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1947 में आजाद भारत का हिस्सा नहीं थे ये इलाके, पढ़ें देश में इनके विलय की कहानियां

15 अगस्त 1947 की सुबह का भारत और 15 अगस्त 2020 की सुबह के भारत का भौतिक स्वरूप अलग है. तब हमें आजादी मिली थी, लेकिन देश के कई ऐसे क्षेत्र थे जो 15 अगस्त 1947 को भारत का हिस्सा नहीं थे. लेकिन ये क्षेत्र अब भारतीय संघ का अटूट हिस्सा हैं. भारत के इस एकीकरण के पीछे लौह पुरुष सरदार पटेल की कूटनीति और पंडित नेहरू का विजन है.

ब्रिटिश भारत का मानचित्र (फोटो- columbia.edu) ब्रिटिश भारत का मानचित्र (फोटो- columbia.edu)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 15 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 7:23 AM IST

  • भारतीय गणराज्य में रियासतों के विलय की कहानी
  • कश्मीर, हैदराबाद जूनागढ़ ने विलय से किया था इनकार
  • पटेल की कूटनीति से हुआ भारत का एकीकरण

देश आज अपनी आजादी की 73वीं वर्षगांठ मना रहा है. आज ही के दिन 15 अगस्त 1947 को हमें अंग्रेजों से आजादी मिली थी. लेकिन अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त हुआ भारत आज के हिंदुस्तान से काफी अलग था. देश के कई अहम हिस्से उस समय आजाद भारत का हिस्सा नहीं थे. 15 अगस्त 1947 के बाद कई दशकों तक इन इलाकों को भारत में विधिवत रूप से जोड़ने का मिशन चलता रहा. कहीं बातचीत से मसला सुलझा तो कहीं सैन्य बल से.

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हैदराबाद

15 अगस्त 1947 के आसपास हैदराबाद की आबादी 1 करोड़ साठ लाख थी. हैदराबाद संपन्न रियासत थी और इस राज्य से निजाम को सालाना 26 करोड़ की आय होती थी. तब निजाम मीर उस्मान अली हैदराबाद पर शासन कर रहा था. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने रियासतों को यह विकल्प दिया गया कि वे भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकती हैं या एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य के रूप में खुद को स्थापित कर सकती हैं. नवाब चाहते थे कि हैदराबाद ब्रिटिश कॉमनवेल्थ का सदस्य बने. लॉर्ड माउंटबेटन ने इसे खारिज कर दिया. भारत 15 अगस्त 1947 को बिना हैदराबाद के आजाद हो गया.

पढ़ें भारत में हैदराबाद के विलय की पूरी कहानी

पटेल किसी भी हालत में हैदराबाद को भारत से दूर करने के पक्ष में नहीं थे. निजाम को जनमत संग्रह का ऑफर दिया गया, लेकिन 85 फीसदी हिन्दू आबादी पर राज कर रहे निजाम ने इस ऑफर को ठुकरा दिया. 9 सितंबर 1948 को भारत ने तय कर लिया कि हैदराबाद में अब सैन्य कार्रवाई के अलावा कोई विकल्प नहीं है. सेना के दक्षिणी कमान को इसकी सूचना दे दी गई कि उन्हें 13 सितंबर (सोमवार) को तड़के हैदराबाद में प्रवेश करना है. 4 दिन तक चले सशस्त्र संघर्ष के बाद आखिरकार 17 सितंबर 1948 की शाम को हैदराबाद की सेना ने समर्पण कर दिया. 18 तारीख को मेजर जनरल चौधरी की अगुवाई में भारतीय सेना शहर में दाखिल हुई. कुल मिलाकर ये ऑपरेशन 108 घंटे चला और हैदराबाद भारत का अभिन्न अंग बन गया.

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कश्मीर

15 अगस्त 1947 को कश्मीर एक रियासत थी, जिसके हिन्दू राजा थे डोगरा शासक महाराजा हरिसिंह. रियासत की लगभग तीन चौथाई आबादी मुसलमानों की थी. पाकिस्तान से इस रियासत की रियाया का माल-असबाब का लेन-देन था. महाराजा हरि सिंह ने भारत और पाकिस्तान के साथ स्टैंडस्टिल समझौता करना चाहा. उस समझौते का मकसद था कि उन्हें भारत या पाकिस्तान में विलय करने के लिए कुछ और वक्त मिल जाए. पाकिस्तान की नजर जम्मू-कश्मीर पर थी.

