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इबोला, एड्स, कैंसर ये वो बीमारियां हैं जिनका नाम सुनते ही इंसान दहशत से भर जाता है. इसकी वजह ये है कि अब तक ऐसी बीमारियां तकरीबन लाइलाज ही रही हैं. साल 2016 अब विदा लेने को है लेकिन वो इन बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण छोड़कर जा रहा है. इस साल कई ऐसी खोज व अनुसंधान हुए जो आगे चलकर इन बीमारियों के इलाज की राह खोल सकते हैं.
चिकनगुनिया की वैक्सीन
साल 2016 कई अच्छी खबरें लेकर आया, मसलन साल के जाते-जाते वैज्ञानिकों ने चिकनगुनिया वायरस की वैक्सीन बनाने में कामयाबी हासिल की. इस वैक्सीन को अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास मेडिकल ब्रांच के शोधकर्ताओं ने विकसित किया है. शोध की रिपोर्ट जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित की गई है. यह दुनिया की पहली चिकनगुनिया वैक्सीन है.
इबोला वैक्सीन
मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक हालिया शोध की मानें तो शोधकर्ताओं ने इबोला के लिए भी वैक्सीन तैयार कर ली है. शोधकर्ताओं के मुताबिक इबोला वायरस के संपर्क में आने के तुरंत बाद यदि rVSV-ZEBOV नाम की वैक्सीन लगाई जाए तो पीड़ित को मरने से बचाया जा सकता है.
एचआईवी की वैक्सीन
लाइलाज बीमारी एड्स के खिलाफ भी 2016 में एक बड़ी सफलता मिली. पहली बार वैज्ञानिकों ने एचआईवी को खत्म करने वाली एक वैक्सीन बनाई. भारत और दक्षिण अफ्रीका समेत कई देशों में फिलहाल वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है.
बिना सर्जरी खत्म किया कैंसर
साल 2016 में मेडिकल साइंस को कैंसर के इलाज में बड़ी सफलता मिली है. वैज्ञानिकों ने गहरे समुद्र से निकाले गए एक बैक्टीरिया और लेजर की मदद से प्रोस्टेट कैंसर को खत्म करने का दावा किया है. इसका सफल परीक्षण 473 रोगियों पर किया गया. 10 अलग-अलग देशों में किए गए प्रयोगों के दौरान वैज्ञानिकों ने रोगियों के शरीर में बैक्टीरिया डाला. फिर बैक्टीरिया को लेजर की मदद से सक्रिय किया गया. परीक्षण इतना सफल रहा कि आधे मरीजों का कैंसर खत्म हो गया.
तीन माता-पिता वाला बच्चा
मई 2016 में दुनिया में पहली बार एक ऐसे बच्चे का जन्म हुआ, जो दो महिलाओं के अंडाणु और एक पुरुष के शुक्राणु से पैदा हुआ. मेक्सिको में पैदा हुआ ये बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है. वैज्ञानिकों ने मुताबिक इस तकनीक के जरिये बच्चे को मां से मिलने वाली आनुवांशिक बीमारियों से बचाया जा सकेगा.
जन्म के महीने से पता चल जाता है व्यक्तित्व
जीन एडिटिंग
इस साल अमेरिकी वैज्ञानिकों ने सूअर के भीतर इंसानी अंग विकसित करने में भी सफलता पाई. जीन एडिटिंग की मदद से वैज्ञानिकों ने सूअर के भ्रूण में इंसान की स्टेम कोशिकाएं डालीं और 28 दिन बाद इंसानी अंग विकसित होने लगा.
सीओटू को पत्थर बनाया
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे के बीच विज्ञान की दुनिया से एक राहत भरी खबर आई. उत्तरी ध्रुव के पास बसे देश आइसलैंड में वैज्ञानिकों ने कार्बन डाई ऑक्साइड को चूने के पत्थर में तब्दील करने में कामयाबी पाई.
हीलियम का भंडार
तंजानिया में हीलियम गैस का विशाल भंडार मिलते ही मेडिकल साइंस ने चैन की सांस ली. हवाई जहाज के टायरों में भरी जाने वाली इस गैस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल एमआरआई और स्कैनिंग मशीनों में होता है. खोज से पहले दुनिया भर में हीलियम की कमी महसूस की जा रही थी.
मानसिक रोग पर महत्वपूर्ण शोध
इस साल कई महत्वपूर्ण शोध हुए, जिनमें बच्चों की मानसिक सेहत पर हुआ अध्ययन भी शामिल है. चाइल्ड माइंड इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक शोध में यह बात सामने आई कि 80 फीसदी क्रोनिक मेंटल डिस्ऑर्डर बचपन में ही शुरू हो जाता है. दुनिया का हर पांचवां बच्चा लर्निंग डिस्ऑर्डर से पीड़ित है. इसके अलावा 2016 में, युद्ध, विस्थापन, इबोला, लिंग आधारित हिंसा, प्राकृतिक आपदाओं और अन्य दुखों से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है.
स्मार्टफोन ब्लाइंडनेस
साल 2016 में एक नई बीमारी स्मार्टफोन ब्लाइंडनेस का पता लगा. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की इस साल आई रिपोर्ट के मुताबिक़, अंधेरे में स्मार्टफोन का उपयोग करने से आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है और इसे ही स्मार्टफोन ब्लाइंडनेस कहा जाता है. 2016 में स्मार्टफोन ब्लाइंडनेस से पीड़ित लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है.