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उसके पास जीने के लिए थे 100 घंटे, अब वह दूसरों के लिए एक मिसाल है

जब वह पैदा हुई तो उसके बचने की उम्मीद कम थी, बड़ी हुई तो शरीर का विकास सामान्य नहीं था. लेकिन महज 16 साल की उम्र में उसकी उपलब्धि‍यां आपको हर चुनौती को 'मुस्कान' की तरह लेने का जज्बा देती हैं.

Muskan Devta Muskan Devta
स्नेहा
  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2015,
  • अपडेटेड 2:26 PM IST

जब वह पैदा हुई थी तो डॉक्टर ने उस 1.2 किलोग्राम की कमजोर बच्ची के लिए कहा था कि अगर वह 100 घंटे जिंदा रह गई, तभी बच सकती है. वजन कम होने के साथ ही उसके दिल में 3 छेद भी थे. लेकिन जीने के लिए उस बच्ची का हौसला कमाल था और अपने नाम मुस्कान की तरह उसने मुस्कराते हुए इस चुनौती का सामना किया.

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अाज वह 16 साल की हो चुकी है और कई लोगों के लिए एक मिसाल बनी है. हम बात कर रहे हैं, हाल ही में न्यूजीलैंड के प्रतिष्ठित सम्मान ACC एटीट्यूटड अवॉर्ड से नवाजी गईं मुस्कान देवता की.

2014 में मुस्कान ने अपनी आत्मकथा 'आई ड्रीम' लिखा था कि यह किताब उनके वेस्ले गर्ल्स हाई स्कूल की पढ़ाई का हिस्सा है. किताब लिखने के बारे में वह कहती हैं कि उनके दोस्त नहीं थे इसलिए उन्होंने लिखना शुरू किया था. महज 12 साल की उम्र में वह न्यूजीलैंड के लोकप्रिय रेडियो स्टेशन 'तराना' की रेडियो जॉकी भी रह चुकी हैं. उसी समय से उन्होंने अपने स्कूल के न्यूजलेटर के लिए लिखना शुरू कर दिया था.

मुस्कान के लिए यह सब करना आसान काम नहीं है क्योंकि वह एक बहुत ही दुर्लभ बीमारी हेमीप्लेगिया की शिकार हैं. वह बहुत धीरे-धीरे चल पाती हैं और उनके शरीर का विकास भी सामान्य नहीं है.

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मुस्कान को एक अच्छी लेखिका होने के साथ ही एक अच्छी वक्ता भी बताया जाता है. ACC एटीट्यूड अवॉर्ड लेते समय मुस्कान ने कहा, 'यह दुर्लभ बीमारी मेरे साथ पूरा जीवन चलेगी तो मैं इसकी चिंता क्यों करूं. मैं दुनिया में बहुत सारे काम करना चाहती हूं.' यही वजह है कि वह शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के इलाज के लिए फंड भी जमा करती हैं.

वैसे यह पहला मौका नहीं है जब मुस्कान के प्रयासों के कारण उन्हें सराहा गया है. इससे पहले भी वह कई अवॉर्ड जीत चुकी हैं और अपने साथ दूसरों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत हैं.

बता दें कि मुस्कान के माता-पिता ने उनके बेहतर इलाज व अच्छा माहौल देने के लिए अहमदाबाद से न्यूजीलैंड जाने का फैसला किया था. वहां अपने हमउम्र बच्चों से दोस्ती करना मुस्कान के लिए आसान काम नहीं था. वह घर में बंद-बंद रहने लगीं थीं. हालांकि जब वह छह साल की थीं तो छोटे भाई अमन के दुनिया में आने से उनको हौसला मिला और वह दुनिया में एक सकारात्मक परिवर्तन करने की दिशा में काम करने लगीं.

2014 में मुस्कान ने अपनी आत्मकथा 'आई ड्रीम' के जरिए स्टार्सशिप चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के बच्चों के लिए पैसे जमा किए. इस हॉस्पिटल में वह अपने इलाज के दौरान कई सर्जरी करवा चुकी हैं. अब मुस्कान की योजना पैसे इकट्ठा करके भारत में दृष्टिहीन बच्चों के लिए एक स्कूल बनाना है.

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