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मुंबई के 150 साल पुराने झवेरी बाजार में 13 जुलाई को शाम 6.54 बजे मोटरसाइकिल में रखे एक बम के विस्फोट से पांच लोगों ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया.
खाने-पीने के बिखरे हुए ठेलों और इधर-उधर बिखरी इंसानी लाशों के बीच व्यापारी हितेन ने बताया कि उन्होंने किस तरह एक व्यक्ति के धड़ से अलग हुए सिर को नजदीक के गोकुलदास तेजपाल हॉस्पिटल में प'हूंचाया. उन्होंने उसके धड़ को खोजने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला.
एक मिनट बाद, शाम 6.55 बजे ऑपेरा हाउस के प्रसाद चेंबर्स में एक टिफिन बॉक्स में जोरदार विस्फोट हुआ. वहां हर रोज शाम को हीरा व्यापारी दिनभर के व्यापार के बारे में बातचीत करने के लिए इकट्ठा होते हैं.
उस विस्फोट, जिससे नौ लोगों की मौत हो गई, ने व्यापारी चिराग वोरा को दहला दिया. वे कहते हैं, ''विस्फोट इतना जोरदार था कि खिड़कियों के शीशे टूट गए. मेरी ट्रे में रखे हीरे चारों ओर बिखर गए.''
शाम 7.05 पर एक और बम विस्फोट हुआ.
इस बार दादर के कबूतरखाना इलाके, जहां लोग घरेलू सामान की खरीदारी करते हैं, के हनुमान मंदिर में. जब घायल लोग चारों ओर खून के छींटों और क्षतिग्रस्त गाड़ियों के बीच सुरक्षित स्थान पर पहुंचने की कोशिश कर रहे थे तब उस इलाके में मिठाई की दुकान चलाने वाले इंदुलाल शाह सिर्फ इतना बता सके, ''इसमें सिर्फ एक सेकंड लगा और सब कुछ बदल गया. आम दिनों की चहलपहल पलक झ्पकते ही दहशत में बदल गई.''
इस खतरनाक सूची से वह शहर बखूबी परिचित है जहां लोग ललुहान हैं. कभी न सोने वाला शहर अब डर के मारे सोने वाला शहर बन गया है. आंकड़ों से खेलने वाला शहर अब बेजान अंकों का शहर बन गया है. 21 लोग मारे गए और 131 घायल हो गए. 18 साल में 14 विस्फोटों ने उन दरारों को स्पष्ट कर दिया है जो अब शर्मनाक रूप से सामान्य हो गई हैं. इसी तरह फालतू किस्म के घिस-पिटे बयान भी सामान्य हो गए हैं.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने चौंकाने वाली खोज की कि इन हमलों ने साबित कर दिया कि 'आतंकी समूह सक्रिय हैं और मर्जी से हमला करने में सक्षम हैं.'' केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम दक्षिण मुंबई के सांसद और हाल में मंत्री बने मिलिंद देवड़ा के साथ यह ऐलान करने मुंबई पहुंच गए कि ''भारत के हर शहर को अब भी आतंकियों के समन्वित हमले से खतरा है.''
मुंबई के पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक, जिन्होंने अभी तक अपने अधिकारियों और शहर के अंडरवर्ल्ड डॉन के बीच मधुर संबंध के बारे में नहीं बताया है, ने ऐलान किया कि हमले में ''आतंकी तत्व'' शामिल थे.
तीनों धमाकों के लिए चुने गए समय और तरीके प्रतिबंधित संगठन इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) की ओर इशारा करते हैं.
आइएम स्टुडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की शाखा है. हालांकि यह समूह 2008 में उस समय सामने आया था जब इसने अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली और असम के बम विस्फोटों की जिम्मेदारी ली थी, लेकिन यह 2003 से ही सक्रिय है. मध्य प्रदेश में उज्जैन का रहने वाला सफदर नागौरी आइएम का संस्थापक माना जाता है.
उसने इस संगठन को कथित रूप से धार्मिक और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए तैयार किया था. बाद में वह सशस्त्र संघर्ष करने पर आमादा गुट का नेता बन गया. अब इकबाल भटकल और उसका भाई रिया.ज पाकिस्तान के कराची से इस संगठन को चलाते हैं.
