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EXCLUSIVE: विपक्षी खेमे में दरारें, 2019 के लिए आसान नहीं महागठबंधन की राह

विपक्षी खेमे में दो तरह की विचार प्रक्रिया उभरते देखी जा सकती है. पहली राय ये है कि केंद्र में कांग्रेस की ओर से गठबंधन बनाया जाए. दूसरी राय में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों से ही अलग रहने की पक्षधर पार्टियों का तीसरा मोर्चा खड़ा करने पर जोर दिया जा रहा है.

कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण मंच पर विपक्षी दलों के नेताओं का जमघट कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण मंच पर विपक्षी दलों के नेताओं का जमघट
सुप्रिया भारद्वाज/खुशदीप सहगल
  • नई दिल्ली,
  • 21 जून 2018,
  • अपडेटेड 7:50 AM IST

2019 लोकसभा चुनाव से पहले विरोधी दलों की कोशिश महागठबंधन खड़ा करने की है. विरोधी दलों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली बीजेपी की चुनौती का सामना करने के लिए महागठबंधन समय की जरूरत है. लेकिन विपक्षी खेमे में अंतर्विरोधों के चलते महागठबंधन को जमीनी हकीकत बनाने का रास्ता फिलहाल आसान नजर नहीं आ रहा.

विपक्षी खेमे में दो तरह की विचार प्रक्रिया उभरते देखी जा सकती है. पहली राय ये है कि केंद्र में कांग्रेस की ओर से गठबंधन बनाया जाए. दूसरी राय में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों से ही अलग रहने की पक्षधर पार्टियों का तीसरा मोर्चा खड़ा करने पर जोर दिया जा रहा है.  

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सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में समाजवादी पार्टी की ओर से कोई प्रतिनिधि नहीं भेजे जाने से कांग्रेस खुश नहीं हैं. वो भी ऐसी स्थिति में कि समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जमियत-ए-उलेमा हिंद चीफ अरशद मदनी के ईद मिलन समारोह में खुद हिस्सा लिया. इस समारोह में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मौजूद रहे.

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से अपने सिपहसालारों और राज्य प्रभारियों को पहले ही सभी स्तरों पर संगठन को मजबूत किए जाने के निर्देश दिए जा चुके हैं. खास तौर पर बूथ स्तर पर प्रबंधन को धार देने पर जोर दिया गया है.

छत्तीसगढ़ के लिए कांग्रेस के प्रभारी इंचार्ज पीएल पुनिया ने इंडिया टुडे से कहा, 'जब तक महागठबंधन सामने नहीं आता, हम पार्टी संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाने में जुटे हैं. हम इसे लेकर चिंतित नहीं है कि महागठबंधन बनता है या नहीं. राहुल गांधी हर राज्य की स्थिति को देख रहे हैं. गठबंधन इस बात पर निर्भर करेगा कि किसी राज्य विशेष की क्या स्थिति है.'

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महागठबंधन के रास्ते में सीटों का बंटवारा भी बड़ा मुद्दा है. हाल में समाजवादी पार्टी के नेताओं की ओर से संकेत दिया गया कि पार्टी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए दो सीटें ही छोड़ने के पक्ष में है.

तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी की ओर से भी अतीत में कई मौकों पर लेफ्ट पार्टियों और कांग्रेस पर निशाना साधा जा चुका है. हाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच टकराव के दौरान जिस तरह ममता बनर्जी और कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने दिल्ली में आकर केजरीवाल का समर्थन किया वो भी मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को रास नहीं आया. कांग्रेस का मानना है कि इससे ये संकेत गया कि विपक्ष एकजुट नहीं है.

सीपीआई नेता और राज्यसभा सदस्य डी राजा का कहना है, 'हर पार्टी अपने हिसाब से पोजीशनिंग कर रही है और हर एक की कोशिश अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की है. लेकिन हम इस रणनीति पर काम कर रहे हैं कि विरोधी दल अपने मूल उद्देश्य को ना भूल जाएं और वो है बीजेपी को हराना. इसलिए सभी दलों को व्यावहारिक दृष्टि से काम करना चाहिए और एक दूसरे के लिए ज्यादा उदारता बरतनी चाहिए.'

हालांकि विरोधी दलों के नेता ये भी कह रहे हैं कि महागठबंधन पर बात करना अभी जल्दबाजी होगा. साथ ही उनका ये भी कहना है कि फिलहाल वे ऐसी रणनीति पर जोर दे रहे हैं जिससे सभी को एक छतरी के नीचे लाया जा सके.

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कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी कहते हैं, 'कांग्रेस अध्यक्ष पहले ही कह चुके हैं कि हम सभी समान सोच वाली पार्टियों को एकजुट करेंगे और बीजेपी को मात देंगे.'

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की ओर से ‘संविधान बचाओ’ कैम्पेन की शुरुआत पर कहा था कि महागठबंधन ने आकार लेना शुरू कर दिया है और छह महीने में ये अस्तित्व में आ जाएगा.

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