द भरे गीत आंखें नम करने का हुनर रखते हैं. उनकी गायकी की लोकप्रियता का यह आलम है कि आज के लगभग सभी युवा गायकों ने उनकी शैली को अपनाया है.
किशोर दा ने शुरू किया नया ट्रेंड
किशोर दा के अभिनय और गायन की बाबत जाने माने फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्ज का कहना है कि जब उनके दौर के अभिनेता गंभीर किरदार के तौर पर अपने अभिनय से लोगों के मन में बस रहे थे ऐसे वक्त में किशोर दा ने हास्य अभिनेता के तौर पर ऐसे किरदार निभाए जो अपनी मिसाल खुद बन गए. अजय ने बताया कि पुरानी हिंदी फिल्मों में आम तौर पर कॉमेडियन का एक किरदार होता था, जो कहानी के साथ साथ चलता था. एक जमाने में गोप, याकूब, मुकरी, धूमल, महमूद, जगदीप, जानी वाकर जैसे कलाकार उसी किरदार के दम पर हिंदी फिल्म जगत में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे. उस जमाने की फिल्मों में हीरो, हिरोइन और हास्य कलाकारों का अपना एक दायरा होता था, लेकिन किशोर कुमार ने इस दायरे से बाहर निकलकर फिल्म की मुख्य भूमिका में रहते हुए हास्य अभिनय के नये कीर्तिमान स्थापित किए. किशोर दा ने ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘झुमरू’, ‘हाफ टिकट’ और ‘पड़ोसन’ जैसी हिट फिल्मों में नायक और हास्य के बीच ऐसा तालमेल बिठाया कि बाद के दिनों में बालीवुड का एक ट्रेंड बन गया. उनके गाने की शैली भी वक्त से आगे थी.
एस डी बर्मन ने दिया किशोर दा को मौका
किशोर कुमार को गायक बनने का मौका मशहूर संगीतकार एस डी बर्मन ने दिया. फिल्म ‘मशाल’ की शूटिंग के दौरान उन्होंने बॉलीवुड सुपरस्टार अशोक कुमार के भाई किशोर कुमार को के एल सहगल के अंदाज में रियाज करते देखा तो उन्होंने उसे किसी की नकल करने के बजाय अपना अलग अंदाज विकसित करने की नसीहत दी. किशोर दा ने उनकी इस नसीहत पर पूरे मन से अमल किया और उसके बाद अपनी गायकी का धमाल हर तरफ मचा दिया. उन्होंने अपना एक ऐसा अंदाज बनाया, जिसे उनके बाद के हर गायक ने अपनाने की कोशिश की. आशा भोंसले, किशोर कुमार और एस डी बर्मन की तिकड़ी की मकबूलियत किसी से छिपी नहीं है. ‘पेइंग गेस्ट’ फिल्म का गाना ‘छोड़ दो आंचल..’ आज भी कहीं सुनाई दे तो कदम थम जाते हैं और ‘चलती का नाम गाड़ी’ का ‘पांच रुपया बारह आना..’ भी हर किसी को गुदगुदा जाता है. संगीतकार राहुल देव बर्मन का साथ पा किशोर कुमार ने गायकी में बुलंदियों को छुआ. ‘आराधना’ इन दोनों की पहली फिल्म थी और इस फिल्म के गाने ‘रूप तेरा मस्ताना’ के लिए किशोर दा को फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. बाद में तो पुरस्कारों की झड़ी लग गई. उन्होंने 8 फिल्मफेयर पुरस्कार जीते.
किशोर दा ताउम्र किशोर रहे और अमर हो गए
70 के दशक के सारे नायकों को उन्होंने अपनी आवाज दी. राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार और रिषी कपूर को हिट बनाने में उनका अमूल्य योगदान था. एस डी बर्मन के अलावा किशोर दा ने अपने जमाने के लगभग सभी संगीतकारों के साथ काम किया और सदाबहार गाने दिए. लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ ‘मेरे महबूब कयामत होगी’ (मिस्टर एक्स इन बांबे), ‘मेरे नसीब में ऐ दोस्त तेरा प्यार नही’ (दो रास्ते), ‘ये जीवन है’ (पिया का घर) और न जाने कितने दिल में बस जाने वाले गीत दिए, जो आज भी लोगों की जुबां पर रहते है. गायन के साथ किशोर दा ने फिल्म निर्माण में भी अपना परचम लहराया. उन्होंने 1961 में ‘झुमरू’ बनाई. इस फिल्म में उन्होंने अभिनय किया, गीत लिखे, संगीत दिया. 1964 में उन्होंने गंभीर फिल्म ‘दूर गगन की छांव में’ बनाई. इस फिल्म में उन्होंने एक मूक और बधिर पुत्र के पिता का किरदार निभाया. पुत्र के किरदार में उनके पुत्र अमित कुमार थे. इस फिल्म को आलोचकों ने खूब सराहा. उन्होंने बाद में ‘दूर का राही’ (1971) और ‘दूर वादियो में कहीं’ (1980) बनाई. किशोर दा ने अपने प्रशंसको को अपनी अल्हड़ आवाज दी, हास्य और गंभीर अभिनय दिया, अच्छी फिल्में दीं और ढेर सारा मनोरंजन दिया. जिंदादिली में किशोर दा ताउम्र किशोर रहे और अमर हो गए.