
मेघायल की जयंतिया हिल्स की अवैध कोयला खदान में फंसे 15 मजदूरों को बचाने के लिए भारतीय वायुसेना (Indian Air Force), भारतीय नौसेना (Indian Navy) के गोताखोर और नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (NDRF) की टीम के पसीने छूट रहे हैं. हाईपावर पंप और दूसरे सामान भी पहुंच चुके हैं. ओडिशा की फायर सेफ्टी टीम के अलावा थाइलैंड की फुटबॉल टीम के रेस्क्यू के लिए पंप और कुछ जरूरी साजो-सामान मुहैया कराने वाली प्राइवेट कंपनी किर्लोस्कर की टीम भी वहां पहुंची हुई है.
13 दिसंबर से कोयला खदान में फंसी 15 जिंदगियों को बचाने में भारी दिक्कतों को सामना करना पड़ रहा है. 350 फीट गहरी इस खदान में करीब 70 फीट तक पानी भरा हुआ है. यह कोई नहीं जानता कि खदान में 16 दिन से फंसे 15 मजूदर किस हाल में हैं. उनकी सांसें चल भी रही है या नहीं, यह किसी को नहीं पता.
दिक्कत यह भी है कि थाइलैंड की गुफा की तरह खदान के नक्शे भी नहीं हैं. खदान कितना बड़ी और कहां तक है, यह कोई नहीं जानता है. लिहाजा ये रेस्क्यू ऑपरेशन थाईलैंड की गुफा में फंसी फुटबॉल टीम से ज्यादा मुश्किल दिख रहा है, लेकिन फिर ही सब ठीक रहने की उम्मीद और दुआएं की जा रही हैं. इसे सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन बताया जा रहा है.
National Disaster Response Force के असिस्टेंट कमांडेंट संतोष कुमार सिंह ने कहा, 'राहत और बचाव कार्य जारी है. फिलहाल मुश्किल कम होती नजर नहीं आ रही है. The State Disaster Response Fund (SDRF) और पुलिस की टीम पहले लगा कि यह राहत और बचाव ऑपरेशन आसान है, लेकिन ऐसा नहीं है. पहले हमें लगा कि हम खदान में फंसे लोगों को बचा लेंगे, लेकिन अभी तक उनके जिंदा होने के कोई निशान नहीं मिले. हमने डाइव लगाई है, लेकिन वापस आना पड़ा.'
100 हॉर्स पावर के वॉटर पंप से निकाला जा रहा पानी
उन्होंने कहा, 'जयंतिया हिल्स की इस अवैध कोयला खदान में फंसे मजदूर जब खुदाई कर रहे थे, तभी खदान के पास बहने वाली लैटीन नदी का पानी खदान में भर गया. इस पानी को निकालने के लिए पंप मंगाए गए थे, लेकिन इन पंपों की क्षमता नाकाफी साबित हो रही है. लिहाजा अब एनडीआरएफ की टीम ने प्रशासन से 100 हॉर्स पावर के वॉटर पंप मंगवाए गए हैं.' एक सवाल के जवाब में संतोष कुमार सिंह ने कहा, 'जहां तक इन मजदूरों के बचने की उम्मीद की बात है, तो हम रेस्क्यूअर हैं. एनडीआरएफ अपनी ड्यूटी निभाती रहेगी. मामले में माइन एक्सपर्ट की राय ली गई है.
अवैध खनन का खेल जारी और प्रशासन ने मूंद रखी हैं आंखें
आजतक ने सबसे पहले दुनिया को रेस्क्यू और इसमें आने वाली मुश्किलों की जानकारी दी. साथ ही ग्राउंड जीरो की वास्तविक हालात से रूबरू कराया. हैरानी की बात ये है कि मेघालय की जयंतिया हिल्स में अवैध खनन की बात किसी से छुपी नहीं है. आम से लेकर खास तक और स्थानीय नागरिक से लेकर अधिकारी तक सब जानते हैं कि वहां क्या हो रहा है और कैसे हो रहा है? कैसे स्थानीय ठेकेदार मजदूरों को अंधे कुएं में ढकेल रहे हैं?
इसके बावजूद भी प्रशासन और सरकार आंखें बंद किए रहे. इस घटना के बाद भी प्रशासन और सरकार की सुस्ती हैरान करती है. 16 दिन बाद भी सिर्फ यह कहा जा रहा है कि वायुसेना और नौसेना की टीम रेस्क्यू कर रही है. यहां तक कि मेघालय सरकार के मंत्री को भी 15 दिन बाद मौके पर आने की फुर्सत मिली. अब मुख्यमंत्री बड़े फिक्रमंद होने का दावा कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि खदानें हमारे देश के लिए कोई पहेली हो. हर सूबे में खदानें हैं, लेकिन हादसों पर हमारा क्या रवैया है और कैसी तैयारी है..ये हैरान करने वाली है.
रैट माइनिंग में मासूम जिंदगियों का इस्तेमाल
रैट माइनिंग के लिए बच्चों को सबसे मुफीद माना जाता है. इस इलाके में काम करने वाले कई गैर सरकारी संगठनों का दावा है कि जयंतिया पहाड़ियों के आसपास करीब 70 हजार बच्चे रैट माइनिंग का काम करते हैं. मेघालय में कोयला खनन की शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में हो गई थी, लेकिन साल 1970 में कोयला खनन को सरकार ने अपने हाथों ले लिया था.
तब मेघालय में कोयला खदानों के निजी दावेदारों को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था, लेकिन सरकारी निगरानी के अभाव में रैट माइनिंग का अवैध काम चलता रहा, जिसको रोकने के लिए साल 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने मेघालय में रैट होल माइनिंग पर बैन लगाया था, लेकिन ये बैन भी महज दिखावा साबित हुआ. मेघालय में रैट होल माइनिंग आज भी धड़ल्ले से की जा रही है, जिसकी वजह से 15 मजदूरों की जिंदगी दांव पर लगी है.
क्या है रैट माइनिंग
जब मजदूर खदानों में लेटकर या सुरंग में घुसकर खनन करता है, तो उसे रैट माइनिंग कहा जाता है. यह खनन की एक प्रक्रिया है, जो बेहद पुरानी और खतरनाक होती है. मेघायल के जयंतिया पहाड़ियों में भी छोटी-छोटी कोयला की खदानें हैं. मजदूर इन खदानों में लेटकर घुसते हैं और कोयला निकालते हैं.