
करीब 102 साल पहले 25 सितंबर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जन्म हुआ था और 11 फरवरी 1968 को उनका शव मुगल सराय रेलवे स्टेशन (अब दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन) के पास मिला था. अभी भी उनकी मौत को लेकर कई राज सामने नहीं आए हैं और हाल ही में यूपी सरकार ने इसकी जांच करवाने का फैसला भी किया है. उनके मौत के कारण के पीछे काफी चर्चा हुई है, लेकिन क्या आप जानते हैं, जब उनकी मौत या हत्या हुई तो उनके पास क्या-क्या मिला था...
अमरजीत सिंह की किताब 'एकांत मानववाद के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय' के अनुसार 11 फरवरी, 1968 को सुबह 3.30 बजे प्लेटफॉर्म से करीब 150 गज पहले रेलवे लाइन के दक्षिणी ओर के बिजली के खंभे से लगभग 3 फीट की दूरी पर एक शव मिला था, जिसे पहले शंटिंग पोर्टर दिग्पाल ने देखा था. उसके बाद रेलवे अधिकारियों को सूचना दी गई थी. जिसके बाद 3.45 बजे पुलिस के तीन सिपाही शव की निगरानी के लिए घटनास्थल पहुंचे और चार बजे पुलिस के दारोगा वहां पहुंचे.
उस दिन की पूरी कहानी, जब हुई थी दीनदयाल उपाध्याय की मौत
किताब के अनुसार, 6 बजे रेलवे के एक डॉक्टर ने घटनास्थल पर पहुंचकर शव की जांच पड़ताल की और दीनदयाल उपाध्याय को मृत घोषित कर दिया. उसके बाद आगे की कार्रवाई की गई, जिसमें फोटोग्राफी आदि शामिल है. किताब के अनुसार लोहे और कंकड़ों के ढेर पर दीनदयाल उपाध्याय पीठ के बल सीधे पड़े हुए थे और कमर से मुंह तक का भाग दुशाले से ढका हुआ था.
क्या-क्या मिला
पहचान के लिए जब उनकी तलाशी ली गई थी तो उनकी जेब से प्रथम श्रेणी का टिकट नं 04348 रिजर्वेशन रसीद नं 47506 और 26 रुपये बरामद हुए. उनके दाएं हाथ में एक घड़ी बंधी हुई थी, जिस पर 'नानाजी देशमुख' लिखा था. कहा जाता है कि उस दौरान उनके हाथ में एक पांच का नोट भी था. हालांकि उस दौरान ये उनके शव को पहचानने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं थी.
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कहां गया बाकी सामना?
जब सुबह करीब 9.30 बजे दिल्ली-हावड़ा एक्सप्रेस मुकामा रेलवे स्टेशन पहुंची. यहां गाड़ी की प्रथम श्रेणी बोगी में चढ़े यात्री ने सीट के नीचे एक लावारिस सूटकेस देखा. उसने इसे उठाकर रेलवे कर्मचारियों के सुपुर्द कर दिया. बाद में पता चला कि यह सूटकेस पंडित जी का था.