छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की पुलिस लाइन से मुख्यमंत्री रमन सिंह का हेलिकॉप्टर दोपहर 1 बजे उड़ान भर करीब 2 बजे कोरबा लोकसभा सीट के बरपाली पहुंचता है. जमीन पर उतरने से पहले ही साथ में मौजूद मुख्यमंत्री का खानसामा नारियल से पानी निकाल गिलास उनकी ओर बढ़ाता है. चिलचिलाती गर्मी में भी लोगों की भीड़ मुख्यमंत्री का उत्साह बढ़ा देती है.
अचानक वे बताते हैं, ''हमारे उम्मीदवार बंशीलाल महतो यहां से 1999 में भी लड़े थे, लेकिन 16,000 वोटों से हार गए.” मंच पर पहुंचने से पहले नरेंद्र मोदी जिंदाबाद का नारा गूंजता है. मंच संभालते ही रमन छत्तीसगढिय़ा में कहते हैं, ''इतका धूप, इतका घाम. एते संख्या में मौजूद... ये प्रतीक.. नरेंद्र मोदी ला प्रधानमंत्री बनावेला पूरा क्षेत्र तैयार है.” फिर सूरज अस्त होने से पहले ही उनकी और दो सभाएं होती हैं और गर्मी का असर कम होते-होते रमन का जोश बढ़ता जाता है.
अकेले दम पर जिताने की चुनौतीविधानसभा में जीत की हैट्रिक लगाकर अजातशत्रु बन चुके 61 वर्षीय रमन के लिए 2014 का आम चुनाव पिछले चुनावों से कुछ अलग है. उनकी बड़ी चुनौती कम-से-कम 2009 के चुनाव नतीजों को कायम रखना है. चुनावी सफर के दौरान रमन कहते हैं, ''मैं राज्य की सभी 11 सीटों पर कांग्रेस से कड़ी टक्कर मानता हूं. किसी भी चुनाव को आसान नहीं मानता.”
अपनी हर सभा के बाद उडऩखटोले में वे कभी छाछ तो कभी सत्तू का घोल, बेल का शरबत आदि का सेवन कर खुद को अगली सभा में पसीना बहाने के लिए खुद को तैयार करते हैं. वे राज्य में बीजेपी के एकमात्र स्टार प्रचारक हैं और मिशन-11 पूरा करने का दारोमदार भी उन्हीं पर है. सूबे में बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने पांच तो राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने तीन सभाएं की हैं, जबकि रमन एक महीने के भीतर सभी
90 विधानसभा सीटों तक पहुंचे. सभी 11 सीटों पर कार्यकर्ता सम्मेलन से अभियान की शुरुआत की, फिर हर उम्मीदवार के नामांकन में मुख्यमंत्री की मौजूदगी यह दिखाने को काफी थी कि मोदी के लिए बीजेपी का महासमर रमन के लिए कितनी बड़ी चुनौती है. हर सीट की बारीकियों पर निगाह उन्होंने हर लोकसभा क्षेत्र में करीब आधा दर्जन से ज्यादा सभाएं की हैं.
गर्मी भले देश की राजधानी दिल्ली में शबाब पर न हो, लेकिन छत्तीसगढ़ में कहर बरपा रही है. इसके बावजूद रमन अनवरत प्रचार अभियान में जुटे हैं. रमन की तैयारी बेहद चाक-चौबंद है. वे जिस सभा के लिए निकलते, उसका खाका हेलिकॉप्टर में उनके ओएसडी विक्रम सिसोदिया उन्हें थमा देते.
कोरबा के बरपाली पहुंचने से पहले जिस नोट-शीट का रमन अध्ययन कर रहे हैं, उस पर विकास और चुनावी तथ्यों के अलावा ईमानदारी से लिखा गया है कि इस क्षेत्र में नुकसान की वजह बीजेपी उम्मीदवार की निष्क्रियता है. लेकिन लाभ के मुद्दे के तौर पर मोदी का प्रभाव होने की बात लिखी है.
विरोधियों पर तथ्यों के साथ हमलेदोपहर के ढाई बजे चिलचिलाती गर्मी के बीच रमन बरपाली में गरजते हैं. वे कहते हैं कि यह चुनाव दो तरह का इतिहास रचने जा रहा है. पहला, कांग्रेस सबसे बड़ी पराजय की ओर बढ़ रही है और वह देशभर में 70 से ज्यादा सीट नहीं जीत पाएगी.
दूसरा, मोदी के नेतृत्व में 272 सीट जीतकर बीजेपी की सरकार बनेगी. फिर वे यूपी के डौंडियाखेड़ा में एक साधु के झूठे सपने को सच मान प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर खुदाई करवाने वाले महंत पर चुटकी लेते हैं, ''महंत को रात के सपने में सोना दिखता है. कृषि मंत्री जैसे बड़े पद पर हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ का खेत-खलिहान नहीं दिखता. मैंने उनसे पूछा था, महंत जी कुछ और सपना है तो बता दो.”
