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दलित/OBC कार्ड के चक्कर में कहीं BJP खो न दे अपना मूल वोटबैंक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए दलित-ओबीसी मतों को साधने की कवायद में लगे हैं. इसी के मद्देनजर सरकार ने तीन अहम कदम उठाए हैं, आशंका है कि इससे बीजेपी का मूल वोट बैंक सवर्ण नाराज न हो सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 12:58 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार इन दिनों दलित और ओबीसी पर काफी मेहरबान नजर आ रही है. अगले साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने दलित-ओबीसी समुदाय से जुड़े तीन अहम फैसले लिए हैं. सरकार के इस कदम का मकसद चुनावी राजनीति में अहम इन दो समुदायों को साधना माना जा रहा है लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी दलित-ओबीसी वोटों की खातिर अपने मूलवोट बैंक को को दांव पर नहीं लगा रही है?

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दलितों की नाराजगी देखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने SC/ST एक्ट को मूल स्वरूप में बहाल करने के लिए संशोधन विधेयक पेश कर दिया है. इसके बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट में SC/ST कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन दिए जाने के पक्ष में खड़ी नजर आई.

ओबीसी मतों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की प्रक्रिया में कदम आगे बढ़ाए हैं. सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग होगा, जिसे बाकायदा सरकार ने संवैधानिक दर्ज दे दिया है.

देश की कुल जनसंख्या में 20.14 करोड़ दलित हैं. जबकि ओबीसी की आबादी मंडल कमीशन के मुताबिक 52 फीसदी है. देश में कुल 543 लोकसभा सीट हैं. इनमें से 84 सीटें दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की कामयाबी में इन दोनों समुदाय की काफी अहम भूमिका रही थी. दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षित 84 सीटों में से बीजेपी ने 41 पर जीत दर्ज की थी.

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SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए दलित समुदाय मोदी सरकार को जिम्मेदार मानते हुए  नाराज चल रहा था. वहीं, विपक्षी दल केंद्र की मोदी सरकार और बीजेपी को दलित विरोधी बताने की कोशिश कर रहे थे. ऐसे में बीजेपी पसोपेश में है कि कहीं दलितों की नाराजगी 2019 में उसके लिए महंगी न पड़ जाए. माना जा रहा है कि इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने तीनों अहम कदम उठाए हैं.

मोदी सरकार के इस कदम से जहां दलितों को राहत मिली है, वही, बीजेपी के मूल वोट माने जाने वाले सवर्ण समुदाय में नाराजगी बढ़ सकती है. एससी/एसटी एक्ट के जरिए जहां ग्रामीण इलाके के सवर्ण वोटों में नाराजगी पैदा हो सकती है, वहीं, प्रमोशन में रिजर्वेशन के पक्ष में खड़े होने से शहरी और कर्मचारी वर्ग नाराज हो सकता है.

अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल कहते हैं कि SC/ST एक्ट  पर सरकार का फैसला काफी महत्वपूर्ण है. दलित समुदाय के लिए SC/ST एक्ट लाइफलाइन है. ये दलितों के हर क्लास के लिए काफी अहमियत रखता है. जबकि मोदी सरकार के फैसले से सवर्ण और ओबीसी नाराज हो सकता है.

बीजेपी को सवर्ण वोटों की नाराजगी का खामियाजा राजस्थान के अलवर और अजमेर लोकसभा सीट के उपचुनाव में उठाना पड़ा था. अपराधी आनंदपाल एनकाउंटर, फिल्म पद्मावती और जयपुर राजपरिवार की सम्पति राजमहल पैलेस की जमीन पर सरकार के कब्जे जैसे मसलों पर राजपूत समाज ने वसुंधरा राजे से नाराज होकर कांग्रेस को खुलेआम वोट किया था. अगर ये ट्रेंड देशभर में फैला तो बीजेपी के लिए 2019 के मिशन में दिक्कत खड़ी हो सकती है.

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