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त्रिभाषा फॉर्मूले पर विशेषज्ञों की राय लेगी सरकार: प्रकाश जावड़ेकर

मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक देश भर में दो करोड़ छात्र दसवीं की परीक्षा शिक्षा बोर्ड के जरिए देते हैं. इनमें से एक करोड़ 93 लाख छात्र तो सीबीएसई या राज्य शिक्षा बोर्ड के इम्तिहान में शामिल होते हैं. सात लाख छात्र अब तक चल रही छूट के मुताबिक अपने स्कूल में ही दसवीं के इम्तिहान दे देते हैं, लेकिन अब ये छूट खत्म होगी.

मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर
संजय शर्मा/सुरभि गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 21 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 9:06 PM IST

आठवीं में पास होने का अभयदान खत्म और दसवीं तक पढ़नी होगी एक और भाषा क्योंकि त्रिभाषा फार्मूला अब दसवीं तक लागू होगा. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक अब दसवीं की बोर्ड परीक्षा सभी छात्रों को देना अनिवार्य होगा. चाहे वो सीबीएसई बोर्ड हो या फिर राज्य बोर्ड या आईसीएससी, लेकिन ये व्यवस्था 2018 से लागू होगी.

मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक देश भर में दो करोड़ छात्र दसवीं की परीक्षा शिक्षा बोर्ड के जरिए देते हैं. इनमें से एक करोड़ 93 लाख छात्र तो सीबीएसई या राज्य शिक्षा बोर्ड के इम्तिहान में शामिल होते हैं. सात लाख छात्र अब तक चल रही छूट के मुताबिक अपने स्कूल में ही दसवीं के इम्तिहान दे देते हैं, लेकिन अब ये छूट खत्म होगी.

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2017 में आखिरी मौका होगा कि अपने स्कूल में ही छात्र दसवीं के इम्तिहान दे सकें. 2018 से हरेक छात्र को बोर्ड के इम्तिहान में बैठना ही होगा. जावड़ेकर ने नो डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने के सवाल पर कहा कि फिलहाल इस बारे में कैबिनेट नोट तैयार है. उस पर संबंधित मंत्रालयों के बीच विमर्श जारी है. तमाम मंत्रालयों की राय आने के बाद इसे कैबिनेट में रखा जाएगा. कैबिनेट के फैसले के बाद इस पर संसद चर्चा करेगी, लेकिन सरकार की मंशा है कि नो डिटेंशन यानी आठवीं तक फेल ना करने की नीति को खत्म करने से किसी भी छात्र का एक साल बर्बाद ना हो. ऐसा उपाय भी किया जाएगा.

त्रिभाषा फार्मूले की राह पर चलते रहने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए जावड़ेकर ने ये भी कहा कि सीबीएसई के सुझावों के बारे में उन्हें भी मीडिया से जानकारी मिली है. जब सुझाव सरकार तक आएंगे तब उन पर शिक्षाविदों और विशेषज्ञों की राय ली जाएगी. सरकार किसी पर भी कोई भी भाषा पढ़ने का दबाव डालने के पक्ष में नहीं है. सीबीएसई ने देश भर में हिंदी-संस्कृत पढ़ने-पढ़ाने की अनिवार्यता की वकालत तो की है, पर सरकार अभी अपनी तरफ से कुछ कहने की बजाए माहौल भांपने में लगी है कि आखिर जनता में प्रतिक्रिया क्या होती है.

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