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बॉलीवुड में रिश्तों के अलट-पलट होने की दास्तानें रोज गढ़ी जाती हैं. नाना पाटेकर और प्रकाश झा के रिश्तों को कोई नहीं समझ पाता. नाना ने राजनीति की शूटिंग में झा के साथ खूब मचमच की. फिल्म के प्रमोशन से खुद को अलग रखा. झा दोनों बार नाना पर ऐसे बरसे, मानो कभी उनसे बात नहीं करेंगे. फिल्म रिलीज हुई, तो नाना ने झा की तारीफ के पुल बांध डाले. झा को नाना फिर से बहुत अच्छे कलाकार और सबसे अच्छे दोस्त लगने लगे. किसी ने दोस्ती की इस खुमारी में उस फिल्म को याद कर लिया, जो नाना निर्देशित करने वाले हैं और झा की कंपनी बनाने वाली है. असली राजनीति यहीं से शुरू होती है. झा एक दिन कहते हैं कि नाना शानदार निर्देशक हैं और उनकी फिल्म को लेकर काम हो रहा है. दूसरे दिन वे कहते हैं कि अभी वे इस बारे में सोच रहे हैं. एक दिन नाना पूछते हैं, झा कौन? दूसरे दिन उन्हें अड़ियल मेकर कहते हैं. कुल मिलाकर किसी को समझ में नहीं आता कि ये दोस्त हैं या राजनीति के खिलाड़ी.