Advertisement

राजीव गांधी की हत्या: अंतहीन पड़ताल

राजीव गांधी की हत्या का मामला अभी तक भी अनसुलझा है. राजीव की हत्या के बारे में रॉ के पास पुख्ता खुफिया जानकारियां थीं.

संदीप उन्नीथन
  • नई दिल्ली,
  • 27 अगस्त 2013,
  • अपडेटेड 12:06 PM IST

तमिलनाडु के श्रीपेरुंबदूर में 21 मई, 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या बेहद निर्मम और सनसनीखेज थी क्योंकि इसमें महिला आत्मघाती हमलावर जैसा नया तरीका अपनाया गया था. यह मामला अनसुलझ ही रह गया होता लेकिन हमले में एक फोटोग्राफर की भी मौत हो गई थी, जिसे एलटीटीई ने हत्या की तस्वीरें उतारने के लिए किराए पर रखा था, ताकि संगठन के प्रमुख वी. प्रभाकरन को वे तस्वीरें दिखाई जा सकें.

उसके कैमरे में हत्यारों की तस्वीरें कैद थीं. मद्रास कैफे में इस पूरी साजिश की पृष्ठभूमि को दिखाया गया है कि एलटीटीई कुछ ताकतवर लोगों और विदेशी एजेंसियों के लिए काम कर रहा था. फिल्म में उन्हें गुरुजी और रीड कहकर संबोधित किया गया है. इस हत्या के पीछे वैसी ही साजिश दिखाई गई है, जैसी पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया-उल-हक और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ.. कैनेडी की हत्या के पीछे थी.

नवंबर, 1998 के बाद से सीबीआइ की मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटरिंग एजेंसी (एमडीएमए) ने साजिश के उन पहलुओं की जांच की है, जिन्हें जैन आयोग की रिपोर्ट में उठाया गया था. फिल्म की कहानी में कुछ जगहों पर वास्तविक घटनाओं का चित्रण किया गया है.

राजीव गांधी की हत्या के बारे में रॉ के पास पुख्ता खुफिया जानकारियां थीं.
रॉ को इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी कि राजीव गांधी एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरन के निशाने पर थे. रॉ में आतंकविरोधी शाखा के पूर्व प्रमुख दिवंगत बी. रमन ने 2007 में प्रकाशित अपनी पुस्तक कावबॉयज ऑफ रॉ में भी इस बात को स्वीकार किया है. राजीव गांधी के प्रति प्रभाकरन की नफरत शायद 1987-91 के बीच उसे पकडऩे की सेना की तीन नाकाम कोशिशों से पैदा हुई थी.

फिल्म में ऐसी कोशिश दिखाई गई है. रॉ ने प्रभाकरन के मुख्य सहयोगी महेंद्रराजा उर्फ  महातैया (जिसे बाद में प्रभाकरन ने मरवा दिया था) का सहारा लेने की कोशिश की थी. इसके अलावा रॉ ने तमिल नेशनल आर्मी जैसे दूसरे संगठनों को भी समर्थन देने की कोशिश की थी. फिल्म में ये सभी पकड़े जाते हैं.

एलटीटीई विदेशी ताकतों के लिए काम कर रहा था.
एमडीएमए इसे अभी तक गलत साबित नहीं कर पाया है. एमडीएमए में रह चुके के. रघोत्तमन के मुताबिक, ऐसा लगता नहीं कि एलटीटीई कांट्रैक्ट किलर के रूप में काम कर रहा था. उन्हीं के शब्दों में, इस बात के सबूत हैं कि प्रभाकरन ने हत्या का आदेश दिया था. 2012 में प्रकाशित अपनी किताब कॉन्सपिरेसी टु किल राजीव गांधी में वे कहते हैं कि एलटीटीई ने जान-बूझकर खुद को निर्दोष साबित करने के लिए कहानियां गढ़ीं.

तांत्रिक चंद्रास्वामी शामिल था.
एमडीएमए को हत्या में इस तांत्रिक का हाथ होने का कोई सबूत नहीं मिला है. हालांकि फिल्म में इसका संकेत दिया गया है. कहा जाता है कि चंद्रास्वामी दो पूर्व प्रधानमंत्रियों का करीबी था. इनमें पी.वी. नरसिंह राव भी शामिल थे. जैन आयोग की रिपोर्ट में भी उसका हाथ होने का संकेत दिया गया था.

यासर अराफात ने राजीव गांधी को इस साजिश की चेतावनी दी थी.
अप्रैल 1991 में फलस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के अध्यक्ष अराफात ने राजीव गांधी के पास अपना एक दूत भेजकर उन्हें हत्या की साजिश के बारे में आगाह किया था. एमडीएमए अधिकारी एन.के. दत्ता ने 1990 के दशक के अंत में अराफात से मुलाकात की थी, लेकिन अराफात ने अपनी जानकारी के स्रोत का खुलासा नहीं किया.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement