
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23-25 सितंबर को केरल के कोझिकोड में आयोजित बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को उद्धृत करते हुए कहा, ''मुसलमानों को न पुरस्कृत करो, न तिरस्कृत बल्कि परिष्कृत कीजिए." अपनी छवि से अलग सीधे मुसलमानों को संबोधित करने के मोदी के अंदाज ने बीजेपी नेताओं को भी सकते में डाल दिया. आखिर पांच साल पहले सितंबर, 2011 में इन्हीं मोदी ने अहमदाबाद में टोपी पहनने से साफ इनकार कर दिया था. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''भले मोदी ने संदर्भ से हटकर बात की, लेकिन उनकी कार्यशैली की यही विशेषता है कि वे बिना किसी ठोस रणनीति के न तो कुछ बोलते हैं और न ही कुछ करते हैं."
हुआ भी यही. हफ्ते भर के भीतर केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने देशभर में 100 मुस्लिम पंचायत (जिसे प्रोग्रेसिव पंचायत का नाम दिया है) का खाका तैयार कर 29 सितंबर को हरियाणा के मेवात से उसका आगाज भी कर दिया. प्रधानमंत्री के तौर पर अपना आधा कार्यकाल पूरा कर रहे मोदी कार्यकर्ताओं को संदेश दे रहे हैं—मुसलमानों को न वोट की मंडी समझिए, न घृणा की वस्तु, बल्कि उन्हें अपनाएं. बाकी राजनैतिक दलों ने मुसलमानों में बीजेपी के प्रति डर की भावना पैदा कर अपने साथ रखा, लेकिन हमें उनका विश्वास जीतकर अपनाना है.
दरअसल, बीजेपी और मोदी की मुस्लिम रणनीति में बदलाव की बड़ी वजह पिछले दो साल के चुनावों से मिला सबक है. बीजेपी के एक नेता कहते हैं, ''2014 के आम चुनाव में मुसलमानों का समर्थन नहीं मिलने के बावजूद बीजेपी सत्ता में है. लेकिन राजनीति में लंबी पारी खेलने के लिए 20 करोड़ की आबादी वाले मुस्लिम समाज का भरोसा हासिल करना जरूरी है और यह पहल दोतरफा होनी चाहिए." लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह बिहार और दिल्ली में बीजेपी के विरोध के नाम पर लामबंदी हुई और पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, उसने बीजेपी के रणनीतिकारों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी सिर्फ इस रणनीति पर काम रही है कि है कि भले मुस्लिम समाज का वोट उसे नहीं मिले, लेकिन जिस तरह की लामबंदी बीजेपी-आरएसएस विरोध के नाम पर होती है, उससे बीजेपी की रणनीति पर पानी फिर जाता है.
पार्टी की रणनीति उसी गुस्से और नफरत की भावना को खत्म करने की है. अगले साल होने वाला उत्तर प्रदेश का चुनाव बेहद संवेदनशील है और बीजेपी को अंदेशा है कि समाजवादी पार्टी का अंदरूनी बिखराव मुसलमानों को एकमुश्त बीएसपी की ओर मोड़ सकता है, जो बीजेपी के लिए चिंताजनक है. मुस्लिम पंचायत भले उत्तर प्रदेश में नहीं आयोजित की जा रही है, लेकिन पार्टी इसके जरिए सकारात्मक संदेश जरूर देना चाहती है.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता इसे घरेलू राजनीति के अलावा वैश्विक रणनीति से भी जोड़ रहे हैं. उनका कहना है कि मोदी ने पिछले दो साल में अफगानिस्तान, यूएई, सऊदी अरब, ईरान जैसे इस्लामी देशों के साथ संबंध बनाने में सफलता हासिल की है. लेकिन अभी भी दादरी जैसी घटना पर यह माहौल बनाया जाता है कि बीजेपी के सत्ता में होने की वजह से भारत के मुस्लिम खौफजदा हैं. मोदी इस छवि को बदलना चाहते हैं.