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24 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के कबायली लड़ाकों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया. इन लड़ाकों को पाकिस्तान की सेना का साथ था. कबायली श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे, महाराजा हरि सिंह परेशान थे, उनकी सेना कबायलियों का सामना करने में सक्षम नहीं थी. महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से सैन्य मदद मांगी.

भारत सरकार सैन्य मदद को तैयार थी लेकिन भारत ने कहा कि हरि सिंह को जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करना होगा. महाराजा हरि सिंह ने विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किए और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया.

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जूनागढ़

15 अगस्त 1947 को गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक और रियासत जूनागढ़ भारत में शामिल नहीं हुई. इस रियासत की अधिकांश जनसंख्या हिंदू थी और राजा मुस्लिम था. जूनागढ़ के नवाब मोहब्बत महाबत खानजी ने माउंटबेटन की सलाह को दरकिनार करते हुए 15 सितंबर 1947 को पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया.

भारत सरकार को पता चला तो दिल्ली में हलचल तेज हो गई. गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल तुरंत इस मिशन पर जुट गए. भारत सरकार ने जूनागढ़ के लिए ईंधन और कोयले की सप्लाई रोक दी. भारतीय सेनाओं ने मंगरोल और बाबरियावाड पर से नवाब का कब्जा छीन लिया. भारत की सख्ती और जनता का मिजाज देखते हुए यहां का नवाब कराची भाग गया. 20 फरवरी, 1948 में जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराया गया, इसमें 91 फीसदी लोगों ने भारत के पक्ष में विलय का मत दिया.

गोवा, दमन दीव, दादरा और नगर हवेली

भारत में समुद्र का रोमांटिक सौंदर्य का दर्शन कराने वाला गोवा भी 15 अगस्त 1947 को आजाद नहीं हुआ था. इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के जरिए अंग्रेजों ने अपने कब्जे की जमीन भारत को सौंपने की घोषणा की, लेकिन तब भारत के कुछ हिस्से पुर्तगाल के कब्जे में थे. गोवा पर 1510 से ही पुर्तगालियों का कब्जा था. पुर्तगाल ने तर्क दिया कि जब उन्होंने गोवा पर कब्जा किया था तो भारत गणराज्य अस्तित्व में ही नहीं था. अब भारत के सामने सैन्य कार्रवाई ही एक मात्र विकल्प था.

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उस वक्त दमन दीव भी गोवा का हिस्सा था. 2 अगस्त 1954 को गोवा की राष्ट्रवादी ताकतों ने दादरा नगर हवेली की बस्तियों पर कब्जा कर लिया और भारत समर्थक स्थानीय सरकार की स्थापना की. 1961 में दादरा नगर हवेली को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया. इसके बाद पुर्तगाल शासित बाकी प्रदेशों के लिए आर्थिक प्रतिबंध शुरू कर दिए गए.

इधर दादरा और नगर हवेली छिनने के बाद पुर्तगाली बौखला गए. पुर्तगाल ने अफ्रीकी देश अंगोला और मोजाम्बिक से और सेनाएं मंगाईं. गोवा दमन और दीव में 8000 यूरोपियन, अफ्रीकन और भारतीय सैनिक तैनात कर दिए गए. दिसंबर 1961 में भारत ने ऑपरेशन विजय लॉन्च किया. पुर्तगाल को शांतिप्रिय भारत से ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी, 19 दिसंबर, 1961 को तत्कालीन पुर्तगाली गवर्नर मैन्यू वासलो डी सिल्वा ने भारत के सामने सरेंडर कर दिया.

