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13 राज्य-15 दलः मोदी-शाह के सामने 2019 में 429 सीटों का चक्रव्यूह

कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद 21वें राज्य के रूप में बीजेपी ने सरकार बनाने के लिए कदम बढ़ाया, तो कांग्रेस-जेडीएस ने आपस में हाथ मिला लिया. इतना ही नहीं विपक्ष के बाकी दल उनके सहयोग के लिए साथ खड़े हो गए. इसका नतीजा ये रहा कि बीजेपी सदन में बहुमत साबित करने में नाकाम रही, जिसके चलते बीएस येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह नरेंद्र मोदी और अमित शाह
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 23 मई 2018,
  • अपडेटेड 3:07 PM IST

कर्नाटक में मिली जीत ने विपक्षी पार्टियों में एकजुटता को लेकर एक नया जोश भर दिया है. इसी जज्बे के साथ विपक्ष ने 2019 में मोदी के 'विजय रथ' को रोकने का फॉर्मूला तैयार किया है. इस फॉर्मूले के जरिए देश के 13 राज्यों में 15 दल मिलकर 429 लोकसभा सीटों पर मोदी-शाह के सामने पेंच फंसा सकते हैं. 20 राज्यों में बीजेपी का परचम लहराने वाली इस जोड़ी के सामने विपक्ष ने ऐसा चक्रव्यूह रचा है, जिसे तोड़ना आसान नहीं होगा.

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कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद 21वें राज्य के रूप में बीजेपी ने सरकार बनाने के लिए कदम बढ़ाया, तो कांग्रेस-जेडीएस ने आपस में हाथ मिला लिया. इतना ही नहीं विपक्ष के बाकी दल उनके सहयोग के लिए साथ खड़े हो गए. इसका नतीजा ये रहा कि बीजेपी सदन में बहुमत साबित करने में नाकाम रही, जिसके चलते बीएस येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा. इससे विपक्ष को 2019 के लिए जैसे संजीवनी मिल गई.

कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार के आज शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के तकरीबन सभी दल एकजुट हुए हैं. इसमें पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक के गैर बीजेपी नेता शामिल है. यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बसपा और सपा के प्रमुख नेता मायावती व अखिलेश यादव के साथ ही ममता और लेफ्ट नेता भी एक मंच पर नजर आएंगे.

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2014 में नरेंद्र मोदी जबरदस्त बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज हुए तो इसमें यूपी में मिली प्रचंड जीत का बहुत बड़ा योगदान था. सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले इस सूबे में विपक्षी एकता 2019 में बीजेपी के सपनों पर ग्रहण लगा सकती है. बीजेपी लाख इनकार करे लेकिन माया और अखिलेश की जोड़ी फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनावों में उसे चित कर विपक्षी एकता की ताकत का एहसास करा चुकी है. 2019 में कांग्रेस भी साथ आ गई तो बीजेपी के लिए मुश्किलें और बढ़ जाएंगी.

2019 के लिए बिछाई जा रही बिसात के बीच मोदी-शाह की नजर बिहार और पश्चिम बंगाल पर भी है. बिहार में कांग्रेस-आरजेडी मिलकर एनडीए को कड़ी टक्कर दे सकते हैं. मोदी को मात देने के लिए कांग्रेस को लालू यादव से भी हाथ मिलाने में कतई परहेज नहीं.

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-टीएमसी मिलकर लोकसभा चुनाव में साथ उतर सकती हैं. मुमकिन है कि लेफ्ट भी साथ आ जाए. वैसे मोदी के खिलाफ विपक्षी एकता का बिगुल फूंकने वाली ममता ने हर राज्य में ताकतवर विपक्षी पार्टी को बीजेपी से भिड़ाने का फॉर्मूला बहुत पहले ही दे दिया था. असम में कांग्रेस का किला ध्वस्त करने के बाद बीजेपी ने पूर्वोत्तर में पैर पसारा था. 2019 में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस के बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ के साथ चुनावी समर में उतरने की संभावना है.

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ओडिशा में हुए पंचायत चुनावों में बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. इसके अलावा जिस तरह से ओडिशा बीजेपी के साथ नेताओं का जुड़ने का सिलसिला चल रहा है. उसे देखते हुए माना जा रहा है कि बीजेपी को रोकने के लिए बीजेडी कांग्रेस से हाथ मिला सकती है. इसके अलावा दो महीना पहले एनडीए से अलग हो चुकी टीडीपी कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ सकती है.

कर्नाटक में बाजी पलटने के बाद दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में बीजेपी-एआईडीएमके को रोकने के लिए कांग्रेस और डीएमके साथ आ सकते हैं. पहले भी दोनों दल एक साथ सरकार में रह चुके हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी ने पहले ही संकेत दे दिया है कि 2019 का चुनाव दोनों साथ मिलकर लड़ेंगे. इसके साथ ही, हर मौके पर बीजेपी को लंगड़ी मारने में जुटी शिवसेना लोकसभा चुनाव में खेल बिगाड़ने का मौका शायद ही चूकेगी.

झारखंड में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस और जेएमएम पहले ही हाथ मिला चुके हैं. वहीं हरियाणा में आईएनएलडी और बसपा साथ हैं, लेकिन कांग्रेस भी इसमें शामिल हो सकती है. जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन को नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस टक्कर दे सकते हैं.

विपक्ष ने इसी रणनीति के आधार पर 429 सीटों का चक्रव्यूह तैयार किया है, जिसे तोड़कर ही मोदी-शाह 2019 का किला फतह कर सकेंगे.

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