ये धमाके 11 जुलाई, 2006 को लोकल ट्रेन में सात धमाकों की पांचवीं बरसी के दो दिन बाद हुए. उन धमाकों में 209 लोगों की मौत हो गई थी और उनके पीछे भी कथित तौर पर आइएम का ही हाथ था. एक पुलिस अधिकारी दोनों सिलसिलेवार धमाकों के समय और विस्फोटकों के बीच समानता बताते हैं. वे कहते हैं, ''ट्रेन धमाकों में अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया था और विस्फोट शाम 6.30 से 7 बजे के बीच हुए थे.''
चिदंबरम ने पुष्टि की कि 13 जुलाई के धमाकों में भी अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया.
मुंबई के नाराज नागरिकों के सब्र का बांध टूट गया है, वे हर रोज खौफ के साए में जीते हैं. अब बहुत हो चुका. उन्होंने आतंक का पर्यटन बहुत झेल लिया. और वे अपने तार-तार हो चुके ''जोश'' के बार-बार बखान के बिना ही काम कर सकते हैं.
जैसा कि मल्टी-कॉमोडिटीज एक्सचेंज के प्रबंध निदेशक जिग्नेश शाह कहते हैं, ''समय आ गया है कि हर कोई, पुलिस, नेता और कंपनी जगत के लोग ऐसी योजना बनाएं कि हमें टेलीविजन पर बार-बार इतनी भयावह तस्वीरें न देखनी पड़ें. हर बार मुंबई को ही क्यों निशाना बनाया जाता है, क्यों?''
शहर के नागरिक कार्रवाई चाहते हैं. वे जवाब चाहते हैं. वे जानना चाहते हैं कि पुलिस को झ्वेरी बाजार की खाऊ गली प'हूंचने में आधा घंटा क्यों लग गया जबकि जौहरियों के इस बाजार में तीन पुलिस चौकियां हैं. वे जानना चाहते हैं कि मुंबई पुलिस को इस हमले के बारे में कोई चेतावनी पहले से क्यों नहीं थी? और वे जानना चाहते हैं कि महज एक किमी की दूरी पर क्रॉफर्ड बाजार में स्थित मुंबई पुलिस मुख्यालय में बैठे पुलिस के आला अफसरों ने 26/11 हमलों में 156 लोगों की मौत और 280 लोगों के घायल होने के बाद की गई सिफारिशों पर कितना अमल किया है?
वे जानना चाहते हैं कि पुलिस को साजिश के बारे में पता क्यों नहीं चलता. 26/11 के हमले के लिए वजह बनी कई तरह की खामियों का पता लगाने के लिए बनी दो सदस्यीय राम प्रधान समिति की एक अहम सिफारिश थी कि पुलिस बल में आमूलचूल बदलाव किया जाना चाहिए.
एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी कहते हैं, ''जब तक हम अपने पुलिस बल को पेशेवर नहीं बनाएंगे तब तक हमले होते रहेंगे. जब आप हल जानते हैं और कुछ करने की हालत में नहीं होते तो इससे मुझे खराब लगता है.''
दिलचस्प बात यह कि इन हमलों के एक दिन पहले मुंबई पुलिस ज्योतिर्मय डे हत्याकांड की जांच सीबीआइ के हवाले करने के खिलाफ बॉम्बे हाइकोर्ट में दलील दे रही थी.
ये हमले भविष्यसूचक खुफिया सुराग की नाकामी थे. इसी के जरिए अंदाजा लगाया जाता है कि अगला हमला कहां हो सकता है. इसके लिए गुप्तचरों और प्रशिक्षित लोगों में काफी निवेश करने की जरूरत होती है. यह उस राज्य के बूते से बाहर है जहां सबसे ज्यादा खाली पद पड़े हुए हैं-49,000 पुलिस पदों पर अभी तक कोई तैनाती नहीं हुई है.
महाराष्ट्र में आतंकवाद विरोधी दस्ता (एटीएस) 2004 में बना दिया गया था. उसमें महज 300 लोग हैं जबकि उससे तीन गुना ज्यादा लोगों को नियुक्त करने की मंजूरी मिली हुई है. नगर पुलिस के पूर्व सलाहकार सेवानिवृत्त कर्नल एम.पी. चौधरी कहते हैं, ''पुलिस बम फेंकने वालों के दिलों में खौफ पैदा करने में नाकाम रही है. वे उन्हें रोकने के लिए लगातार अपनी मौजूदगी बनाए रखने में भी अक्षम साबित हुए हैं.''
