
जब कश्मीर में गोलियां चल रही थीं और पूरा कश्मीर गुस्से और हिंसा की आग से जल रहा था, तभी वहां एक मासूम अपनी जिंदगी से जूझ रहा था. कश्मीर घाटी के उन्हीं हालातों में 1 जुलाई के दिन एक मासूम कश्मीर में पैदा हुआ.
कश्मीर में डॉक्टरों ने इलाज से किया मना
पैदा होते ही डॉक्टरों ने देखा कि उसके ब्रेन में ब्लीडिंग हो रही थी, जिससे बच्चे की बाईं आंख नहीं खुल रही थी. कश्मीर में ऐसे हालात के बीच डॉक्टरों ने बच्चे का इलाज करने का जोखिम उठाने से मना कर दिया.
बच्चे को लेकर दिल्ली चले परिजन
ऐसे में निराश परिजन बच्चे को लेकर फौरन दिल्ली पहुंचे. ईद के दिन 7 दिन का मासूम गुड़गांव के GNH अस्पताल में भर्ती हुआ. बच्चे की सर्जरी करने वाले न्यूरो सर्जन सुरेश कात्यायन के पास सबसे बड़ी चुनौती उसके ब्रेन में पड़े क्लॉटिंग को हटाना था.
डॉक्टरों की टीम ने की सफल सर्जरी
इतने छोटे बच्चे को ऑपरेट करना डॉक्टरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही. बच्चे के ब्रेन में हैमरेज की वजह से लगातार ब्लीडिंग हो रही थी, जिसकी वजह से क्लॉटिंग हो गई थी, जिसे डॉक्टरों की टीम ने 12 जुलाई को सर्जरी के जरिए निकाला और बच्चा खतरे से बहार हुआ.
कश्मीर तक अमन का पैगाम पहुंचाना था
इस पूरे ऑपरेशन में 12 दिन का समय लगा. इस मासूम को घरवाले खुशी-खुशी उसकी मां के पास ले गए. हॉस्पिटल के MD कुलदीप चौधरी के मुताबिक मैनेजमेंट के सामने इस केस को लेने की सबसे बड़ी वजह कश्मीर तक अमन का पैगाम पहुंचाना था.
घाटी में हिंसा करने वालों को बच्चे का पैगाम
बच्चे के फॉलोअप ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर लगातार परिजनों के संपर्क में हैं. कश्मीर में इन हालातों के मद्देनजर बच्चे के साथ उसकी मां यास्मीन नहीं आ पाई थी. बच्चे को पिता और मामा राजधानी में जिस उम्मीद के साथ लाए थे, वो पूरी हुई और मासूम की सर्जरी कामयाब रही. शायद इस मासूम की सलामती उन लोगों को ये समझाने के लिए काफी है कि घाटी में इस तरह की गतिविधियां दूसरे मासूमों की परेशानी का सबब बनी हुई हैं.