
एक ऑफिसर सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) में कमांडेट. दूसरे ऑफिसर बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) में डीआईजी. सीआरपीएफ के दिल्ली स्थित हेडक्वार्टर में कमांडेंट चेतन चीता बीते हफ्ते ड्यूटी पर लौटने से कुछ समय पहले बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) के डीआईजी एन एन दुबे से मिलने पहुंचे. दुबे वहीं जांबाज अधिकारी हैं जिन्होंने 2003 में श्रीनगर में भीषण मुठभेड़ में संसद हमले के मास्टरमाइंड और श्रीनगर में जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख गाजी बाबा को मार गिराया था.
इस मुठभेड़ में दुबे को कई गोलियां लगी थीं लेकिन वो फौलादी इरादे की बदौलत सारी चोटों और दुश्वारियों से उभरे. दुबे जैसा ही जज़्बा चेतन चीता ने दिखाया. चेतन चीता के उपचार के दौरान भी दुबे उनसे मिले थे और उनके अनुभव ने भी चेतन चीता को रिकवरी में मदद की. सुम्बल में सीआरपीएफ की 45वीं बटालियन के कमांडेंट चेतन चीता को उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा में हाजिन इलाके में बीते साल 14 फरवरी को हुई मुठभेड़ में आतंकियों की 9 गोलियां लगीं. एक आंख खोने और गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद चेतन चीता का हौसला हिमालय जैसा ऊंचा रहा.
वहीं एन एन दुबे 30 अगस्त 2003 को आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर तैनात थे. वे आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में आठ जवानों की टीम की अगुआई कर रहे थे. श्रीनगर के नूरबाग इलाके में एक इमारत की दूसरी मंजिल से कार्रवाई कर रहे दुबे को आतंकियों की कई गोलियां लगीं. लेकिन फिर भी वो किसी तरह क्रॉल करते हुए इमारत से बाहर आने में कामयाब रहे.
अस्पताल में इलाज के दौरान डॉक्टरों ने दुबे की बाजू काटने की आशंका जताई थी. एक गोली उनकी पीठ में लगी थी. वहीं उनके एक बैज ने छाती पर सीधे गोली लगने से उन्हें बचाया. दुबे ने चोटों से उबरने के बाद ड्यूटी शुरू की लेकिन उन्हें नॉन-कॉम्बेट भूमिका मिली.
हाजिन में बीते साल 14 फरवरी को मुठभेड़ से कुछ महीने पहले दुबे और चेतन चीता की मुलाकात हुई थी. मुठभेड़ में गंभीर रूप से घायल हुए चेतन चीता को देखने के बाद सीआरपीएफ के पूर्व डीजी प्रकाश मिश्रा ने दुबे से चीता को मिलने के लिए कहा गया था. दुबे ने अपने अनुभव के आधार पर चीता से विस्तार से बातें की. दुबे के अनुभव ने भी चीता को जल्दी रिकवर होने में प्रेरित किया.
दुबे ने कहा, ‘मेरी चोटें गंभीर थीं लेकिन चीता की हालत मुठभेड़ के बाद मेरे से कहीं ज्यादा नाजुक थी. दुबे को सिर में गोली नहीं लगी थी. लेकिन चीता के सिर में गोली बाईं तरफ से घुसने के बाद दाईं आंख से बाहर निकली थी जिसकी वजह से उनकी एक आंख की रोशनी पूरी तरह चली गई.’
दुबे के एक हाथ में भी हरकत खत्म हो गई थी लेकिन रिकवरी के बाद उनका ये हाथ काम करने लगा. वहीं चीता अब भी अपने दोनों हाथों में संवेदना लाने के लिए फिजियोथिरेपी ट्रीटमेंट ले रहे हैं. दुबे ने सर्जरी के बाद अपने रिकवरी के अनुभव से चीता और उनके परिवार को विस्तार से बताया.
दुबे ने बताया कि उन्होंने चीता से कई बार बात की लेकिन हाल में चीता जब उनके दफ्तर में खुद चल कर मिलने के लिए आए तो उन्हें भी सुखद आश्चर्य हुआ. दुबे के मुताबिक चीता ने अपनी चिरपरिचित मुस्कुराहट के साथ उनका अभिवादन किया. बता दें कि दुबे और चीता दोनों को ही कीर्ति चक्र से नवाजा गया है. इऩ दोनों ही बहादुर ऑफिसरों के दिलों में एक दूसरे के लिए बहुत सम्मान है. दोनों को एक ही फ्रेम में साथ देखना और उनकी बहादुरी का जज़्बा देश के हर नागरिक के सीने को गर्व से चौड़ा कर देता है.