इन हमलों से केंद्रीय एजेंसियां भी भौचक रह गईं. दिल्ली में खुफिया ब्यूरो (आइबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''कोई संकेत नहीं था, कोई चेतावनी नहीं, कोई चूं तक नहीं थी कि हमला होने वाला है.''
शायद एजेंसियां मुगालते का शिकार हो गई थीं. 26/11 के बाद 13 फरवरी, 2010 को पुणे की जर्मन बेकरी में बड़ा हमला हुआ था जिसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी और इसके पीछे आइएम का हाथ माना गया था. विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान की समस्याओं की वजह से हमलों में कमी आई थी. लगता है, पड़ोसी मुल्क अपनी परेशानियों में उलझ्ने की वजह से भारत के भीतर आतंकी हमलों के लिए नहीं उकसा पा रहा था.
एक अधिकारी मानते हैं कि आइबी का मल्टी एजेंसी सेंटर-जिसे 26/11 के हमलों के बाद देश की 14 एजेंसियों को हर रोज सूचनाएं साझ करने के लिए बैठक करने को कहा गया था-ने साइबरवर्ल्ड में वर्चुअल हमलों पर बातचीत पर ध्यान केंद्रित कर दिया था. 26/11 के बाद सब तरफ ध्यान भटक गया था.
नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड जैसे आतंकवाद संबंधी महत्वपूर्ण प्रस्तावों को केंद्र में काफी प्रतिरोध झेलना पड़ा. गृह मंत्रालय ने संदिग्ध आतंकियों पर नजर रखने के लिए बैंक खाते और वित्तीय लेनदेन जैसे मौजूदा डाटाबेस को समेकित करने की परियोजना बनाई थी. इस परियोजना को 18 महीने बाद पिछले महीने ही सशर्त मंजूरी मिली है.
इसमें मुंबई की अंतर्निहित कमजोरी को और जोड़ दीजिए जिससे यह आसान निशाना बन जाती है. लंबाई में 468 वर्ग किमी में बसे इस शहर का आकार 1,483 वर्ग किमी वाली दिल्ली के मुकाबले एक-तिहाई है. लेकिन यह देश की सबसे ज्यादा घनी आबादी वाला शहर है.
दिल्ली में प्रति वर्ग किमी में 9,294 लोग रहते हैं जबकि मुंबई में इतने ही इलाके में 29,042 लोग रहते हैं जिसकी वजह से उसके 60,000 पुलिसवालों के लिए सबकी निगरानी करना मुश्किल हो जाता है. उसकी लोकल ट्रेनों में 69 लाख यात्री हर रोज सफर करते हैं, जो भारतीय रेल की दैनिक क्षमता का आधे से ज्यादा है, और यह दुनिया की सबसे ज्यादा भीड़वाली यातायात व्यवस्था है. मुंबई की बसों में 45 लाख यात्री हर रोज सफर करते हैं.
उसके तट हमले के लिए खुले हैं, जैसा कि 26/11 ने साबित कर दिया. महानगर की पानी की पाइपलाइनें भितरघात का आसान शिकार बन सकती हैं. पाइपलाइनों के इर्दगिर्द करीब 35,000 झेपड़ियां हैं और चौंकाने वाली बात यह है कि बृहन्मुंबई नगर पालिका (बीएमसी) के पास वहां रहने वाले लोगों का रिकॉर्ड तक नहीं है.
सुरक्षा विशेषज्ञ अक्सर चेताते रहे हैं कि समाज विरोधी तत्व पानी की पाइपलाइनों को तोड़कर पानी को संक्रमित कर सकते हैं. बॉम्बे हाइकोर्ट ने 2009 में बीएमसी को पानी की पाइपों के इर्दगिर्द झोपड़पट्टियां बसाने की इजाजत देकर नागरिकों के स्वास्थ्य को खतरे में डालने के लिए फटकार लगाई थी.
उसके बाद बीएमसी ने झोपड़ियों को तोड़ने की मुहिम शुरू की लेकिन झुग्गी बस्तियों को पूरी तरह साफ नहीं कर सकी. पूर्व आइपीएस अधिकारी वाई.पी. सिंह का कहना है, ''मुंबई असर छोड़ने के इच्छुक किसी भी आतंकी संगठन के लिए माकूल विज्ञापन है. मौसमी बारिश, जो प्रभावी निगरानी के आड़े आती है, सबसे बढ़िया अवसर मुहैया कराती है.''