बीजेपी उम्मीदवार के लिए अपील के बाद वे इसी लोकसभा की दर्री क्षेत्र के लिए उड़ान भरते हैं. कांग्रेस को 70 सीटें मिलने का आंकड़ा आप कहां से लाए? इंडिया टुडे के इस सवाल पर मुस्कराते हुए रमन कहते हैं, ''ये मेरा निजी आकलन है.” दूसरी सभा में उनका भाषण पहले जैसा ही है, आखिरी सभा से पहले हेलिकॉप्टर में चाय की चुस्की लेते हुए रमन अपने खान-पान के बारे में बताते हैं, ''मैं कभी बाहर का खाना नहीं खाता. 1 बजे खाना खाया था और अब 4 बजे सत्तू ले रहा हूं. (चुनाव प्रचार के दौरान) पूरे महीने मैं यही खाना खाता हूं क्योंकि बाहर का खाने से बीमार पड़ने का अंदेशा बना रहता है.”
रमन का काम, मोदी का नाम चुनावी सभा में कोरबा से कांग्रेस उम्मीदवार चरण दास महंत पर कड़े हमले के बाद रमन जब जांजगीर लोकसभा सीट के लिए रवाना होते हैं, तो मुस्कराते हुए दिल की बात बताते हैं, ''आज महंत का फोन आ जाएगा—क्या बोल आए भइया हमारे यहां (कोरबा में)?”
महंत और रमन का रिश्ता राजनैतिक से ज्यादा पारिवारिक है. बीजेपी के मिशन-11 में सिर्फ कोरबा लोकसभा सीट ही ऐसी थी जो बीजेपी के हाथ से 2009 में फिसल गई थी. लेकिन इस बार रमन सभी सीटें जीतने का दावा करते हैं. वे कहते हैं, ''मोदी का नाम और छत्तीसगढ़ सरकार का काम, ये दोनों मिलाकर एक और एक ग्यारह बनते हैं. निश्चित रूप से हम इस बार सभी 11 सीटों पर जीतेंगे.”
वंशवाद का 'अभिषेक’छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की किस्मत 24 अप्रैल के मतदान के बाद ईवीएम में बंद हो चुकी है. लेकिन दूसरा चरण रमन के लिए इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण था क्योंकि राजनांदगांव लोकसभा सीट से उन्हें बेटे अभिषेक सिंह को टिकट दिलवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा था. यह सीट मधुसूदन यादव ने 2009 में 1.19 लाख वोटों के अंतर से जीती थी. अभिषेक इंडिया टुडे से सवाल करते हैं, ''अगर मैं राजनैतिक परिवार से हूं तो क्या मुझे राजनीति में आने का हक नहीं है?
बीजेपी के उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया पारदर्शी और लोकतांत्रिक है. मेरे पिता ने अपने राजनैतिक करियर में व्यक्तिगत हित को कभी नहीं थोपा.” लेकिन क्या यह वंशवाद नहीं है? रमन कहते हैं, ''वंशवाद का विषय बीजेपी में न है, न रहेगा. अभिषेक आठ साल से कार्यकर्ता की हैसियत से काम कर रहा था. राजनांदगांव की जनता और संगठन ने उसको आगे बढ़ाया है.”
राजनैतिक 'सलवा-जुड़ूम’छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ सलवा-जुड़ूम सफल नहीं हो पाया. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कुछ वैसा ही गठबंधन होने की धारणा बनती दिख रही है. महासमुंद सीट पर कांग्रेस से अजीत जोगी मैदान में हैं और आम लोगों में धारणा है कि जोगी को जितवाने में बीजेपी की अहम भूमिका होगी. इसी तरह दुर्ग सीट पर बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा खतरा अपनों के भितरघात से है.
विधानसभा चुनाव में हैट्रिक लगाने वाली बीजेपी के हौंसले भले बुलंद हों लेकिन उन चुनाव नतीजों के हिसाब से देखें तो बीजेपी छह लोकसभा पर आगे थी, जबकि तीन पर पीछे और दो पर बराबरी में थी.
कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की भी साख दाव पर है. वे कहते हैं, ''विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 0.7 फीसदी वोट से हार गई थी, लेकिन अब हमारे कार्यकर्ता बदला लेने के लिए लड़ रहे हैं.” उनका दावा है, ''राज्य में कोई मोदी या रमन लहर नहीं है. हर सीट पर कांग्रेस अच्छे मुकाबले में है और लड़ाई बराबरी की है.”
अगर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 2009 के मुकाबले आंकड़े में सुधार कर लिया तो पार्टी में नई ऊर्जा का संचार होगा. जबकि मुख्यमंत्री रमन सिंह पिछला स्ट्राइक रेट (11 में 10 सीट जीती थी) कायम नहीं रख पाते हैं तो सरकार और संगठन में विरोधी खेमा मुखर होगा.