
कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर जिन भूतों से पीछा छूटा हुआ मान रहे थे, वे 10 अप्रैल को फिर जाग गए. दिल्ली की एक अदालत ने इस दिन सीबीआइ को निर्देश दिया कि 1984 के दंगों के मामले की नए सिरे से छानबीन की जाए.
सीबीआइ ने 2009 में यह कहते हुए मामला दाखिल-खारिज कर दिया था कि दंगों में जगदीश टाइटलर की भूमिका साबित करने का कोई सबूत नहीं मिल सका है. कड़कडड़ूमा की एक अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुराधा शुक्ल भारद्वाज ने सीबीआइ की रिपोर्ट ठुकराते हुए उससे कहा कि छानबीन जारी रखे और फिर से गवाहों के बयान ले.
बीजेपी के लिए ऐसा आदेश आने का इससे बेहतर मौका और नहीं हो सकता था, जब पार्टी गुजरात दंगों के दागदार नेता नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने की जुगत में है. अब तक बीजेपी 1984 के सिख विरोधी दंगों का जिक्र दबी जबान में किया करती थी लेकिन 10 अप्रैल के इस आदेश ने उनकी झिझक खत्म कर दी और बीजेपी नेताओं ने सारी तोपें कांग्रेस की तरफ मोड़ दीं. उन्होंने तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भी दंगे भड़काने का आरोप लगा दिया और उनकी वह मशहूर पंक्ति याद दिलाई, ''जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है.”
बीजेपी प्रवक्ता निर्मला सीतारमन साफ शब्दों में कहती हैं कि ''गुजरात में जो हुआ वह सांप्रदायिक दंगा था, लेकिन 1984 में दिल्ली में जो कुछ हुआ वह एकतरफा कत्लेआम था.”
उधर पंजाब में भी इस आदेश से लोगों के दिलों को कुछ सुकून मिला है. उप-मुख्यमंत्री सुखबीर बादल की मांग है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी 3,000 से ज्यादा दंगापीड़ितों को न्याय से वंचित रखने की नैतिक जिम्मेदारी लें. उनका कहना था कि इस सारी कवायद का मकसद 10 जनपथ के निवासियों को बचाना था, जिनके कहने पर ही टाइटलर, सज्जन कुमार और हरकिशन लाल भगत ने कत्लेआम की योजना बनाई.
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की राय में, टाइटलर को अभी दोषी नहीं माना गया है. ऐसे में ''हम उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों करें?” एक और पार्टी नेता का कहना था कि 2009 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा का टिकट न देकर कांग्रेस ने टाइटलर को वैसे ही किनारे कर दिया था. टाइटलर की सफाई यह है कि ''उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है और गवाह दबाव में बयान दे रहे हैं.”
सीबीआइ भी टाइटलर को बचाने के इल्जाम से नहीं बच सकती क्योंकि उसने ही 2009 में मामला दाखिल-खारिज करने की रिपोर्ट दाखिल की थी. 1984 के दंगापीड़ितों की लड़ाई लडऩे वाले वकील एच.एस फुलका पूरी निष्ठा और जोश से न लड़े होते तो ये भूत सोए ही रह जाते.
—असित जॉली और जयंत श्रीराम