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महाराष्ट्र के 18 मेडिकल कॉलेजों मे दवाइयों की कमी, ठेकेदारों ने रोकी सप्लाई

पिछले कई महीनों से दवाइयों की सप्लाई के बावजूद राज्य सरकार नो इन ठेकेदारों को पेमेंट नहीं किया है. राज्य के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में दवाईयां पर्याप्त मात्रा में नहीं है, इसके बारे जानने के लिए आजतक ने अकोला, औरंगाबाद  मेडिकल कॉलेज का जायजा लिया.

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
विवेक पाठक/पंकज खेळकर
  • मुंबई,
  • 19 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 11:55 PM IST

महाराष्ट्र के 18 मेडिकल कॉलेजों को दवाइयां उपलब्ध कराने वाले 100 ठेकेदारों का भुगतान नहीं किये जाने के कारण अस्पताल में दवाइयों की कमी हो रही है. क्योंकि अब दवाइयां वितरित करने वाले ठेकेदारों ने इन अस्पतालों में सप्लाई बंद कर दी है. नतीजन राज्य भर में जो प्रमुख 18 मेडिकल कॉलेज वाले अस्पताल हैं, वहा आने वाले गरीब तबके के मरीज और उनके परिजनों को परेशानी का सामना पड़ रहा है.

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महाराष्ट्र में 18 मेडिकल कॉलेज अस्पताल-मुंबई, नागपुर, पुणे, सोलापुर, कोल्हापुर, मिरज, औरंगाबाद, नांदेड़, ठाणे, यवतमाल, धुले, लातूर, अम्बेजोगाई, अकोला, चंद्रपुर और गोंदिया, इन सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों को 100 कॉन्ट्रैक्टर्स - हाफकिन्स कॉरपोरेशन के जरिये दवाइयां सप्लाई करते हैं. पिछले कई महीनों से दवाइयों की सप्लाई के बावजूद राज्य सरकार नो इन ठेकेदारों को पेमेंट नहीं किया है. राज्य के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में दवाईयां पर्याप्त मात्रा में नहीं है, इसके बारे जानने के लिए आजतक ने अकोला, औरंगाबाद  मेडिकल कॉलेज का जायजा लिया.

अकोला मेडिकल कॉलेज में खुद का इलाज कराने आए प्रमोद गाडगे के दौरान उसको लगने वाली एंटीबायोटिक इंजेक्शन व गोलियां अस्पताल में नहीं होने के कारण उसे बाहर से खरीदकर लाने की नौबत आ पड़ी है. प्रमोद गाडगे ने बताया कि वे 4 जुलाई से अस्पताल में एडमिट हैं, अस्पताल मे दवाइयां नहीं मिल रहीं इसलिए बाहर से लेनी पड़ रही है, जो बहुत महंगी है. कुछ ऐसा ही हाल औरंगाबाद मेडिकल कॉलेज का भी है.

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महाराष्ट्र के 18 मेडिकल कॉलेज वाले अस्पतालों को 100 ठेकेदार दवाइयां उपलब्ध कराते हैं. जिनमें 30 बड़े ठेकेदार हैं और 70 छोटे ठेकेदार हैं. इन ठेकेदारों में किसी का पेमेंट डेढ़ साल नहीं हुआ है तो किसी को तीन साल से पेमेंट नहीं मिला है. दवाइयों के ठेकेदारों में से एक भरत शेट्टी का कहना है कि भुगतान में कुछ महीनों की देरी समझी जा सकती है, लेकिन तीन साल तक पेमेंट नहीं मिलेगा तो डिस्ट्रीब्यूटर्स का घर कैसे चलेगा? सभी ठेकेदारों का कुल मिलाकर राज्य सरकार पर 90 करोड़ बकाया है.

डायरेक्टोरेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन और रिसर्च के निदेशक, डॉक्टर प्रवीण शिंगारे का कहना है कि हम अस्पताल में तीन महीनों की दवाइयों का स्टॉक रखते है. लेकिन अभी कमी होने से हमारे पास 15 दिन की दवाइया हैं. बकाया भुगतान के लिए सप्लीमेंट्री डिमांड मंजूर की गई है. ठेकेदारों के बकाया 90 करोड़ का भुगतान हफ्ते भर में कर दिया जाएगा.

बहरहाल दवाइयों के भुगतान को लेकर प्रशासनिक पेचीदगियां जो भी हों. लेकिन इस प्रशासनिक लेटलतीफी का खामियाजा गरीब मरीजों और उनके परिजनों को भुगतना पड़ रहा है. 

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