Advertisement

डॉक्टर हैं या कसाई: मनोरोगियों पर कामोत्तेजक दवा का टेस्‍ट

पहले भी ड्रग ट्रायल को लेकर सुर्खियों में रह चुके इंदौर में एक बार फिर ऐसा ही मामला सामने आया है. इस बार बलि का बकरा बने हैं मनोरोगी.

मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के डॉक्टर शक के घेरे में मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के डॉक्टर शक के घेरे में
जयश्री पिंगले
  • इंदौर,
  • 30 दिसंबर 2011,
  • अपडेटेड 11:57 AM IST

पहले भी ड्रग ट्रायल को लेकर सुर्खियों में रह चुके इंदौर में एक बार फिर ऐसा ही मामला सामने आया है. इस बार बलि का बकरा बने हैं मनोरोगी.

21 दिसम्‍बर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे

इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष समेत पांच डॉक्टरों पर आरोप है कि उन्होंने 233 मानसिक रोगियों को डेपोक्सेटिन नाम की दवा देकर समय से पहले वीर्य स्खलन को रोकने का परीक्षण किया है.

Advertisement

14 दिसंबर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे

यह मामला तब उजागर हुआ जब विधायक पारस सकलेचा के एक सवाल के जवाब में 21 नवंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में बताया कि इंदौर में एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. रामगुलाम राजदान, डॉ. वी.एस. पाल, डॉ. उज्जवल सरदेसाई, डॉ. अभय पालीवाल और डॉ. पाली रस्तोगी ने 2008 से 2010 के दौरान अपने प्राइवेट क्लिनिक पर 233 मानसिक रोगियों पर डेपोक्सेटिन दवा का ट्रायल किया है, जिसमें राजदान ने 86, डॉ. पाल ने 25, डॉ. सरदेसाई ने 42, डॉ. पालीवाल ने 60 और डॉ. रस्तोगी ने 20 मरीजों पर ट्रायल किया है.

07 दिसंबर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे

इसमें पेच यह है कि इन ट्रायल्स को करने से पहले एमजीएम मेडिकल कॉलेज की ड्रग ट्रायल एथिक्स कमेटी की सहमति की बजाए पुणे, अहमदाबाद और इंदौर के प्राइवेट अस्पतालों की एथिक्स कमेटी की सहमति ली गई है.

Advertisement

जबकि ड्रग ट्रायल करने वाले सभी डॉक्टर सरकारी मेडिकल कॉलेज से हैं, इसलिए इस बात की आशंका जताई जा रही है कि कहीं इंदौर के मानसिक चिकित्सालय में भर्ती मरीजों पर तो यह ट्रायल तो नहीं किया गया.

30 नवंबर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे

ड्रग ट्रायल के आरोपों से घिरे डॉक्टरों की ओर से डॉ. सरदेसाई दावा करते हैं कि मानसिक चिकित्सालय में भर्ती मरीजों पर ट्रायल नहीं हुए हैं. वे मेडिकल कॉलेज की एथिक्स कमेटी से अनुमति के सवाल पर सफाई देते हैं कि चूंकि मामला प्राइवेट प्रेक्टिस से जुड़ा था इसलिए अनुमति भी निजी अस्पतालों की कमेटी से ली गई.

पारस सकलेचा पूछते हैं कि जिन रोगियों को खुद ही मानसिक संबल की जरूरत है, उन्हें सेक्स क्षमता बढ़ाने वाली दवा के परीक्षण में कैसे झेंका जा सकता है. इस पर डॉ. सरदेसाई का जवाब है, ''यह ट्रायल मानसिक रोगियों पर इसलिए हुए हैं क्योंकि जो व्यक्ति सेक्स क्षमताओं की कमी से ग्रस्त है या शीघ्र स्खलित होता है, वह एक तरह की मानसिक बीमारी से ग्रस्त होता है. वे मरीज जो या तो अवसादग्रस्त थे या इसी तरह की अन्य समस्याओं से घिरे थे, ड्रग ट्रायल उन्हीं पर किए गए हैं.''

सरकार को सवालों के घेरे में लेते हुए सकलेचा कहते हैं कि उन्होंने अब तक ड्रग ट्रायल के 20 से ज्‍यादा मामला उठाए हैं, दो ध्यानाकर्षण भी लगा चुके हैं लेकिन सरकार की ओर से ठीक से जवाब तक नहीं मिलता. जवाब में प्रदेश के स्वास्थ्य राज्‍यमंत्री महेंद्र हार्डिया कहते हैं कि ड्रग ट्रायल मामले पर एक कमेटी पहले से बनी है लेकिन मानसिक रोगियों पर हुए परीक्षण की अलग से जांच की जा रही है.

Advertisement

आरटीआइ कार्यकर्ता और ड्रग ट्रायल मामलों में खास तौर पर सक्रिय डॉ. आनंद राय बताते हैं कि डेपोक्सेटिन नामक अवसाद दूर करने वाली यह दवा बाजार में पहले सस्ते दामों पर मिलती थी लेकिन ड्रग ट्रायल में इससे सेक्स क्षमता बढ़ना प्रमाणित होते ही दवा कंपनियों ने इसे दूसरे नाम से महंगी दरों पर बाजार में उतार दिया.

दरअसल, यह ड्रग अवसाद के मरीजों के लिए है लेकिन यह सेक्स क्षमता बढ़ाने और वीर्य के जल्दी स्खलित होने की समस्या से ग्रस्त लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है.

राय पूछते हैं, ''मानसिक रूप से बीमार मरीज जब अपने फैसले ही नहीं ले सकते तो ड्रग ट्रायल की सहमति कैसे दे सकते हैं.?'' वे कहते हैं कि ऐसे परीक्षणों में तटस्थ व्यक्ति को गवाह के तौर पर रखा जाता है और इस मामले में तो मनोरोग विभाग के जूनियर डॉक्टरों को ही गवाह रख लिया गया है.

डॉ. राय का यह भी कहना है कि इस सनसनीखेज मामले को आरटीआइ के दायरे से बाहर करने के लिए ही निजी अस्पतालों की एथिक्स कमेटी से सहमति लेने की प्रक्रिया अपनाई गई.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement