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बेनी प्रसाद वर्मा: दुश्मन बने दोस्त का इंतकाम

राजनीति में सब कुछ हमेशा एक जैसा नहीं रहता. दो दशक पहले गहरे दोस्त रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी.

आशीष मिश्र
  • लखनऊ,
  • 02 अप्रैल 2013,
  • अपडेटेड 2:43 PM IST

प्रसाद वर्मा और समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव अब कट्टर विरोधी हैं. लखनऊ से 120 किमी दूर गोंडा संसदीय क्षेत्र के कुछ नाराज लोग 2012 के विधानसभा चुनाव में अपने सांसद 72 वर्षीय वर्मा का मुंह नहीं देखना चाहते, लेकिन 16 मार्च को गोंडा के मुजेहना विधानसभा क्षेत्र में आयोजित इंडियन टेलीकॉम इंडस्ट्री (आइटीआइ) के शिलान्यास कार्यक्रम में, बेनी गोंडा की जान हैं, बेनी कांग्रेस की शान हैं और बेनी का केवल एक ही मिशन, राहुल को बनाएं देश का पीएम जैसे नारे गूंज रहे थे.

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भारी भीड़ और गूंजते नारों से अभिभूत बेनी ने अपनी बयान बहादुरी दिखाई और बोल बैठे, ''मुलायम सबसे बड़े बेईमान हैं, लुटेरे हैं. इनके आतंकियों के साथ रिश्ते हैं. वह मेरी हत्या करा देना चाहते हैं. '' फिर क्या था. यूपी की सड़कों पर बेनी के पुतले फूंके जाने लगे, संसद में भूचाल आ गया. राजनैतिक समीकरणों के तार जुडऩे लगे. बेनी के सपा छोडऩे के बाद से पहली बार मुलायम सिंह ने उनके खिलाफ मोर्चा खोला और सरकार से उनकी बरखास्तगी पर अड़ गए.

वर्मा की पहचान अब भले ही बड़बोले नेता के तौर पर होती हो, लेकिन 1970 में केन यूनियन बुढ़वल रामनगर, बाराबंकी के संचालक और उपसभापति पद पर निर्वाचित होकर अपना राजनैतिक सफर शुरू करने वाले बेनी की छवि जुझारू समाजवादी नेता की थी. 1974 में वे भारतीय लोकदल के टिकट पर पहली बार विधायक बने. लखनऊ यूनिवर्सिटी से लॉ ग्रेजुएट बेनी पहली बार 1979 में जनता पार्टी की सरकार में गन्ना विकास, चीनी उद्योग एवं कारागार सुधार विभाग के मंत्री बने. उसी वक्त बेनी और मुलायम सिंह के बीच नजदीकियां बढ़ीं. 1989 में प्रदेश में मुलायम सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनने पर बेनी को सार्वजनिक निर्माण और संसदीय कार्य मंत्री के रूप में नंबर दो की हैसियत मिली.

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1992 में जब मुलायम सिंह की अध्यक्षता में सपा का गठन हुआ तो बेनी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बने. राजनैतिक विश्लेषक अभय कुमार कहते हैं, ''समाजवादी पार्टी मुख्य रूप से पिछड़े वर्ग की पार्टी थी. मुलायम को पिछड़े वर्ग में यादवों का समर्थन था तो बेनी कुर्मियों के एकछत्र नेता के रूप में उभरे थे. '' 1996 के लोकसभा चुनाव में बेनी ने सपा के टिकट पर कैसरगंज से चुनाव जीता और मुलायम के साथ केंद्र की राजनीति में अपनी मौजूदगी दिखाई. 1996 से 1998 के बीच उन्होंने केंद्र की यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में संसदीय कार्य राज्यमंत्री और उसके बाद कैबिनेट मंत्री के तौर पर संचार मंत्रालय का कार्यभार संभाला.

2004 में बेनी चौथी बार कैसरगंज से सांसद चुने गए. इस वक्त यूपी में सपा की सरकार थी और यही वह समय था, जब बेनी और मुलायम में दूरियां बढऩी शुरू हुईं. प्रदेश कांग्रेस की जोनल कोऑर्डिनेशन कमेटी के को-चेयरमैन और बेनी के नजदीकी जे.पी. सिंह कहते हैं, ''दोनों के रिश्ते टूटने के पीछे अमर सिंह का हाथ था. '' सपा के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि अमर सिंह बहराइच में वकार अहमद शाह और बाराबंकी में अरविंद सिंह गोप को बेनी के मुकाबले खड़ा कर रहे थे. इससे नाराज होकर उन्होंने 2007 में पार्टी से नाता तोड़ लिया और अपनी पार्टी 'समाजवादी क्रांति दल' (एसकेडी) बनाई.

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2007 में हुए विधानसभा चुनाव में बेनी अयोध्या से लड़े और अपनी जमानत तक न बचा सके. उधर, यूपी में पांव मजबूत करने की कोशिश में जुटी कांग्रेस के पास पिछड़े वर्ग का कोई बड़ा नेता नहीं था और इसी मजबूरी ने कांग्रेस और बेनी का मिलन कराया. 2008 में बेनी कांग्रेस में शामिल हुए. 2009 में उन्होंने अपनी पुरानी सीट कैसरगंज की जगह 15 फीसदी कुर्मी मतदाता वाले संसदीय क्षेत्र गोंडा से चुनाव लड़ा. चुनाव में वोटों का गणित बेनी के पक्ष में फिट बैठा और वे चुनाव जीत गए.

2012 के विधासभा चुनाव में पिछड़े वर्ग के वोट बैंक को अपनी ओर खींचने के लिए कांग्रेस ने बेनी को ही आगे किया. इसी रणनीति के तहत 2011 में पहले बेनी को इस्पात मंत्रालय में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया और अगले ही साल 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले उनका कद बढ़ाकर उन्हें इस्पात मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बना दिया गया. बेनी के रूप में कांगे्रस का पिछड़ा कार्ड विधानसभा चुनाव में फ्लॉप साबित हुआ. गोंडा, बाराबंकी जैसे कुर्मी बाहुल्य और बेनी की पकड़ वाले इलाकों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली.  गोंडा के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर, 65 वर्षीय एसपी मिश्र कहते हैं, ''बेनी अब भी पिछड़ों के सर्वमान्य नेता नहीं बन सके हैं. उन्हें केवल गोंडा, बाराबंकी की कुर्मी बिरादरी का ही समर्थन है. '' इसके अलावा वे मसौली दंगों का दाग भी नहीं धो पाए.

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विधानसभा चुनाव में मिली बुरी हार की धूल झड़कर बेनी एक बार फिर से उठ खड़े हुए हैं. वे पिछले छह महीने के दौरान गोंडा में एक दर्जन सभाएं कर 20,000 करोड़ रु. की योजनाओं की घोषणा कर चुके हैं. लेकिन इन सभाओं में ज्यादातर सुर्खियां मुलायम को लेकर बेनी के बयानों ने ही बटोरी हैं. जनवरी में अखिलेश सरकार ने बेनी को मिली जेड श्रेणी की सुरक्षा को घटाकर एक्स श्रेणी कर दिया. यही नहीं, फरवरी में हुए यूपी सरकार के मंत्रिपरिषद विस्तार में गोंडा से मंत्रियों की संख्या एक की जगह तीन करके बेनी को घेरने की रणनीति बनाई तो मुलायम के खिलाफ उनका पारा चरम पर पहुंच गया.

सपा प्रमुख को खिझने वाले बयानों के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस्पात मंत्री को जेड-प्लस सुरक्षा मुहैया करा दिया. मजेदार बात यह है कि इससे पहले जब बेनी ने सुरह्ना मांगी थी तब तत्कालीन गृह मंत्री के अधीन मंत्रालय ने दो टूक कह दिया था कि उनकी जान को कोई खतरा नहीं है. लेकिन बेनी-मुलायम के इस जंग में कांग्रेस अपने नेता के साथ खड़ी है. कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर कहते हैं, ''बेनी बाबू असल में गरीबों और पिछड़ों के नेता हैं. उन्होंने कभी भी अपने सिद्घांतों से समझौता नहीं किया. इसीलिए वे विरोधियों को खटकते हैं.''

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