इस तरह के हालात में सब कुछ पंगु हो जाता है, डर तेजी से फैलता है. किसी तरह का भ्रम संक्रामक होता है, और मल्टीमीडिया के जमाने में यह फौरन बहुत बड़ा आकार ले लेता है. धमाकों से मुंबई के दहलते ही दिल्ली में एक एसएमएस तेजी से फैला कि साकेत और डिफेंस कॉलोनी में बम मिले हैं.
किसी ने अफवाह फैलाई कि अजमल कसाब का जन्मदिन 13 जुलाई है. फिर किसी ने ट्विट किया उसका जन्मदिन असल में 13 सितंबर है, और फिर उसे ठीक कर लिया गया. एक चौथा ''बम'' मिल गया जो तार से भरा एक थैला था. जानी-मानी हस्तियों ने ट्विटर के जरिए अपना गुस्सा निकाला, आम लोगों ने परेशान परिवारों को फोन करने की कोशिश की.
मध्य मुंबई के लोकप्रिय मॉल फीनिक्स मिल्स की ग्राउंड फ्लोर लॉबी में अचानक सन्नाटा पसर गया. खरीदार वहां छूट के सीजन का लाभ उठाने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे थे. टीवी स्क्रीन पर धमाके की खबर देखते ही लगभग हर व्यक्ति ने अपना फोन निकाल लिया और दोस्तों तथा परिवारों से संपर्क करने की कोशिश शुरू कर दी.
इतने बड़े पैमाने पर फोन मिलाने की वजह से नेटवर्क जाम हो गया. एक युवा खरीदार ने मानो दूसरे लोगों की सोच को आवाज देते हुए कहा, ''धत तेरे की. यह शहर वाकई रहने के लिए खतरनाक होता जा रहा है.''
खासकर कुछ इलाके खतरनाक होते जा रहे हैं.
झ्वेरी बाजार में कई बार आतंकी हमले हो चुके हैं. अपने जेवरों और मारवाड़ी कचौड़ी के लिए मशहूर इस इलाके को 12 मार्च, 1993 को निशाना बनाया गया, जब वहां एक बम मिला था. बाद में यह साफ हो गया कि वह बम विस्फोटों की उसी श्रृंखला का हिस्सा था जिससे पूरा शहर हिल गया था. 25 अगस्त, 2003 को एक जोरदार विस्फोट में 36 लोगों की मौत हो गई थी.
मुंबई के नागरिक इस तरह की बुरी खबरों और अतीत की भयावह यादों से आजिज आ चुके हैं. वे इस सबसे छुटकारा पाना चाहते हैं. प्रमुख शेयर दलाल हेमेन कपाड़िया से पूछिए. वे 1993 में उस समय बीएसई बिल्डिंग में थे जब धमाका हुआ था. जब भी वे इस तरह के विस्फोट सुनते हैं तो उनकी हड्डियां कांप जाती हैं. वे सिर्फ यही जानना चाहते हैं: ''क्या कोई मुझे बता सकता है कि यहां का माई-बाप कौन है?'' इस सवाल का जवाब दिया जाना चाहिए, अभी.
-साथ में टी. सुरेंद्र, शांतनु गुहा रे और भावना विज-अरोड़ा
आसान निशाना, कठोर उपाय
विशेषज्ञों का कहना है कि आत्मतुष्ट न हों, ढांचे को दुरुस्त करें
''मुंबई का अपराध संबंधी परिवेश आतंकियों के लिए काम को अंजाम देना आसान बना देता है. यह 1993 के विस्फोटों से भी पहले से पाकिस्तान की एजेंसी आइएसआइ की भर्ती का प्रमुख केंद्र रहा है. यहां आबादी की आवाजाही जबरदस्त है, लगभग 20 लाख लोग रोजाना यहां आते और जाते हैं, जो आतंकियों को गुमनाम बने रहने का सुनहरा मौका देती है. आप आतंक का जवाब शहर के मुताबिक नहीं दे सकते और आतंकवाद के खिलाफ सरकार की कुल जमा प्रतिक्रिया नाकाफी है.''