पॉन्डिचेरी

आजादी के वक्त गोवा-दमन दीव, दादरा और नगर हवेली पुर्तगाल का हिस्सा थे तो पॉन्डिचेरी (अब पुडुचेरी) फ्रांसीसी उपनिवेश था. आजादी के बाद नेहरू पॉन्डिचेरी को भारत में शामिल कराने की कोशिश में जुट गए. पॉन्डिचेरी के अलावा कराईकल, माहे और यनाम भी फ्रांस के कब्जे में था.

1954 में पॉन्डिचेरी में माहौल बिगड़ने लगा. यहां भारत में विलय के लिए व्यापक आंदोलन हुआ. 18 अक्टूबर 1954 को पॉन्डिचेरी और कराईकल के स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों ने एक जनमत संग्रह में हिस्सा लिया. इसमें से 170 सदस्यों ने भारत में विलय की हामी भारी. इसके तीन दिन बाद भारत-फ्रांस के बीच एक समझौता हुआ. फ्रांस की संसद में मई 1962 में पॉन्डिचेरी की सत्ता को भारत को औपचारिक रूप से स्थानांतरित करने का प्रस्ताव पास किया गया. 16 अगस्त 1962 को भारत और फ्रांस के बीच पॉन्डिचेरी का औपचारिक सत्ता हस्तांतरण हुआ.

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सिक्किम

भारतीय गणराज्य की संपूर्ण आजादी का एजेंडा सिक्किम को भारत में शामिल किए बिना अधूरा था. 15 अगस्त को जब देश को आजादी मिली तो सिक्किम हमारे साथ नहीं था. तब यहां राजशाही थी. चोग्याल यहां शासन करते थे, वे सिक्किम के लिए भूटान जैसा स्टेटस चाहते थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद भारत को महसूस होने लगा कि सिक्किम को इंडियन रिपब्लिक में मिलाना, भू-राजनीतिक जरूरत हो गई है.

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तब देश की पीएम इंदिरा गांधी थीं. 6 अप्रैल, 1975 की सुबह सिक्किम के चोग्याल के राजमहल को 5000 भारतीय सैनिकों ने घेर लिया. सेना ने बड़ी फुर्ती और आसानी से राजमहल में मौजूद 243 गार्डों पर काबू पा लिया. चोग्याल को उनके महल में ही नजरबंद कर दिया गया. इसके बाद सिक्किम में जनमत संग्रह हुआ. जनमत संग्रह में 97.5 फीसदी लोगों ने भारत के साथ जाने की वकालत की. सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का संविधान संशोधन विधेयक पास हुआ. 15 मई, 1975 को राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने इस बिल पर हस्ताक्षर कर दिए और सिक्किम भारत का हिस्सा बन गया.

मणिपुर-त्रिपुरा

15 अगस्त 1947 को मणिपुर भी संपूर्ण रूप से भारत का हिस्सा नहीं था. ब्रिटिश राज के दौरान मणिपुर एक रियासत थी. जिसका क्षेत्रफल 21,900 वर्ग किलोमीटर था. आज़ादी के समय मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र सिंह ने विलय पत्र पर 1949 तक हस्ताक्षर नहीं किए थे. मणिपुर का अपना संविधान भी था. लेकिन भारत सरकार ने इस संविधान को मान्यता नहीं दी.

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इधर मणिपुर में चुनाव की मांग जोर पकड़ने लगी. मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र ने जून 1948 में राज्य में चुनाव कराए. मणिपुर के भारत में विलय की बात करें तो इसे लेकर विधानसभा में बड़ा मतभेद था. इस बीच हालात ऐसे हुए कि भारत सरकार को सितंबर 1949 में मणिपुर की विधानसभा से परामर्श लिए बगैर महाराजा बोधचंद्र से विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाना पड़ा. यह विलय 15 अक्टूबर 1949 से लागू कर दिया गया.

भारतीय संघ में त्रिपुरा का विलय 15 नवंबर, 1949 को हुआ. 17 मई, 1947 को त्रिपुरा के अंतिम महाराजा बीर बिक्रम सिंह की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी महारानी कंचनप्रभा ने त्रिपुरा राज्य की बागडोर संभाली. त्रिपुरा राज्य का भारतीय संघ में विलय करने में उन्होंने सहायक की भूमिका निभाई.

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