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जेल नहीं, ये बस्तियां जुर्म की

जेलों के भीतर हो रहे खूनी संघर्ष अपराधियों के लिए सुधारगृह के नाम पर बनाई गई जेलों की बदहाल हकीकत बयां करते हैं.

मेरठ जेल में खूनी संघर्ष के बाद शस्‍त्रागार के बाहर पुलिस बल मेरठ जेल में खूनी संघर्ष के बाद शस्‍त्रागार के बाहर पुलिस बल
aajtak.in
  • लखनऊ,
  • 02 मई 2012,
  • अपडेटेड 8:10 PM IST

शहर मेरठ की जेल में बंदियों और बंदी रक्षकों के बीच हुए विवाद ने 18 अप्रैल को खूनी संघर्ष का रूप ले लिया. बंदियों ने जेलकर्मियों पर मारपीट का आरोप लगाकर उन पर हमला किया, एक बैरक और जेल की रसोई में आग लगा दी. तीन घंटे चली हिंसा में दर्जनों लोग घायल हुए.

इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में 9 मार्च, 2012 को एक सजायाफ्ता कैदी बंसी लाल की लाश बाथरूम में फंदे से लटकी मिलने के बाद हंगामा मच गया. उसके कपड़ों पर भी खून लगा था. पोस्टमार्टम में हत्या की पुष्टि हुई.

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10 मार्च, 2012 को बस्ती मंडलीय जेल में बंदियों और बंदी रक्षकों के बीच जमकर गोलीबारी हुई. बंदियों ने जेल के गेट तोड़ डाले और आग लगा दी. जवाब में पुलिस ने डेढ़ सौ राउंड फायरिंग की, जिसमें कई बंदी घायल हुए और दो की मौत हो गई.

16 मार्च, 2012 को रमाबाईनगर की माती जेल में कैदी रामशहूरण भदौरिया की संदिग्ध हालत में मौत के बाद कैदियों ने उपद्रव किया और पुलिस को बंधक बना लिया. कैदियों का आरोप था कि रामशहूरण को जेल के अधिकारियों ने पीट-पीट कर मार डाला.

बीते कुछ दिनों के भीतर हुई इन रक्तरंजित घटनाओं से उत्तर प्रदेश की जेलों के अंदरूनी हालात की एक बदरंग तस्वीर नुमायां होती है. जेलें न सिर्फ असुरक्षित हैं बल्कि यहां अपराधियों और जेलकर्मियों का गठजोड़ मजबूत है. दबंग कैदियों के आगे कानून बेअसर है. मसलन 2 मार्च को बस्ती जेल में अधीक्षक होकर गए आर.के. केसरवानी ने जब सख्ती शुरू की तो इसी जेल में हत्या के एक मामले में बंद धोनी तिवारी और पवन पांडेय ने वहीं से ही उनकी हत्या की सुपारी दे दी.

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सर्विलांस पर ये बातें सुन ली गईं और हत्या के मकसद से आए तीन शूटरों दीपक सिंह, नंद पांडेय और गणेश मिश्र को पुलिस ने दबोच लिया. इसी दौरान 15 अप्रैल को लखनऊ जिला जेल में एक बंदी रामदास का शव शौचालय में लटका मिला. जेल प्रशासन के मुताबिक यह खुदकुशी है पर रामदास के बेटे अनिल गौतम का आरोप है कि दबंग अपराधी उसके पिता को जेल में परेशान कर रहे थे. कुछ दिन पहले बंदियों ने उनकी जमकर पिटाई की थी. बीते डेढ़ साल में अकेले इसी जेल में 23 कैदी दम तोड़ चुके हैं.

राज्‍य की जेलें अराजक क्यों होती जा रही हैं? इसके दो फौरी जवाब हैं. पहला, जेलों की कुल क्षमता से ज्‍यादा कैदियों का होना और दूसरा, कैदियों की निगरानी के लिए जेल अधिकारियों और कर्मचारियों की भारी कमी.

प्रदेश के जेल विभाग में एक आदर्श कारागार, 5 केंद्रीय कारागार, 51 जिला कारागार, 3 उपकारागार, 1 किशोर सदन (बरेली), 1 नारी बंदी निकेतन (लखनऊ) समेत कुल 62 कारागार हैं. नैनी को छोड़ बाकी सभी केंद्रीय कारागार, लखनऊ के आदर्श कारागार, यहीं के नारी बंदी निकेतन और बरेली के किशोर सदन में केवल सजायाफ्ता बंदियों को रखा जाता है.

नैनी और दूसरे सभी जिला और उपकारागारों में विचाराधीन बंदी भी रखे जाते हैं. इन जेलों की क्षमता कुल 47,048 कैदियों को रखने की है लेकिन रखे गए हैं यहां 77,584 कैदी. विशेष और केंद्रीय जेलों के अलावा कुछ नई बनी जेलों को निकाल दें तो ज्यादातर जेलों में क्षमता से दोगुने कैदी हैं. अब दूसरा पहलूः सूबे की जेलों में अधिकारियों/ कर्मचारियों के कुल 10,400 पद हैं, जिनमें बंदीरक्षकों के 1,800 से ज्‍यादा पद खाली हैं. यही नहीं, लंबे समय से भर्ती प्रक्रिया के बंद होने के कारण जेल अधीक्षकों के भी 25 पद खाली पड़े हैं. पूर्व पुलिस महानिदेशक यशपाल सिंह बताते हैं कि ''इस अराजकता की वजह जेलों के निगरानी तंत्र का लचर होना है.''