-अजित डोवाल पूर्व निदेशक, खुफिया ब्यूरो
''राज्य और केंद्र में सरकार आत्मतुष्ट हो रही है. पी. चिदंबरम ने अच्छी शुरुआत की लेकिन अब वे सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है वाली तस्वीर पेश करना चाहते हैं. इस रवैए में बदलाव लाने की जरूरत है. आतंकवादियों को अपने अभियानों को अंजाम तक प'हूंचाने के लिए ऐसे लोगों की जरूरत होती है जो खुले में रह कर काम कर सकें. इस तरह के लोगों के बारे में सभी जानते हैं लेकिन राजनैतिक कारणों से उन पर किसी भी तरह की नजर नहीं रखी जाती है. वेद मारवाह पूर्व राज्यपाल, मणिपुर, मिजोरम और झारखंड
''हाल में हुए बम धमाके मूल रूप से हमारी पाकिस्तान और आतंकवाद निरोधी नीति का नाकाम होना है, इन दोनों को अलग करके नहीं देखा जा सकता है. पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता शुरू करके हमने आतंकवाद निरोधी नीति को सिर्फ कानून और व्यवस्था का मसला बनाने की कोशिश की है जबकि आतंक से निबटने के लिए और अधिक नीतियां बनाने की जरूरत है.''
-ब्रह्म चेलानी प्रोफेसर, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च
''यह समय एक बार फिर से उन चीजों की सूची बनाने का है जिनके जरिए हम सड़कों पर होने वाले आतंकवाद का जवाब दे सकें. हरेक प्रमुख महानगर के पास आतंकी हमलों का जवाब देने के लिए योजना होनी चाहिए. हमारे पास एक ऐसी प्रणाली होनी चाहिए जिससे हम कम-से-कम समय पर जवाबी कार्रवाई कर सकें. यह शर्मनाक है कि पुलिस ने विस्फोटों के स्थान पर पहुंचने में 30 मिनट का समय लिया. और उस मुंबई में जहां तीन साल पहले एक बड़ा आतंकी हमला हुआ था.''
-कपिल काक एयर मार्शल (सेवानिवृत्त), सेंटर फॉर एयर पॉवर स्टडीज
''मुंबई ऐसे किसी भी आंतकी संगठन के लिए एकदम माकूल मिसाल है जो अपना असर छोड़ना चाहते हैं. मौसमी बरसात प्रभावी पुलिस निगरानी की राह की एक बड़ी बाधा है, और आतंकियों को बेहतरीन मौका मुहैया कराता है. 2006 में लोकल ट्रेनों में हुए दो बम विस्फोटों और ताजा बम विस्फोटों के लिए समय जुलाई का ही चुना गया, वह समय जब मुंबई बरसात से भीगी होती है.''
-वाई.पी. सिंह पूर्व आइपीएस अधिकारी
खौफ के साये में जीता एक शहर
मुंबई पर छह बार हमले हुए हैं. एक को छोड़कर सभी श्रृंखलाबद्ध बम धमाके हैं, जिन्हें सैकड़ों लोगों की जान लेने के इरादे से अंजाम दिया गया.
12 मार्च, 1993
मुंबई में श्रृंखलाबद्ध तरीके से बम धमाके हुए. अंडरवर्ल्ड सरगना दाउद इब्राहिम ने 13 बम धमाकों को अंजाम दिया, जिनमें 257 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. टाडा अदालत ने हमले के 36 दोषियों को मौत की सजा सुनाई जबकि 84 को उम्रकैद हुई. अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
2 दिसंबर, 2002
मुंबई के घाटकोपर में बस में बम फटा जिसमें तीन लोग मारे गए और 28 घायल हुए. मुंबई में आठ माह में हुए पांच बम धमाकों की श्रृंखला में से यह सबसे पहला था.
25 अगस्त, 2003
दक्षिणी मुंबई के झ्वेरी बाजार और गेटवे ऑफ इंडिया में दो बम धमाकों में 46 लोग मारे गए जबकि 160 से ज्यादा घायल हुए. पोटा कोर्ट ने इंडिया मुजाहिद्दीन से जुड़े तीन लोगों को दोषी पाया और अगस्त, 2009 में उन्हें मौत की सजा सुनाई. मौत की सजा की पुष्टि के लिए मामला बॉम्बे हाइकोर्ट में लंबित है.
11 जुलाई, 2006
मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए 7 बम धमाकों में 209 लोग मारे गए और 714 घायल हुए. पुलिस ने आरोप लगाया कि इंडियन मुजाहिद्दीन ने 12 पाकिस्तानी नागरिकों की मदद से धमाकों को अंजाम दिया. सुनवाई 2010 में शुरू हुई. पोटा कोर्ट में यह जारी है.
26 नवंबर, 2008
विभिन्न 10 जगहों पर आतंकी हमलों में 186 लोगों की जान गई. एकमात्र जीवित हमलावर अजमल कसाब को मौत की सजा हुई है. अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
13 जुलाई, 2011
थोड़े समय के अंतराल में झ्वेरी बाजार, ऑपेरा हाउस और दादर में बम धमाकों में 21 लोग मारे गए. इसे इंडियन मुजाहिदीन की हरकत माना जा रहा है.
हमारा शहर हमें लौटा दो
हिम्मती होना अच्छा है, पर तब नहीं जब रोज इसे कसौटी पर कसा जाए
अजमल कसाब और उसके जैसे कइयों के लिए यह जश्न का समय है. हम भारतीयों के संस्कार इतने अच्छे होते हैं कि हम सैकड़ों लोगों का खून बहाने वाले आतंकवादियों के साथ भी सलीके से पेश आते हैं और ये आतंकी हमारी मेहनत की कमाई पर जेल में अब भी मजे कर रहे हैं. आखिर 26/11 के बाद महाराष्ट्र में हो चुके दो बम धमाकों के बावजूद खुफिया विभाग 13 तारीख से जुड़े खतरे को क्यों भांप नहीं सका? जागो भारत के लोगों और भारतीय खुफिया विभाग भी.''
-बोस कृष्णामाचारी, चित्रकार
फिलहाल सरकार को मुंबई को एक वैश्विक वित्त नगरी बनाने की अपनी थोथी बातों को बंद कर देना चाहिए. इसके बजाए, उसे सबसे पहले कुछ करके दिखाना चाहिए और अपने नागरिकों की सुरक्षा तथा पहले से ही सूचना देने जैसे मूल मसलों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए. पूंजी अपने आप आएगी. यहां होने वाला हरेक विस्फोट शहर की नींव को कमजोर बनाता है.''
-गगन बंगा, सीईओ, इंडिया बुल्स फाइनेंशियल सर्विसेस
काश! मैं प्रधानमंत्री और सरकार को यह बता पाता कि इस बात को मानने में कोई शर्म नहीं है कि हम भारतीय वेद और कामसूत्र को तो समझ लेते हैं लेकिन आतंकवाद से निबटना नहीं जानते. 9/11 के बाद अमेरिका में कुछ हुआ है? नहीं, क्योंकि उन्होंने अपनी व्यवस्था को एकदम पुख्ता बना लिया. हमारे पास क्या है? पुलिस देर से आती है, अस्पताल यह नहीं जानते कि आतंकी हमले के समय मरीजों की देखभाल कैसे करनी है. मैं शिकायत क्यों कर रहा हूं? हम कभी नहीं बदल सकते.''
-अलीक पद्मसी, एडवर्टाइजिंग गुरु
मुझे इस बात का खेद है कि नागरिक खुद की रक्षा करने में असमर्थ हैं और उनकी निर्भरता पूरी तरह से व्यवस्था पर है जो हमेशा से उन्हें निराश करती आई है. वीआइपी सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों की गैरवाजिब तादाद को देखें. दूसरा, 26/11 के हमलों की जांच के नतीजों के बारे में जनता को बताने की किसी ने कोई परवाह नहीं की. जनता शक्तिविहीन है और अधिकारियों को उसकी रक्षा करनी है. ऐसा लगता है कि 26/11 की बनिस्बत इस हमले के बाद कार्रवाई कुछ ठीक ढंग से हुई है. लेकिन लोगों को जिस चीज की जरूरत है उस पर थोड़ी या बिल्कुल भी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिल रही है. व्यवस्था सत्ता में मौजूद लोगों की मनमर्जी से चलती है.
-गेर्सां द कुन्हा, सामाजिक कार्यकर्ता
ये हमले देश में कहीं भी हो सकते हैं लेकिन वित्तीय राजधानी और सबकी निगाहों में होने के कारण मुंबई को निशाना बनाया गया. अतीत में हम पर हमला कर चुके लोगों को सजा दिलाने में प्रशासन की नाकामी हताश कर देने वाली है. जनता होने के नाते, सुरक्षा को लेकर हम कुछ नहीं कर सकते-यह काम प्रशासन का है. जिस तरह आतंकवादियों से निबटा जा रहा है वह निराशा भरा है. अजमल कसाब दोषी करार दिया गया है लेकिन वह अब भी जेल में है. अफजल गुरु का भी अब तक कुछ नहीं हुआ. इससे लोगों में क्या संदेश जाता है? आखिर कब तक हम राजनैतिक रूप से सही बनते रहेंगे?''
-अनुपम खेर, अभिनेता