प्रोग्रेसिव पंचायत के लिए 15 राज्यों की 100 मुसलमान बहुल जगहों का चुनाव किया गया है. केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी इंडिया टुडे से कहते हैं, ''हम बिना तुष्टिकरण के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहे हैं. अल्पसंख्यक समाज के लिए जो योजना मंत्रालय ने तैयार की है, उसे जमीन पर उतारने के लिए मिशन सशक्तिकरण के तहत हम अभियान चला रहे हैं. मेवात में 4 जगहों से इसकी शुरुआत हो चुकी है." इस पंचायत का खाका जनसंवाद की तरह है, जहां नकवी पहले पूरी योजना बताते हैं और फिर समाज के लोगों से सीधे बातचीत की जाती है. अधिकारियों का जत्था भी मौके पर होता है, इसलिए मंत्रालय से जुड़ी समस्याओं का समाधान तत्काल किया जाता है तो बाकी को संबंधित विभाग, राज्य सरकार तक पहुंचाया जाता है. इस पंचायत में खासतौर से प्रधानमंत्री की नई 15 सूत्रीय योजना, बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (एमएसडीपी) की योजनाएं, सीखो और कमाओ योजना, उस्ताद, नई मंजिल जैसी योजनाओं का विस्तृत ब्यौरा रखकर मुसलमानों के कल्याण से जुड़े काम को रखा जाता है. मोदी सरकार ने केंद्र-राज्य वक्फ बोर्ड की खाली जमीनों पर बहुउद्देशीय भवन बनाने की योजना तैयार की है. दिल्ली हाट की तर्ज पर देश भर में 1,000 ऐसे भवन बनेंगे, जिससे मिलने वाले राजस्व का खर्चा इसी समाज के लिए किया जाएगा. आपदा की स्थिति में यह भवन राहत शिविर के रूप में भी काम आएगा.
इस गुणा-गणित पर एआइएमआइएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं, ''मुस्लिम पंचायत क्या तुष्टिकरण नहीं है अब बीजेपी के लिए? मेवात में दो मुस्लिम लड़कियों का गोश्त खाने के आरोप में बलात्कार कर दिया जाता है, लेकिन उस पर कड़ी कार्रवाई नहीं होती." उनका दावा है कि प्रधानमंत्री ने जिन दीनदयाल उपाध्याय को उद्धृत किया, उनकी एकात्म मानववाद के सिद्धांत में ही मुसलमानों पर भरोसा नहीं करने की बात दिख रही है.
लेकिन दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम (रेक्टर) मौलाना अबुल कासिम नोमानी प्रधानमंत्री मोदी की पहल का स्वागत करते हैं पर उन्हें उस पर संदेह भी है. वे कहते हैं, ''बीजेपी की सोच में तब्दीली का एहसास दिख रहा है. सच्चर रिपोर्ट आज भी फाइलों में दबी हुई है, इसलिए कथनी और करनी में क्या होता है इसका हम इंतजार करेंगे." इसी तरह, बरेलवी सूफी परंपरा के खानकाह-ए-नियाजिया के प्रबंधक शब्बू मियां नियाजी कहते हैं, ''प्रधानमंत्री की सोच अच्छी है, लेकिन देखना होगा कि वे कितना कामयाब हो पाते हैं और पार्टी के दबाव से कितना बाहर निकलकर काम कर पाते हैं." लेकिन बीजेपी नेता साबिर अली को भरोसा है कि प्रधानमंत्री अपनी सोच में कामयाब होंगे. वे कहते हैं, ''मुसलमानों को यह समझना होगा कि उसे आने वाली पीढ़ी को अच्छा बनाना है तो खुद को एक राजनैतिक हाथ में गिरवी रखने की जरूरत नहीं है. मुसलमानों को भी बदलना चाहिए और दिल खोलकर बीजेपी की पहल का स्वागत करना चाहिए."
वैचारिक द्वंद्व मुहिम में मुश्किल
बीजेपी और संघ इतिहास के आधार पर मुस्लिम रणनीति में सफलता की उम्मीद देख रहा है. बीजेपी के एक नेता कहते हैं, ''बीजेपी और मुसलमानों को लेकर जैसी धारणा अभी है, 1940 के दशक में कांग्रेस के लिए मुसलमानों में इससे ज्यादा अलगाव की भावना थी. लेकिन बाद में कांग्रेस ने उसे अपने साथ मिला लिया." लेकिन बीजेपी के साथ ऐसा नहीं है. गांधीवादी समाजवाद के उदार विचार पर बनी पार्टी को वोट तभी मिले, जब वह राम मंदिर आंदोलन के जरिए हिंदुत्व की तरफ मुड़ी. इन्हीं मुद्दों से केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी.
लेकिन अटल सरकार ने भारी संख्या में उर्दू शिक्षकों की भर्ती, मदरसों का आधुनिकीकरण, राम मंदिर पर लचर रुख और फिर अटल हिमायत कारवां का सफर निकाला तो बीजेपी ऐसी जमीन पर गिरी कि 2000 के दशक में खड़ी भी नहीं हो पाई. लेकिन 2014 में बीजेपी के हिंदू हृदय सम्राट की छवि वाले पोस्टर बॉय मोदी पर दांव लगाया तो पार्टी ने जबरदस्त छलांग लगाई. संघ से जुड़े बीजेपी के ही एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''हमारा वैचारिक गठन ही इस तरह का है कि उससे मुसलमानों का भरोसा हासिल कर पाना मुश्किल है." संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संस्थापक इंद्रेश कुमार इस अवधारणा को नकारते हैं कि संघ-बीजेपी मुसलमानों के बीच अपनी छवि सुधारना चाहते हैं. वे कहते हैं, ''हम मुसलमानों को सही दिशा में लाने का प्रयास कर रहे हैं. मुसलमान यह मानता है कि वर्षों से तथाकथित सेकुलर पार्टियों ने समुदाय को मुख्यधारा में नहीं आने दिया और सिर्फ वोट के रूप में मानते रहे. कट्टरवादियों ने आतंक के लिए इस्तेमाल किया तो सेकुलरवादी पार्टियों ने संघ के खिलाफ भड़काने का काम किया. लेकिन अब मुसलमान इससे निकल रहा है और मानता है कि आरएसएस को गालियां देने से उसे मिला कुछ नहीं, बल्कि अन्य दलों ने इसका गलत इस्तेमाल कर लिया. इसलिए मुसलमानों में सुधारवाद, परिवर्तन और विकास का बड़ा आंदोलन जन्म ले रहा है."
बीजेपी को विश्वास है कि मोदी सरकार के प्रयासों से मुसलमानों में भगवा परिवार के प्रति नफरत की भावना कमजोर होगी. साथ ही उसे खटका भी है कि मोदी की वह कट्टर छवि खत्म न हो जाए, जिसने 2014 के चुनाव में उसे बड़ी जीत दिलाई थी. सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के वक्त उत्तर प्रदेश में पार्टी के एक बड़े नेता ने बंद कमरे की बैठक में यहां तक कहा था कि यूपी से एक भी मुसलमान जीतकर नहीं जा पाएगा. इस संवाददाता ने जब अमित शाह से बिहार चुनाव के समय दादरी कांड और यूपी के बड़े नेताओं के मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ बयान पर सवाल पूछा था, तो खुद बीजेपी अध्यक्ष का कहना था ''आप छह महीने यूपी में रहकर आओ, आप भी वही भाषा बोलोगे जो हमारे नेता बोलते हैं." बीजेपी की चिंता इसलिए भी है क्योंकि उसके कोर वोटर की एक विशिष्ट सोच है, जो उसे मुस्लिम परिप्रेक्ष्य में काम करने में कठिनाई ही पैदा करेगी. ऐसे में सवाल उठता है कि इस सोच के साथ क्या बीजेपी मुसलमानों का दिल जीत पाएगी?