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गोरखपुर स्थित मंडलीय जेल में पिछली 11 अप्रैल को हुए एक वाकए ने जेलों की एक और बदरंग तस्वीर पेश की. यहां बैरक नंबर 8-बी में बंद कैदी अंकित विश्वकर्मा ने अपने गले, हाथ और पैरों को ब्लेड से काटकर खुदकुशी करने की कोशिश की. अधिकारियों के मुताबिक हत्या की कोशिश के आरोप में बंद 25 वर्षीय अंकित जमानत न हो पाने से कुंठित था. मगर उनके पास इस बात का कोई तसल्लीबख्श जवाब नहीं था कि उसके पास ब्लेड पहुंचा कैसे?

हालत यह है कि किसी कैदी के पास अगर पैसा है तो जेल के भीतर भी वह सारी सुविधाएं हासिल  कर सकता है. आगरा जिला जेल में हत्या की कोशिश के आरोप में बंद एक कैदी के परिजन बताते हैं कि उससे मिलने के दौरान वे उसे खाने-पीने की चीजों के अलावा 2,000-3,000 रु. भी देते हैं ताकि बंदीरक्षक उससे ज्यादा काम न करवाएं.

आजमगढ़ मंडल जेल के अधीक्षक ए.के. मिश्र कहते हैं, ''रसूख वाले कैदी आते ही जेल प्रशासन पर दबाव बनाते हैं कि व्यवस्था उनके अनुरूप हो. विरोध करने पर वे उपद्रव करते हैं.'' जेलों के भीतर कैदियों के साथ भोजन में भी भेदभाव होता है. रसूखदार कैदियों को ही अच्छा भोजन नसीब होता है. 1,245 की क्षमता वाली कानपुर जेल में 2,224 कैदी हैं. यहां के जेल अधीक्षक आर.एन. पांडेय की सुनिएः ''कैदियों की क्षमता के अनुरूप ही भोजन का बजट होता है. अब उतने पैसे में दोगुने से ज्‍यादा कैदियों के लिए खाना बनाना एक चुनौती ही है.''

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इन जेलों के अस्पताल भी अपराधियों और रसूखदार कैदियों की आरामगाह बने हुए हैं. बीते वर्षों में ऐसे तमाम मामले सामने आए हैं, जिनमें प्रभावशाली कैदी जेल पहुंचते ही सीने में दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल में भर्ती हो गए.

जिला अस्पताल में तैनात रहे चिकित्सक डा. ए.के. वर्मा कहते हैं, ''जेल के अस्पतालों में ऐसा कोई उपकरण नहीं है, जिससे बीमारी की जांच की जा सके. अगर भर्ती न करने के कारण किसी की मौत हो गई तो सारी जिम्मेदारी जेल डॉक्टर की होती है.'' जेल चिकित्सक पर दबंग कैदियों का दबाव भी होता है. पिछले साल मेरठ जेल के अस्पताल में तैनात डॉ. हरपाल की जेल के बाहर गोली मार कर इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि उन्होंने दो खूंखार कैदियों के मन मुताबिक मेडिकल रिपोर्ट बनाने से मना कर दिया था. इसीलिए कोई डॉक्टर जेल अस्पताल में नहीं जाना चाहता.

इस वक्त 32 जेल अस्पताल बिना डॉक्टरों के चल रहे हैं. यही वजह है कि प्रदेश की जेलों में हर साल करीब 500 कैदी बीमारी के चलते दम तोड़ देते हैं. बदकिस्मती से आपराधिक वारदातों की साजिश में जेलकर्मी भी माफिया का साथ देने में नहीं हिचकते. 7 अगस्त, 2007 को मेरठ जेल के डिप्टी जेलर नरेंद्र द्विवेदी की हत्या इसी गठजोड़ का नमूना थी. इसी साल 29 मार्च को लंबी अदालती कार्यवाही के बाद अदालत ने घटना के वक्त जेल में तैनात डिप्टी जेलर अविनाश चौहान और राजेश कुमार को उम्र कैद की सजा सुनाई.

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माफिया मोबाइल के जरिए गतिविधियां चलाते हैं. ये मोबाइल और सिम छद्म नाम से खरीदे जाते हैं. जेलों में मोबाइल के प्रयोग को रोकने के लिए सरकार ने दो साल पहले जैमर लगाने का फैसला लिया था, जो अभी तक परवान नहीं चढ़ सका है. यही हाल सीसीटीवी कैमरों का है.

गौरतलब है कि दूसरे राज्‍यों की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है. जाहिर है कि इस दशा के लिए जेलकर्मियों का कैदियों के साथ बुरा सुलूक भी एक कारण है. यह एक ऐसा पहलू है जिस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है, खासकर कैदियों के मानवाधिकार पर. अन्यथा इन जेलों की खस्ता हालत कभी भी किसी बड़े हादसे का सबब बन सकती है.

-साथ में कुमार हर्ष, संतोष पाठक, सुरेंद्र सिंघल, सिराज कुरैशी, सुरेंद्र त्रिवेदी, संजय शर्मा और राहुल यादव

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